गुरुवार को जब देश सोया हुआ था 18 साल की एक लड़की ने वो कर दिखाया, जिसका देश को पिछले कई सालों से बेसब्री से इंतजार था. उस लड़की का नाम हिमा दास है. आज देश में हर कोई हिमा दास का नाम जानता है. उस शानदार एथलीट ने वो कर दिखाया है जिसे करने से मिल्खा सिंह चूक गए थे, हिमा दास ने वो कर दिखाया है, जिसे पी.टी ऊषा नहीं कर पाईं थीं. देश के खेल के मैदान से जिस खबर का इंतजार सालों से था, वह इंतजार गुरुवार देर रात खत्म हो गया, जब फ़िनलैंड के टैम्पेयर शहर में हिमा दास ने IAAF विश्व अंडर-20 एथलेटिक्स चैंपियनशिप की 400 मीटर दौड़ स्पर्धा में सबको पछाड़ते हुए सोने का तमगा अपने नाम कर लिया. हिमा ने यह दौड़ 51.46 सेकेंड में पूरा किया. इसके साथ ही हिमा अंतरराष्ट्रीय एथलेटिक्स ट्रैक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय बन गई हैं.
अब हम आपको बताते हैं कि कौन है हिमा दास. हिमा दास असल के नौगांव नाम के जिले की रहने वाली हैं. एथलिट बनने से पहले हिमा को फ़ुटबॉल खेलने का शौक था. वह आस-पास के इलाके में छोटे-मोटे फ़ुटबॉल मैच खेलकर 100-200 रुपये जीत लेती थी. ये कुछ रुपये हिमा के परिवार वालों के लिए बहुत मायने रखते थे. क्योंकि कई बार तो इन्हीं पैसों से उसके घर का चूल्हा जलता था. हिमा के घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब है. उनके पिता एक छोटे किसान हैं और खेती-बाड़ी करते हैं, जबकि मां घर संभालती हैं.
हिमा के एथलीट बनने की कहानी जनवरी 2017 में शुरू हुई. हिमा राजधानी गुवाहाटी में एक कैम्प में हिस्सा लेने आई थीं. तभी निपुण दास की नज़र उन पर पड़ी. हिमा जिस तरह से ट्रैक पर दौड़ रही थी, निपुण दास को लगा कि इस लड़की में आगे तक जाने की काबिलियत है. हिमा ने निपुण को इतना प्रभावित किया कि वो हिमा के गांव में उनके माता पिता से मिलने पहुंच गए. उन्होंने हिमा के माता-पिता को बेटी की खासियत बताई और कहा कि वे हिमा को बेहतर कोचिंग के लिए गुवाहाटी भेज दें. अब दिक्कत यह थी कि हिमा के माता-पिता बेटी के गुवाहाटी में उनके रहने का खर्च तक उठाने की स्थिति में नहीं थे. हालांकि वो बेटी को आगे बढ़ते हुए देखना चाहते थे.
तब निपुण ने एक रास्ता निकाला. उन्होंने तय किया कि अगर हिमा के घरवाले उसे गुवाहाटी भेजने को तैयार हो जाएं तो हिमा के गुवाहाटी में रहने का खर्च वो खुद उठाएंगे. हिमा के घरवाले इसके लिए मान गए और इस तरह हिमा गुवाहाटी आ गई.
हिमा की सफलता की पटकथा यहीं से लिखी जानी शुरू हो गई. हिमा फुलबाल खेलती थीं तो उनमें काफी स्टेमिना था. निपुण जब हिमा को फ़ुटबॉल से एथलेटिक्स में आने के लिए तैयार करने लगे तो शुरुआत में उन्होंने 200 मीटर की तैयारी करवाई, लेकिन बाद में उन्हें एहसास हो गया कि हिमा 400 मीटर में अधिक कामयाब रहेगी. बस फिर क्या था…. हिमा दौड़ने लगी.
अप्रैल में गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ खेलों की 400 मीटर की स्पर्धा में हिमा दास छठे स्थान पर रही थीं. तो वहीं हालिया राष्ट्रमंडल खेलों की 4X400 मीटर स्पर्धा में भी वे शामिल थीं, हालांकि तब भारतीय टीम सातवें स्थान पर रही थी. लेकिन हिमा को सिर्फ स्वर्ण पदक दिख रहा था. वो इससे कम पर समझौते के लिए तैयार नहीं थीं. और आखिरकार हिमा ने जब फिनलैंड के टैम्पेयर में स्वर्ण पदक जीतकर वो कर दिखाया, जिसे न कर पाने की कसक पूरे देश को कई सालों से खल रहा था.
हिमा को मिली इस कामयाबी के बाद पूरा देश उन्हें बधाइयां दे रहा है. राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक ने उन्हें इस ऐतिहासिक कामयाबी के लिए ट्वीट कर बधाई दी है. हिमा ने भी सभी का धन्यवाद दिया है कि और कहा है कि वे देश के लिए स्वर्ण पदक जीतकर बेहद खुश हैं, वे आगे भी और अधिक मेडल जीतने की कोशिश करेंगी.
लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि बड़े-बड़े मैदानों में सारी सुविधाओं से लैस खिलाड़ी जब पीछे छूट जाते हैं तो वहीं पी.टी. उषा, मिल्खा सिंह और हिमा दास जैसे गरीबी और अभाव के बीच से निकले खिलाड़ी देश का नाम और नाक ऊंचा करते हैं. फिनलैंड में तिरंगा लहराती भारत की नई उड़न परी हिमा दास और उनकी प्रतिभा को पहचानने वाले कोच निपुण दास ने देश को फख्र करने का मौका दिया है.
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