हर कोई यह मान कर चल रहा है कि कर्नाटक चुनाव का नतीजा त्रिशंकु होगा और जनता दल सेक्युलर के सहयोग के बिना किसी भी पार्टी की सरकार नहीं बनेगी. ऐसे में कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों की नजर जेडीएस की ओर है.
इस बीच कांग्रेस के मुख्यमंत्री प्रत्याशी सिद्धारमैया ने दलित मुख्यमंत्री की बात उठाकर कर्नाटक की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है. तो पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस ने भी कहा है कि अगर कांग्रेस सिद्दारमैया को मुख्यमंत्री नहीं बनाती है तो उसका समर्थन किया जा सकता है.
इन दोनों बयानों ने कर्नाटक में दलित मुख्यमंत्री की बहस को तेज कर दिया है. दलित मुख्यमंत्री की चर्चा तेज होने पर कर्नाटक में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम सबसे आगे दिखने लगा है. खुद खड़गे भी मुख्यमंत्री पद की चाहत रखते हैं और उन्होंने इस बात को स्वीकार भी किया है. कर्नाटक के दिग्गज कांग्रेसी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का कहना है कि कि वह खुद सीएम पोस्ट की रेस में हैं. खड़गे कहते हैं- ‘मैं मुख्यमंत्री का पद इसलिए नहीं चाहता कि मैं दलित हूं. मैं पार्टी का वरिष्ठ नेता हूं और इस नाते मेरे नाम पर विचार होना चाहिए.’
लेकिन इस पूरी बहस में सबसे बड़ा फैसला जेडीएस सुप्रीमो एचडी देवेगौड़ा का होगा. क्योंकि दलित मुख्यमंत्री की स्थिति में भी वह नाम कौन होगा, यह तय करने में देवेगौड़ा की भूमिका प्रमुख होगी. खगड़े के अलावा कांग्रेस के ही दो अन्य दिग्गज दलित नेता पीडब्ल्यूडी मंत्री एचसी महादेवप्पा और सात बार से कोल्लार के सांसद रहे केएच मुनियप्पा भी सीएम पद की रेस में बताए जा रहे हैं. कर्नाटक के राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में देवेगौड़ा खड़गे के नाम के बदले महादेवप्पा या मुनियप्पा के नाम पर समर्थन दे सकते हैं.
इस पूरे मामले में एक ट्विस्ट और है. प्रदेश में बसपा 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. ऐसे में अगर बसपा के दर्जन भर विधायक भी चुने जाते हैं और कोई तीसरी पार्टी इतनी ही सीटें से पिछड़ती है तो फिर बसपा भी महत्वपूर्ण होकर उभर सकती है. ऐसे में बाजी देवेगौड़ा के हाथ से निकल कर मायावती के हाथ में आ सकती है.
हालांकि कर्नाटक की राजनीति कैसी होगी, यह 15 मई को नतीजा आने के बाद ही साफ होगा. क्योंकि अगर किसी एक दल को बहुमत मिल जाता है तो फिर सारी बहस वहीं खत्म हो जाएगी और अगर विधानसभा त्रिशंकु रहा तो किसी के लिए भी सरकार बनाने की कवायद लंबी हो सकती है.
इसे भी पढ़ें–कर्नाटक चुनाव के खत्म होते ही बढ़ें पेट्रोल-डीजल के दाम
- दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करें https://yt.orcsnet.com/#dalit-dastak
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।