कोरेगांव मामले को लेकर वाशिंगटन पोस्ट ने एक बड़ा खुलासा किया है। वाशिंगटन पोस्ट की खबर के मुताबिक रोना विल्सन और भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी 15 अन्य मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के खिलाफ मिले सबूत उनके लैपटॉप पर मैलवेयर सॉफ्टवेयर के जरिए प्लांट किये गए थे। यहां हम अपने दर्शकों को बता दें कि Malware एक ऐसा सॉफ़्टवेयर है जिसे विशेष रूप से किसी भी कंप्यूटर से डाटा चुराने या उसे नुकसान पहुंचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। तो इसी सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कर पहले कथित आरोपियों के कंप्यूटर में तमाम आपत्तिजनक बातें डाली गई, और फिर उन्हें गिरफ्तार किया गया। यह तथ्य वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक खबर के जरिए सामने आई है। इस रिपोर्ट को लिखा है निहा मसीह और जोआना स्लैटर ने, जो आज 10 फरवरी को वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित हुई है।
आर्सेनल कंसल्टिंग जो कि एक अमेरिकी डिजिटल फोरेंसिक फर्म है कि फोरेंसिक रिपोर्ट ने इसका खुलासा किया है कि किसी अज्ञात हैकर ने रोमा विल्सन की गिरफ्तारी से पहले विल्सन के लैपटॉप में मैलवेयर सॉफ्टवेयर के जरिए आपत्तिनजक पत्र डाले थे। पुणे पुलिस ने इन्हीं पत्रों को विल्सन के खिलाफ अपने शुरुआती साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया था। विल्सन के लैपटॉप से प्राप्त पत्रों में से एक माओवादी आतंकवादी को संबोधित किया गया था जिसमें उनसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने का अनुरोध किया गया था। इस पत्र में, विल्सन ने कथित तौर पर बंदूकें और अन्य गोला बारूद की आपूर्ति पर भी चर्चा की थी। लेकिन आर्सेनल कंसल्टिंग रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि ये पत्र विल्सन के कंप्यूटर में प्लांट किये गए थे और हैकर ने एक मैलवेयर की मदद से विल्सन के डिवाइस पर भी नियंत्रण और जासूसी की थी। हालांकि ये हैकर कौन था, आर्सेनल कंसल्टिंग अब तक इसकी पहचान नहीं कर पाई है। आर्सेनल ने दावा किया कि “यह सबसे गंभीर मामलों में से एक है जिसमें सबूतों से छेड़छाड़ शामिल है।”
जून 2016 में रोना विल्सन को एक व्यक्ति से कुछ ईमेल मिले, जिससे उनका परिचय एक साथी कार्यकर्ता के रूप में हुआ था। उस व्यक्ति ने कथित तौर पर उसे नागरिक स्वतंत्रता समूह के एक बयान को डाउनलोड करने के लिए एक लिंक पर क्लिक करने का आग्रह किया था। लेकिन क्लिक करने के बाद लिंक ने नेटवायर को तैनात किया, जिसने हैकर को विल्सन के डिवाइस का एक्सेस दिया। रिपोर्ट के मुताबिक हैकर ने मालवेयर का इस्तेमाल एक छिपे हुए फोल्डर को बनाने में किया था, जहां 10 गुप्त पत्र जमा किए गए थे। फोरेंसिक फर्म आर्सेनल के अनुसार अक्षरों को माइक्रोसॉफ्ट वर्ड के एक काफी एडवांस वर्जन का उपयोग करके तैयार किया गया था जो कि विल्सन के लैपटॉप पर भी मौजूद नहीं था।
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आर्सेनल की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विल्सन हैकर्स के इकलौते शिकार नहीं थे। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2020 में खुलासा किया था कि भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी कार्यकर्ताओं की मदद करने की कोशिश करने वाले नौ लोगों को भी ऐसे ही लिंक वाले ईमेल के जरिये निशाना बनाया गया था जो नेटवायर तैनात करते थे।
दिलचस्प बात यह है कि एमनेस्टी और आर्सेनल दोनों की रिपोर्टों में, एक ही डोमेन नाम और आईपी पते सामने आए हैं। इन पत्रों के आधार पर आरोपियों को गिरफ्तार किया गया और उन पर “राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़ने” और माओवादियों से सांठ-गांठ और उनकी विचारधारा फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इसके अलावा, भीमाकोरेगांव विजय दिवस के 200वें वर्षगाठ के दौरान हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद समाज में जातिगत टकराव और घृणा पैदा करने के भी आरोप लगाए गए थे।
यह घटना उस समय हुई जब लोग कोरेगाँव की लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए कोरेगाँव क्षेत्र में एकत्रित हुए थे। दलित समाज इसे “दमनकारी” उच्च जाति के शासकों पर जीत के दिन के रूप में मनाते हैं। पुलिस ने आरोप लगाया कि गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज और वरवारा राव सहित कार्यकर्ताओं ने 31 दिसंबर, 2017 को एल्गर परिषद की बैठक को पैसे से मदद की, जिसमें भड़काऊ भाषण दिए गए, जिसके कारण हिंसा हुई। इसके बाद जनवरी 2020 में मामला राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) को सौंपा गया था।
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पुलिस ने सुरेंद्र गाडलिंग, सुधीर धावले, महेश राउत, रोमा विल्सन और सोमा सेन को भी आरोपी बनाया था। बाद में इसी मामले में गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबड़े का नाम भी आया था और उन्हें भी जेल जाना पड़ा था। लेकिन जिस तरह से फारेंसिक रिपोर्ट में साफ हो गया है कि तमाम आपत्तिजनक बातें प्लांटेड थी। अब सवाल उठता है कि आखिर जिन लोगों को आरोपी बनाया गया, उसके खिलाफ साजिश रचने वाले कौन थे, और क्या अब सरकार और पुलिस साजिशकर्ताओं को बेनकाब करेगी।
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अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।
मान्यवर अशोक दास जी को कोटि-कोटि साधुवाद