द्रविड़ मुनेत्र कड़गम यानी DMK प्रमुख एम करुणानिधि नहीं रहें. 94 साल की उम्र में 7 अगस्त को उनका निधन हो गया. द्रविड़ आंदोलन से जुड़े होने के कारण उन्हें दफनाया जाएगा. मद्रास हाईकोर्ट की अनुमति के बाद उन्हें चेन्नई के मरीन बिच पर दफनाया जाएगा. करुणानिधि राजनीति के वो दिग्गज थे, जिनके सामने से भारतीय राजनीति के लगभग सारे मुकाम गुज़रे थे. इस उम्र में भी करुणानिधि ही DMK के कर्ताधर्ता थे.
करुणानिधि के जीवन की तमाम बातें लोगों को पता है. मसलन, उन्होंने तीन शादियां की थी. सक्रिय राजनीति में आने से पहले वो तमिल फिल्मों में स्क्रिप्ट राइटर थे. फिल्मों से राजनीति में आने का उनका किस्सा भी किसी फिल्म की कहानी सरीखा ही है. राजनीति के इस नायक को कोई टक्कर दे सका तो वे तमिल फिल्मों के असली महानायक एमजीआर और उनकी शिष्या जयललिता ही थे. बावजूद इसके 1969 से लेकर 1977 का दशक ऐसा था जब करुणानिधि और तमिलनाडु की राजनीति एक-दूसरे के पर्याय थे और उन्हें टक्कर देने वाला कोई नहीं था. करुणानिधि पिछले 62 सालों में एक भी चुनाव नहीं हारे थे. फिलहाल वे थिरुवारुर सीट से MLA थे.
लेकिन जो बातें लोगों को नहीं पता है, उसका जिक्र करना भी जरूरी है. मसलन, खासकर उत्तर भारत के लोगों को यह बात कम पता है कि करुणानिधि को जातिवाद का सामना करना पड़ा था. उन्हें बचपन में ही संगीत सीखने के दौरान छूआछूत का शिकार होना पड़ा था. करुणानिधि का परिवार एक खास वाद्यंत्र बजाता था. बालक करुणानिधि के लिए भी यह सीखना जरूरी था, लेकिन उन्हें उनकी जाति के चलते कम वाद्ययंत्र सिखाये जाते थे. यह बात उन्हें बुरी लगती थी. इस कारण करुणानिधि का मन संगीत में नहीं लगा.
उनके मन पर इस घटना का गहरा प्रभाव पड़ा, जिसके बाद वह जातिवाद और भेदभाव के खिलाफ दक्षिण में बिगुल फूंकने वाले ‘पेरियार’ के ‘आत्मसम्मान आंदोलन’ से जुड़ गए. इस तरह करुणानिधि काफी कम उम्र में ही द्रविड़ लोगों के ‘आर्यन ब्राह्मणवाद’ के खिलाफ आंदोलन में शामिल हो गये.
जब सन् 1937 में तमिलनाडु में हिन्दी अनिवार्य भाषा के तौर पर लाया जा रहा था. करुणानिधि इस कदम के विरोध में उठ खड़े हुये. तब उनकी उम्र मात्र 14साल की थी. इस उम्र में ही वो इसके खिलाफ नारे लिखने लगे थे. इसी दौरान उनकी धारदार शैली पर ‘पेरियार’ और ‘अन्नादुराई’ की नजर गई. ये दोनों उस दौर में तमिल राजनीति के महारथी हुआ करते थे.
करुणानिधि के लेखन और बात रखने की असाधारण क्षमता से प्रभावित होकर इन्होंने करुणानिधि को अपनी पार्टी की पत्रिका ‘कुदियारासु’ का संपादक बना दिया. लेकिन देश की आजादी के साथ ही पेरियार और अन्नादुराई के रास्ते अलग हो गए और करुणानिधि अन्नादुराई के साथ उनके रास्ते पर चले आये. लेकिन अलग होने के बावजूद उनके पूरे जीवन पर पेरियार के विचारों का प्रभाव बना रहा. इसी प्रभाव की वजह से ईश्वर के अस्तित्व से करुणानिधि ने सीधा इंकार कर दिया था.
सितंबर, 2007 में दिया उनके भाषण का यह वाक्य उनकी शैली और विचारों की एक नज़ीर पेश करता है, जिसमें पेरियार से प्रभावित इस दिग्गज नेता ने कहा था-
“लोग कहते हैं कि सत्रह लाख साल पहले एक आदमी हुआ था. उसका नाम राम था. उसके बनाए पुल रामसेतु को हाथ ना लगायें. कौन था ये राम? किस इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट हुआ था? कहां है इसका सबूत?”
तमिलनाडु में पेरियार द्वारा लगाई गई और अन्नादुराई और करुणानिधि की संभाली गई गैर ब्राह्मणवादी, हिन्दी विरोधी राजनीति का बोलबाला आज तक है, क्योंकि उसे करुणानिधि जैसे बड़े नेता द्वारा मजबूत आधार मिला. करुणानिधि को दलित दस्तक की श्रद्धांजलि.
बसपा प्रमुख ने करुणानिधि को यूं दी श्रद्धांजली
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विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।