सेना की 4.55 एकड़ जमीन से जड़े मामले में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा और उनकी गिरफ्तारी हो गई है। सोरेन के बाद झारखंड के नए मुख्यमंत्री से लिए चम्पाई सोरेन का नाम सामने आया है। ऐसे में तमाम लोग चम्पाई सोरेन के बारे में जानना चाहते हैं। साधारण कद-काठी, ढ़ीली शर्ट-पैंट और पैरों में चप्पल चंपई सोरेन की पहचान है। 67 साल के चम्पाई झारखंड विधानसभा में सरायकेला सीट से विधायक हैं। आम जनता के बीच लोकप्रिय और उनके हक के लिए लड़ जाने वाले चम्पाई को झारखंड में टाइगर कहा जाता है।
उनकी लोकप्रियता और पार्टी के प्रति ईमानदारी के कायल झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन और कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन भी हैं। यही वजह है कि इस मुश्किल घड़ी में दोनों ने उन पर भरोसा जताया।
चंपई सोरेन ने अपना राजनीतिक सफर साल 1991 में शुरू किया। तब उन्होंने सरायकेला सीट के उपचुनाव में निर्दलीय लड़कर चुनाव जीता और पहली बार विधानसभा पहुंचे। तब से लेकर अब तक साल 2000 के चुनाव के छोड़ दिया जाए तो सरायकेला की जनता ने हर बार उन्हें अपना नेता चुना। 2005 से लेकर अब तक वह लगातार छह बार इस सीट से विधायक रहे हैं।
प्रदेश में जब-जब झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार बनी, वो मंत्री मंडल में शामिल रहे। फिलहाल वह परिवहन और खाद्य एवं आपूर्ति विभाग का काम देख रहे थे। मैट्रिक पास चम्पाई सोरेन झारखंड को बिहार से अलग राज्य बनाने में शिबू सोरेन के साथ लड़े और तब से वह उनके भरोसेमंद हैं। अपने पिता की तरह हेमंत सोरेन भी चम्पाई सोरेन पर भरोसा करते हैं। और अपनी पत्नी कल्पना सोरेन के नाम पर सहमति नहीं बन पाने के बाद हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन पर भरोसा जताया।
हालांकि झारखंड की राजनीति में चम्पाई सोरेन का अपना कद है। वह शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के विश्वासपात्र तो हैं ही, लेकिन फकीराना अंदाज वाले और जनता की समस्यों को तुरंत हल करने में यकीन करने वाले इस नेता के अनुभव का लाभ भी झारखंड की जनता को निश्चित तौर पर जरूर मिलेगा। हालांकि चंपई सोरेन को झामुमो-कांग्रेस गठबंधन में नेता चुने जाने के बावजूद जिस तरह राज्यपाल द्वारा शपथ ग्रहण के लिए इंतजार कराया गया है, उससे एक नया विवाद हो गया है।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। इनकी दिलचस्पी खासकर ग्राउंड रिपोर्ट और वंचित-शोषित समाज से जुड़े मुद्दों में है। दलित दस्तक की शुरुआत से ही इससे जुड़े हैं।