… तो जेएनयू की लाल दीवारों पर चटख नीली स्याही पुत जाएगी

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अम्बेडकरी आंदोलन से जुड़े लोगों के लिए जेएनयू छात्रसंघ के नतीजे एक नई उम्मीद लेकर आए हैं. अम्बेडकर-फुले विचारधारा के वाहक ””””””””बिरसा अम्बेडकर फुले स्टूडेंट एसोसिएशन”””””””” यानि बपसा ने जिस तरह से छात्रसंघ चुनाव में प्रदर्शन किया है, उसने यह साफ कर दिया है कि अगली बार अगर अम्बेडकर-फुले की विचारधारा से जुड़े सभी छात्र साथ आ गए तो जेएनयू की लाल दीवारों पर चटख नीली स्याही पुत जाएगी और जेएनयू में नीला झंडा लहराएगा.

चुनाव के नतीजे को ध्यान से देखें तो प्रमुख मुकाबलों में बपसा ने कुछ में भाजपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों पर बढ़त हासिल की है. चुनावी नतीजे में सभी चारों प्रमुख सीटों पर हालांकि लेफ्ट गठबंधन ने जीत हासिल कर ली है, लेकिन बपसा ने हार जाने के बावजूद लेफ्ट का पसीना निकाल दिया. जिस तरह से वोटों की गिनती होनी शुरू हुई. उससे शुरुआती कयास लगाने जाने लगे थे कि बपसा एक या दो सीटों को जीत जाएगी. हालांकि ऐसा हो ना सका. लेकिन बपसा ने अपने प्रदर्शन के आधार पर प्रतिद्वंदी छात्र संगठनों को यह चेतावनी और चुनौती दे डाली है कि वो बपसा को हल्के में ना ले. बपसा से जुड़े छात्रों और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को इस चुनाव के नतीजों को चुनौती के रुप में लेना चाहिए और जमकर मेहनत करनी चाहिए. अगर उन्होंने अपनी इस उम्मीद को मेहनत के पसीने से सींच लिया तो इसमें कोई शक नहीं की जेएनयू छात्रसंघ चुनाव में अगली बार नीला झंडा लहराएगा. इस प्रक्रिया में इस विचारधारा से जुड़े विश्वविद्यालय के अन्य प्रोफेसरों को भी छात्रों का मार्गदर्शन करना चाहिए.

इसका एक दूसरा पहलू यह भी हो सकता है कि देश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी बपसा के झंडे तले छात्र एकत्र होने लगे और यह छात्र संगठन देश के तमाम विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले फुले-अम्बेडकरी विचारधारा के छात्रों के लिए एक अवसर मुहैया करा दे. दलित दस्तक में बपसा के बारे में खबर प्रकाशित होने पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वहां बपसा की ईकाइ के गठन को लेकर दलित दस्तक के पास फोन भी आ चुका है. बपसा को इस दिशा में भी सोचना होगा.

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