डॉ. गेल ओमवेट (Dr. Gail Omvedt) नहीं रहीं। आज 25 अगस्त को उनका परिनिर्वाण हो गया। 81 साल की उम्र में महाराष्ट्र के कासेगांव में उनका निधन हुआ, जहां वह अपने पति भरत पाटंकर और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहती थीं। गेल ओमवेट के निधन के बाद यूं तो देश भर में उदासी है, और तमाम आम और खास लोगों ने उन्हें याद किया है, लेकिन दलित-बहुजन समाज और आंबेडकरी-फुले मूवमेंट से जुड़े लोगों के लिए गेल ओमवेट का जाना एक बड़े झटके की तरह है।
इसकी एक जायज वजह भी है। अमेरिका में जन्मी अमेरिकी नागरिक गेल ओमवेट 1978 के दौर में एक शोध के सिलसिले में भारत आईं। फुले-अम्बेडकरी विचारधारा ने उनपर इतना प्रभाव डाला कि फिर वो यहीं की होकर रह गईं। उन्होंने जीवन का बड़ा हिस्सा एक भारतीय नागरिक और यहां के दलित-उत्पीडित लोगों की आवाज उठाने वाली एक विदुषी के रूप मे जिया। उन्होंने दलितों, आदिवासियों के हक में मजबूती से आवाज उठाई। स्त्री मुक्ति आंदोलन और श्रमिक आंदोलन में सक्रिय रहीं। उन्होंने बुद्ध, फुले, आंबेडकर, मार्क्स और स्त्री मुक्तिवादि विचारक और संतों के विचार को एक साथ जिया।
उन्होंने न सिर्फ भारत के वंचितों और पीड़ितों के पक्ष में अपनी शोधपरक पुस्तकों के जरिए उनके आंदोलन और उनकी बातों को दुनिया भर में पहुंचाया, बल्कि जरूरत पड़ी तो सड़क पर उनके साथ खड़ी हुईं। उन्हें एक शोधार्थी और शानदार लेखक के रूप में भी याद किया जाएगा। एक ऐसी लेखक, जिनकी कलम ने भारत के शोषितों के दर्द को आवाज दी।
2 अगस्त 1941 को अमेरिका के मिनीपोलिस-मिनेसोटा शहर में जन्मी गेल ओमवेट ने कैलिफोर्निया स्थिति बर्कले विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीएचडी की उपाधि ली। इसके बाद ही वो एक शोध के लिए भारत आ गई थीं, जिसके बाद भारत ने उन्हें और उन्होंने भारत को अपना लिया। उन्होंने भारत के महाराष्ट्र राज्य को अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना। उन्होंने बाक़ायदा भारत की नागरिकता ली और उस समय अपनी एम.डी. की पढ़ाई छोड़ कर सामाजिक कार्य करने वाले डॉ. भरत पाटणकर से प्रेम विवाह किया।
डॉ. गेल की तकरीबन 25 से अधिक किताबे प्रकाशित हो चुकी है। बहुजन आंदोलन की दृष्टि से देखें तो उनके द्वारा लिखी गई महत्वपूर्ण पुस्तकों में- ‘कल्चरल रीवोल्ट इन कोलोनियल सोसायटी- द नॉन ब्राम्हीण मूवमेंट इन वेस्टर्न इंडिया’, ‘सिकिंग बेगमपुरा’, ‘बुद्धिज़म इन इंडिया’, ‘डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर’, ‘महात्मा जोतीबा फुले’, ‘दलित एंड द डेमोक्रेटिक रिव्ह्यूलेशन’, ‘अंडरस्टँडिंग कास्ट’, ‘वुई विल स्मॅश दी प्रिझन’, ‘न्यू सोशल मूवमेंट इन इंडिया आदि का नाम शामिल है।
उन्होंने भारत के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया भी, तो लगातार शोध पत्र और लेखों के जरिए दुनिया से संवाद करती रहीं। गेल ओमवेट की शख्सियत को ज्यादा समझने के लिए बेहतर है कि हम उन लोगों की भावनाओं को देखें, जिन्होंने गेल ओमवेट के निधन के बाद उन्हें याद करते हुए उनको श्रद्धांजली दी है-
महाराष्ट्र के नागपुर से चलने वाले महत्वपूर्ण मीडिया संस्थान, आवाज इंडिया के अमन कांबले ने गेल ओमवेट को याद करते हुए लिखा-
डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के विचारों से प्रभावित होकर, भारत में बहुजन, बौद्ध, श्रमिक और नारीवाद आंदोलन की इतिहास लेखक, हम सबकी बेहद प्रिय, प्रखर चिंतक, विचारक, ज्ञानवंत, मान्यवर कांशीराम की वैचारिक सहयोगी प्रोफ़ेसर गेल ऑम्वेट नहीं रहीं। नमन।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने उन्हें याद करते हुए लिखा-
कुछ ही देर पहले दुखी करने वाली यह बुरी खबर मिली। प्रख्यात लेखिका गेल ओमवेट (Gail Omvedt) नहीं रहीं। महाराष्ट्र के कासेगांव में उनका निधन हुआ, जहां वह अपने पति भरत पाटंकर और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सन् 1978 से ही रहती थीं।
