… तब शर्मिंदा होकर रवीन्द्रनाथ कबीर की तरफ लौटे

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 जब रवीन्द्रनाथ यूरोपीय कवियों के संपर्क में आये तो उन कवियों ने रवीन्द्रनाथ से भारत की कविता के बारे में पूछा। रवीन्द्रनाथ ने भक्ति कवियों की चर्चा छेड़ी, चंडीदास, सूर, तुलसी इत्यादि। यूरोपिय कवियों ने जिज्ञासा की कि ये सब तो परलोक और भक्ति से संबंधित है, लेकिन गरीबों मजदूरों किसानों से जुड़ी, सामाजिक चेतना और जमीनी जीवन से संबंधित कोई कवि या कविता भारत मे हुई हो तो बताइए। तब शर्मिंदा होकर रवीन्द्रनाथ कबीर की तरफ लौटे।
कबीर एक क्रांतिकारी कवि और धर्मगुरु रहे हैं जिनकी समझ और रचनाओं पर इस्लाम का बड़ा प्रभाव रहा है। बाद में रवीन्द्रनाथ ने कबीर के पदों का अनुवाद किया और भारत में सामाजिक चेतना की कविताओं में जो शून्य बना हुआ था उसे भरने की कोशिश की। इस तरह भारत कबीर के माध्यम से यूरोप के बौद्धिक अभिजात्य में पहली बार सम्मानित हुआ। यह सामाजिक चेतना और क्रांतिचेतना भारत के तथाकथित मुख्यधारा के साहित्य और दर्शन में एक विजातीय तत्व है। यह बाहरी धक्के से आया है। यह जागरण ऊपर ऊपर से ओढ़ा गया है। भीतर अभी भी वही पुराना कोढ़ बैठा हुआ है।
https://www.youtube.com/watch?v=5XflN7q8-sc&t=60s
आज भारत के समाज में जो चल रहा है वह एक तथ्य है, भारतीय समाज की वर्तमान दशा एक हकीकत है। इसमें फैली बर्बरता और जहालत के मूल कारण के स्त्रोत की पहचान और इन कारणों की व्याख्या धर्मदार्शनिक सूत्रों और स्मृतियों से हो रही है। इसे कहते हैं समाज मनोविज्ञान का या समाजशास्त्रीय विश्लेषण का कार्यकारण संबन्ध। इस देश का वर्तमान समाज बर्बर और असभ्य है। यहां स्वेच्छा से और स्वतः उद्भूत पुनर्जागरण कभी घटित ही न हुआ, जो भी हुआ वो इस्लाम और ईसाइयत के धक्के से हुआ है।
इस्लामिक शासन में और बाद में उपनिवेश काल मे कुछ महत्वपूर्ण बदलाव भारत के समाज मे हुए हैं। वे बदलाव भारत के बाहर जन्मे दो वैश्विक और सभ्य धर्मों के प्रभाव में हुए। उसी से एक चलताऊ सा सामाजिक जागरण भारत मे घटित हुआ। इसीलिए यह जागरण उधार है, इसलिए भारत के समाज मे कोई मौलिक बदलाव न हो सका। उम्मीद करें कि यह पुनर्जागरण भविष्य में सँभव हो सकेगा।

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