आप समाज के बीच रह रहे हों या फिर जेल में। जाति आपका पीछा नहीं छोड़ती। अगर कोई नाई होगा तो जेल में उसे बाल और दाढ़ी बनाने का काम मिलेगा, ब्राह्मण क़ैदी खाना बनाते हैं और वाल्मीकि समाज के क़ैदी सफ़ाई करते हैं। इसी तरह के भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। तीन अक्तूबर 2024 को मुख्य न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने जेलों में जाति आधारित भेदभाव खत्म करने के लिए कड़े निर्देश जारी किये। कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 14 में मिले समानता के खिलाफ बताया।
जेलों के अंदर जाति के आधार पर काम के बंटवारे से नाराज सु्प्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि- “हमारा मानना है कि कोई भी समूह मैला ढोने वाले वर्ग के रूप में या नीचा समझे जाने वाला काम करने या न करने के लिए पैदा नहीं होता है। कौन खाना बना सकता है और कौन नहीं, यह छुआछूत के पहलू हैं, जिनकी अनुमति नहीं दी जा सकती…. सफाईकर्मियों को चांडाल जाति से चुना जाना पूरी तरह से मौलिक समानता के विपरीत है और संस्थागत भेदभाव का एक पहलू है।”
तमाम राज्यों के जेल मैनुअल में इस तरह की व्यवस्था को गलत बताते हुए पीठ ने कहा- “ऐसे सभी प्रावधान असंवैधानिक माने जाते हैं। सभी राज्यों को निर्देश दिया जाता है कि वे फैसले के अनुसार जेल नियमावली में बदलाव करें…”
In its judgment today on casteist prison manuals, the Supreme Court of India has cited my book “The Foresighted #Ambedkar” twice: footnotes 52 and 108. This is the fourth judgment in which my writings have been cited. pic.twitter.com/Z5B7gUsZTT
— Anurag Bhaskar (@anurag_bhaskar_) October 3, 2024
क्या है मामला
बता दें कि मानवाधिकार क़ानून और सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों पर लिखने वाली पत्रकार सुकन्या ने जेल में जातिगत भेदभाव पर 2020 में रिसर्च रिपोर्ट तैयार की थी। इसके बाद उन्होंने दिसंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सहित मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु समेत 17 राज्यों से जेल के अंदर जातिगत भेदभाव और जेलों में कैदियों को जाति के आधार पर काम दिए जाने पर जवाब मांगा था।
दरअसल जेलों में दलित समाज के कैदियों को सफाई जैसे काम जबकि अगड़ी जातियों को खाना बनाने जैसे काम दिये जाते रहे हैं। इसके अलावा कैदियों को भी कई बार जाति के आधार पर अलग-अलग रखा जाता है। तुर्रा यह कि ये सब कई राज्यों के जेल मैन्युअल में भी लिखा था। जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है। हालांकि देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद जेलों के भीतर क्या बदलाव आता है।
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