गेल का जन्म भले अमेरिका में हुआ था पर उन्होंने जीवन का बडा हिस्सा एक भारतीय नागरिक और यहां के दलित-उत्पीडित लोगों की आवाज उठाने वाली एक विदुषी के रूप मे जिया! उन्होने बर्कले से समाजशास्त्र में पीएचडी किया। एक शोध अध्ययन के सिलसिले में वह भारत आई और फिर यहीं की होकर रह गयीं। अपनी कई शोधपरक पुस्तकों के जरिये उन्होने प्रबुद्ध, लोकतांत्रिक और समावेशी होने की कोशिश करते भारत की तलाश की है। उनकी कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें जो इस वक्त याद आ रही हैं- दलित एन्ड डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशन, अंडरस्टैन्डिग कास्ट: फ्राम बुद्ध टू अम्बेडकर एन्ड बियान्ड और अम्बेडकर: टुवर्ड्स एन इनलाटेन्ड इंडिया।
उनको पढ़ने का मेरा सिलसिला तो काफी पहले शुरू हुआ लेकिन उनसे मुलाकात और निजी परिचय बहुत बाद में हुआ। कुछ साल पहले एक संगोष्ठी में हम दोनों ने एक ही मंच के एक ही सत्र में अपनी-अपनी बात रखी। गेल की मौलिकता और सहजता से मैं प्रभावित था। एक मौलिक समाजशास्त्री और उत्पीड़ित व वंचित समाज की पक्षधर लेखिका के तौर पर गेल हमेशा याद की जायेंगी। उनके जीवनसाथी भरत पाटंकर और बेटी प्राची पाटंकर के प्रति हमारी शोक संवेदना।
सलाम और श्रद्धांजलि गेल ओमवेट!
वरिष्ठ लेखक, चिंतक और बहुजन डायवर्सिटी मिशन के एच.एल. दुसाध ने गेल ओमवेट को याद करते हुए लिखा-
बहुत ही स्तब्धकारी खबर। बहुजन चिंतन के दुनिया की विराट क्षति। मैडम गेल जैसा सॉलिड और मौलिक चिंतन बहुजन वर्ल्ड में शायद किसी ने किया हो। वह जितनी आला दर्जे की थिंकर थीं, उतनी ही जिंदादिल महिला भी थीं। उनसे मिलने पर जीवन के प्रति उत्साह का नया संचार होता था। उन जैसी विदुषी को भूलना मुश्किल है!
ट्रूथ सिकर्स के सुनील सरदार ने उन्हें याद करते हुए लिखा –
Dear sister Dr. Gail Omvedt went to Begumpura. We are thankful for her life and works of reconciliation. Her life is testimony of sacrificial life of purpose. We will miss her here in this side of eternity. Jay Bheem!! Jay Joti, Jay Baliraj. Sauté and goodbye Gail. See you soon.
वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने लिखा-
भारत में बहुजन, बौद्ध, श्रमिक और नारीवाद आंदोलन की इतिहास लेखक, हम सबकी बेहद प्रिय, प्रखर चिंतक, विचारक, ज्ञानवंत, मान्यवर कांशीराम की वैचारिक सहयोगी प्रोफ़ेसर गेल आम्वेट नहीं रहीं। नमन। आपकी लिखी बीसियों किताबें आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करती रहेंगी। मेरे लिए यह निजी क्षति है। मैंने जिनसे सबसे ज़्यादा सीखा, उनमें प्रो. ऑम्वेट प्रमुख हैं। अलविदा प्रोफ़ेसर!
पेशे से राजनीतिक विज्ञान की प्रोफेसर सीमा प्रकाश, जिन्होंने शोध के दौरान गेल ऑम्वहेट को पढ़ा है, उनको याद करते हुए लिखा है-
डॉ. अम्बेडकर के आंदोलन पर शोध के दौरान जिन विद्वानों की पुस्तकों को पढ़ने का अवसर मिला उनमें गेल ओमवेट की कृतियों ने अपने सरल एवं स्वाभाविक वैचारिक प्रवाह से सर्वाधिक प्रभावित किया। उन्होंने डॉ. अम्बेडकर के सपनों के भारत को प्रबुद्ध भारत के स्वप्न के रूप में दर्शाते हुए इसका संबंध बौद्ध धर्म की वैचारिक परम्परा और कबीर एवं रैदास के आदर्श समाज की कल्पनाओं से जोड़ा। एक महान विदुषी को हार्दिक श्रद्धांजलि एवं नमन।
नोट- इस खबर में ऊपर का हिस्सा चैतन्य दलवी की पोस्ट का सरसरी तौर पर अनुवाद एवं संपादित हिस्सा है। जबकि नीचे का हिस्सा सोशल मीडिया से लिया गया है।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।
मुझे गेल ओमवेट की सभी किताब चाहिए जो हिंदी में हो, उनके कार्य को नमन लाख लाख सलाम धन्यवाद धन्यवाद धन्यवाद
Amazon पर सर्च कर लिजिए। या गूगल कर लिजिए। वैसे Sage पब्लिकेशन ने भी उनकी कई किताबें प्रकाशित की है। आप देख सकते हैं।