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नई दिल्ली। कश्मीर में भाजपा व पीडीपी की सरकार गिरने से चार दिन पहले ही मायावती ने मोदी सरकार को नसीहत दी थी. 15 जून को दी गई नसीहत के हिसाब से देखा जाए तो लगता है कि कश्मीर में सरकार से समर्थन वापसी में बसपा प्रमुख की नसीहत का भी रोल है. हालांकि जाहिर है कि कोई पार्टी इस तरह की बात को स्वीकार नहीं करती लेकिन कभी-कभार संयोगवश ऐसा होने से इंकार नहीं किया जा सकता है. अपनी नसीहत में सुश्री मायावती ने साफ तौर पर कहा था कि कश्मीर में बिगड़ते हालात को देखकर भाजपा को अपनी रणनीति बदलनी चाहिए.
इस नसीहत के चार दिन के बाद ही भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने तत्काल बैठक बुलाकर 19 जून को कश्मीर में पीडीपी से समर्थन वापसी का ऐलान कर दिया. इसके बाद मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने उसी दिन शाम को राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया. मायावती की नसीहत के बाद अचानक से कश्मीर में भूचाल आना बहुत कुछ बताता है.
अब यह जान लिजिए कि आखिर मायावती ने नसीहत क्यों दी थी.
दरअसल श्रीनगर में 14 जून को तीन बाइक सवार आतंकियों ने राइजिंग कश्मीर अखबार के संपादक शुजात बुखारी की गोली मारकर हत्या कर दी. इसके बाद आतंकियों ने सेना के जवान औरंगजेब की भी बेरहमी से हत्या कर दी थी. इन घटनाओं ने कश्मीर के हालात इस कदर बिगाड़े कि मायावती ने बीजेपी को जमकर खरी-खोटी सुनाई.
सीमावर्ती जम्मू-कश्मीर राज्य में जवानों की लगातार हो रही शहादत व सम्पादक सुजात बुख़ारी की हत्या पर गहरा दुःख व्यक्त करते हुये सुश्री मायावती ने कहा था कि अब समय आ गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार अपनी अड़ियल नीति को त्याग कर देशहित में अपनी कश्मीर नीति पर पुनर्विचार करे.
गठबंधन सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए बसपा प्रमुख ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन सरकार होने के बावजूद भी वहां के हालात लगभग बेकाबू हैं. चूंकि आम जनता शांति व कानून-व्यवस्था चाहती है, इसको ध्यान में रखकर ही केन्द्र सरकार को कश्मीर नीति में परिवर्तन लाना चाहिये तथा राजनीतिक स्तर पर भी सुधार के प्रयास तेज़ करने चाहिये.
भाजपा की देशभक्ति वाली नीति पर तंज कसते हुए मायावती ने कहा था कि बीजेपी की कश्मीर नीति पूर्णतः जनहित व देशहित पर आधारित नहीं होकर पार्टी की संकीर्ण राजनीतिक सोच से ज़्यादा प्रभावित लगती है. शायद यही कारण है कि बीजेपी का जम्मू नेतृत्व भी काफी ज्यादा स्वार्थ में लिप्त पाया जाता है. इसी कारण जम्मू क्षेत्र भी तनाव व हिंसा का शिकार है तथा आम जनता का जीवन त्रस्त है.
कश्मीर में सरकार गिरने के बाद बीजेपी की ओर से अधिकारिक तौर कहा गया कि समर्थन वापसी का फैसला देशहित को ध्यान में रखकर लिया गया है. सरकार चलाने से ज्यादा जरूरी है कि कश्मीर में शांति व्यवस्था के लिए सही फैसले लिए जाए. भाजपा का बयान व मायावती की नसीहत को गौर से देखिए तो साफ लगता है कि भाजपा वही कहती दिखी तो मायावती पहले कह चुकी थीं.
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