कर्नाटक का मुख्यमंत्री कौन होगा, इसको लेकर लगातार मंथन जारी है। इस पर किसी भी वक्त फैसला आ सकता है कि कर्नाटक का ताज या तो डी के शिवकुमार को मिलेगा या फिर सिद्धारमैया को। इस बीच में कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत के बाद जो तमाम आंकड़े सामने आ रहे हैं, उसने साफ कर दिया है कि प्रदेश में दलित और आदिवासी समाज ने भाजपा को नकार दिया है और कांग्रेस को भर-भर कर वोट दिया है। यह तब हुआ है जब भाजपा ने वादा किया था कि कर्नाटक में सत्ता में आने पर वह इनका रिजर्वेशन बढ़ाएगी।
बावजूद इसके अगर समाज के इन दो महत्वपूर्ण हिस्सों ने भाजपा को खारिज कर दिया तो इसकी वजह क्या है? क्या यह भाजपा के लिए कर्नाटक के साथ-साथ केंद्र और तमाम दूसरे राज्यों के लिए भी खतरे की घंटी है? दरअसल कर्नाटक में दलितों और आदिवासियों ने किस तरह भाजपा के पसीने छुड़ा दिये हैं, उसे समझना जरूरी है।
कर्नाटक में अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी समाज के लिए 15 सीटें रिजर्व हैं। 2018 के चुनाव में भाजपा ने इसमें से 7 सीटें जीती थी। लेकिन इस बार वह एक भी सीट नहीं जीत सकी है। इसी तरह पिछले चुनाव में भाजपा ने अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित 36 सीटों में 16 पर जीत दर्ज की थी, जो कि इस बार 12 पर रुक गई। यानी भाजपा को दलित और आदिवासी समाज ने जोरदार झटका दिया है।.
भाजपा को मिला यही झटका कांग्रेस के लिए संजीवनी बन गया। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 7 एसटी सीट जबकि 12 एससी सीट जीती थी। जबकि इस बार कांग्रेस को अन्य समाजों के साथ दलित और आदिवासी समाज का भरपूर समर्थन मिला है। कांग्रेस पार्टी ने अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व 36 सीटों में से 21 पर जीत हासिल की है। जबकि जनजाति के लिए रिजर्व 15 सीटों में से 14 जीत ली है। एक सीट जनता दल सेकुलर के हिस्से आई है। यानी इन दोनों समाजों ने कांग्रेस की झोली में 35 सीटें डाली है।
अगर प्रदेश में जातीय समीकण को देखें तो आज तक की एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक की सियासत में सबसे मजबूत लिंगायत समाज का प्रभाव 67 सीटों पर है। जबकि वोक्कालिगा का 48 सीटों पर प्रभाव माना जाता है। इसके अलावा मुस्लिम समाज का प्रभाव 50 सीटों पर है, जबकि दलित समाज 36 सीटों पर प्रभाव रखता है। ब्राह्मणों की बात करें तो इस समाज का प्रभाव 15 सीटों पर है जबकि कोरबा का 10 और ओबीसी का 24 सीटों पर प्रभाव है।
ऐसे में दलितों और आदिवासियों का भाजपा से मोहभंग भारतीय राजनीति के लिए एक बड़ी खबर है। कर्नाटक के नतीजे कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के लिए सबसे अहम है। क्योंकि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा और खड़गे के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद यह पहला बड़ा चुनाव था। तो क्या यह माना जाए कि भाजपा की केंद्र से उल्टी गिनती शुरू हो गई है?
सिद्धार्थ गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं। पत्रकारिता और लेखन में रुचि रखने वाले सिद्धार्थ स्वतंत्र लेखन करते हैं। दिल्ली में विश्वविद्यायल स्तर के कई लेखन प्रतियोगिताओं के विजेता रहे हैं।