राजनीति में कभी भी कुछ भी हो सकता है। एक ही पल में कोई अर्स से फर्श तो कोई फर्श से अर्स पर पहुंच सकता है। जब पंजाब के मुख्यमंत्री के लिए तमाम दिग्गजों के बीच दलित समाज के नेता चरणजीत सिंह चन्नी के नाम की घोषणा हुई तो यह कहावत फिर से सच हो गई। घोषणा के बाद अब चरणजीत सिंह चन्नी ने पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है। जब पिछले दिनों तमाम राजनीतिक दल दलित समाज के नेता को आगामी चुनाव में उप मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा कर रहे थे, कांग्रेस ने एक रविदसिया सिख या साफ कहें कि दलित समाज के नेता के हाथ में राज्य की कमान देकर बाजी मार ली है। लेकिन क्या चरणजीत सिंह चन्नी को चुनाव के महज कुछ महीनों पहले पंजाब का मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस पार्टी दलितों के बीच अपनी पकड़ को बढ़ा पाएगी, जो फिलहाल बसपा-अकाली गठबंधन की ओर जा रहे हैं।
इस पर चर्चा बाद में, पहले बात करते हैं पंजाब के पहले दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की। ऐसा नहीं है कि चन्नी उधार की राजनीति करते हैं और किसी बड़े नेता के पिछलग्गू हैं। बल्कि पंजाब की राजनीति में उन्होंने अपने दम पर अपना एक कद बनाया है। 15 मार्च 1963 को जन्मे चरणजीत सिंह चन्नी ने राजनीति की शुरुआत पार्षद पद से चुनाव लड़कर किया। वह तीन बार पार्षद रहें। वह नगर काउंसिल खरड़ के प्रधान रहे।
साल 2007 में उन्होंने चमकौर साहिब से निर्दलीय चुनाव जीतकर बड़ा धमाका किया। इसके बाद प्रदेश की राजनीति में हर कोई चरणजीत सिंह चन्नी का नाम जानने लगा। बाद में वह कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और 2012 और 2017 में लगातार दो बार कांग्रेस के टिकट पर चमकौर साहिब से चुनाव जीतकर प्रदेश की राजनीति में बड़ा नाम बनते गए। चन्नी की गिनती प्रदेश के बढ़े लिखे नेताओं में होती है। राजनीति शास्त्र में एमए चरणजीत सिंह के पास एमबीए और एएलबी भी डिग्री भी है।
कांग्रेस पार्टी के भीतर चरणजीत सिंह के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2015 में कांग्रेस पार्टी ने सुनील जाखड़ को नेता प्रतिपक्ष के पद से हटाकर चरणजीत सिंह चन्नी को नेता प्रतिपक्ष बनाया। 2017 में चन्नी को पहली बार कैबिनेट में शामिल किया गया। उनके कद का अंदाजा कैबिनेट में मिले उनके प्रोफाइल से भी लगाया जा सकता है। तमाम दलित नेताओं की तरह चरणजीत सिंह न तो सोशल जस्टिस मिनिस्टर हैं, न ही किसी आयोग के सदस्य या अध्यक्ष। बल्कि मुख्यमंत्री बनने तक चरणजीत सिंह के पास तकनीकि शिक्षा, इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग, इम्पलाइ जनरेशन, टूरिज्म व कल्चर अफेयर जैसे विभाग थे।
30 प्रतिशत दलित आबादी वाले पंजाब में पहली बार दलित समाज के व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाए जाने को लेकर निश्चित तौर पर देश भर में एक उत्साह है। सोशल मीडिया पर चरणजीत सिंह को बधाईयों का तांता लगा है। दलित समाज अब राजनीति के भीतर अपनी ताकत को महसूस कर रहा है। इसे बसपा-अकाली गठबंधन की पंजाब में बढ़ती ताकत के रूप में भी देखा जा रहा है।
लेकिन यहां सवाल यह है कि क्या चरणजीत सिंह आगामी विधानसभा चुनाव के पहले महज कांग्रेस की ओर से एक दलित चेहरा भऱ होंगे, जिसे रबड़ स्टांप की तरह इस्तेमाल कर के अगले विधानसभा चुनाव में किनारे लगा दिया जाएगा। कांग्रेस के इस कदम के बाद सबकी निगाहें कांग्रेस की ओर है। कांग्रेस की नियत में खोट है या फिर वह ईमानदार है, इस पर निर्भऱ करेगा कि क्या वह चरणजीत सिंह को आगामी विधानसभा चुनाव में भी मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करेगी??

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