नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में भले ही कांग्रेस और भाजपा अपने दम पर सरकार बनाने का दावा कर रहे हों, सबकी नजर देवेगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर (JDS) पर है. लेकिन जनता दल सेक्युलर की नजर बहुजन समाज पार्टी और उसकी मुखिया मायावती पर है.
दरअसल चुनाव पूर्व हुए सर्वे बता रहे हैं कि कर्नाटक चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा. अगर ये सर्वे सही साबित होते हैं तो जनता दल सेक्युलर निर्णायक भूमिका में होगी. तो वहीं जेडीएस का सारा ध्यान इस बात पर है कि बहुजन समाज पार्टी जेडीएस के लिए कितने वोट ले आती है. बसपा के वोट ट्रांसफर होने की स्थिति में ही जेडीएस अपने प्रदर्शन को बेहतर कर सकता है.
आंकड़े पर गौर करें तो अगर बसपा अपने वोटरों से जेडीएस के पक्ष में कम से कम दो प्रतिशत वोट भी ट्रांसफर करवाने में कामयाब रहती है तो भाजपा और कांग्रेस दोनों मुंह के बल आ सकते हैं. पिछले चुनाव के आंकड़े इस बात को साबित भी करते हैं. जैसे पिछले विधानसभा चुनाव में जेडीएस 16 ऐसी सीटों पर हारी थी, जहां मार्जिन 5000 से कम था. इस बार बसपा, एनसीपी, टीआरएस और ओवैसी की एआईएमआईएम की मदद से अगर वह इन 16 सीटों को जीत में तब्दील करना चाहती है.
एक और तथ्य पर नजर डालें और पिछले तीन चुनावों का ट्रेंड देखें तो किसी भी पार्टी के वोट शेयर में सिर्फ 1 से 4 फीसदी की बढ़ोतरी पर ही सीटों का बड़ा फायदा होता है. ऐसे में जेडीएस के मामले में यह उछाल आया तो किसी को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिलेगा.
जेडीएस को सबसे ज्यादा फायदा बसपा से मिलने की उम्मीद है. क्योंकि पिछले चुनाव में मायावती की पार्टी ने 224 सीटों में से 175 पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. हर सीट पर बसपा उम्मीदवार को औसतन 1% वोट मिला था. ये तब था जब बसपा के किसी सीट पर जीतने की कोई उम्मीद नहीं थी. इस बार जेडीएस से गठबंधन के बाद बसपा कार्यकर्ता और दलित समुदाय भी खासा उत्साहित है. जेडीएस से गठबंधन के बाद बसपा समर्थक अब जहां जेडीएस को खुलक सपोर्ट कर रहे हैं तो वहीं उन्होंने बसपा को जीताने के लिए भी ऐड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है. बसपा यहां की 20 सीटों पर चुनाव मैदान में है, जबकि बाकी की सीटों पर वह जेडीएस को समर्थन दे रही है. खास बात यह भी है कि बसपा ने एससी-एसटी के लिए आरक्षित 51 सीटों में से 8 पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं. ऐसे में इन सीटों पर दलित वोट लामबंद हो सकते हैं.
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