भारत की दलित महिलाओं द्वारा संचालित एक डिजिटल न्यूज़ नेटवर्क को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी कामयाबी और पहचान मिली है। इस न्यूज नेटवर्क का नाम है ‘खबर लहरिया’, जिसे उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखने वाली कविता देवी ने महिलाओं की एक टीम के साथ मिलकर शुरू किया था। खबर लहरिया स्थानीय भाषाओं में निकलने वाला आठ पन्नों का साप्ताहिक अखबार है, जो उत्तर प्रदेश और बिहार के 600 गाँवों में 80,000 पाठकों के बीच पहुंचता है। साथ ही वीडियो डाक्यूमेंट्री और वेबसाइट पर खबरें भी प्रकाशित होती हैं। इसी खबर लहरिया के हिस्से में एक विशेष सम्मान आया है।
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इस न्यूज़ नेटवर्क की शुरुआत, संघर्ष और सफलता की कहानी सुनाने वाली एक डॉक्यूमेंटरी “राइटिंग विद फायर” को अमेरिका के सन-डांस फिल्म फेस्टिवल 2021 में आडियंस और स्पेशल ज्यूरी अवार्ड से सम्मानित किया गया है। दलित दस्तक ने बीते छह फरवरी को इस नेटवर्क के बारे में एक खबर भी लगाई गई थी। निश्चित तौर पर यह पूरे वंचित समाज और खासकर वंचितों में भी वंचित महिलाओं के लिए एक शानदार खबर है।
एक तरफ जहां भारत में किसानों, मजदूरों और दलितों कि अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटा जा रहा है वहीं दलितों की आवाज को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलना एक बड़ी खबर है। बीते हफ्ते अमेरिका के साल्ट लेक सिटी में आयोजित सनडांस फिल्म फेस्टिवल में ‘वर्ल्ड सिनेमा डॉक्युमेंट्री कॉम्पिटिशन’ सेगमेंट में ‘राइटिंग विद फायर’ की स्क्रीनिंग की गई। इस सेगमेंट में दुनिया भर में उभरती प्रतिभाओं द्वारा बनाई गयी 10 नॉन-फिक्शन फीचर फिल्में शामिल की गयी थी। उन सभी को पछाड़ते हुए खबर लहरिया की डाक्यूमेंट्री अवार्ड जीतने में सफल रही।
खबर लहरिया पर आधारित “राइटिंग विद फायर” की कहानी इस न्यूज़ नेटवर्क की शुरुआत और इसके जमीनी संघर्ष पर आधारित है। इस डॉक्यूमेंटरी में मीरा, सुनीता और श्यामकली जैसी दलित महिला किरदारों को प्रमुखता से उभारा गया है। हम अपने दर्शकों को बता दें कि पूरी तरह दलित महिलाओं द्वारा संचालित खबर लहरिया नेटवर्क उत्तर प्रदेश मध्यप्रदेश की सीमा पर बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थानीय बुन्देली और अवधि भाषा में अपना काम कर रहा है। इस नेटवर्क द्वारा मुख्य रूप से जाति आधारित हिंसा व भेदभाव सहित महिला अधिकार के मुद्दों को उठाया जाता है।
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उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के सुरसा ब्लॉक के एक छोटे से गाँव ‘कुंजनपुरवा’ में जन्मी कविता देवी ने इसकी शुरुआत की थी। फिलहाल कविता तकरीबन तीस दलित महिला रिपोर्टर्स की मदद से यह नेटवर्क चला रही हैं। जानकारी के मुताबिक कविता देवी ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ की एकमात्र दलित सदस्य भी हैं। कविता का जीवन अपने आप में एक मिसाल है।
कविता की शादी मात्र बारह साल की उम्र में कर दी गयी थी। उन्होंने खुद अपनी मेहनत से पढ़ाई की और एक समाजसेवी संस्था के साथ महिला शिक्षा पर काम करती रहीं। कविता ने अपने इलाके में ‘महिला डाकिया’ नाम के बुन्देली न्यूजलेटर के लिए काम करते हुए पत्रकारिता सीखी। बाद में दिल्ली की समाज सेवी संस्था ‘निरंतर’ की मदद से उन्होंने ‘खबर लहरिया’ की शुरुआत की। लोगों ने उनका विरोध किया, लेकिन कविता नहीं रूकीं।
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खबर लहरिया डिजिटल न्यूज़ नेटवर्क है जो कथित मुख्यधारा की मीडिया द्वारा उपेक्षित खबरों की खबर लेता है। कविता से बार-बार पूछा जाता है कि आपके नेटवर्क में सिर्फ महिलायें क्यों हैं? इसपर कविता का जवाब होता है कि… पत्रकारिता सहित दुनिया के सभी कामों में पुरुषों का दबदबा है, हम इस स्थिति को बदलना चाहते हैं। और अब जब खबर लहरिया और उसकी डाक्यूमेंट्री को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिल गई है, साफ है कि कविता और उनकी टीम अपनी जिद्द को पूरा करने में कामयाब रही है।
संजय श्रमण गंभीर लेखक, विचारक और स्कॉलर हैं। वह IDS, University of Sussex U.K. से डेवलपमेंट स्टडी में एम.ए कर चुके हैं। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) मुंबई से पीएच.डी हैं।
Congratulations to the team members. Happy to know that their effort is recognised by global platforms.