चौबीस घंटे के समाचार इन दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुरक्षा को लेकर रोज खबरें दिखा रहे हैं. खबरों में आ रहा है कि पीएम मोदी की जान खतरे में है और अब उनका सुरक्षा घेरा इतना मजबूत हो जाएगा जिसमें मंत्रियों तक का जाना मुश्किल हो जाएगा. मीडिया में खबर आ रही है कि अब बड़े-बड़े मंत्री भी पीएम मोदी से बमुश्किल मिल पाएंगे. प्रधानमंत्री तक वही मंत्री पहुंच पाएंगे जिसको एसपीजी कमांडो इजाजत देंगे.
लेकिन दुसरी तरफ कुछ दिनों पहले एक चिंताजनक खबर आई. तीनों सेनाओं के प्रमुख देश के राष्ट्रपति की सुरक्षा में सेंघ लग गई थी. ओडिशा के विख्यात जगन्नाथ मंदिर में राष्ट्रपति के साथ धक्का मुक्की हो गई थी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उनकी पत्नी सविता के साथ मंदिर की यात्रा के दौरान वहां के सहायकों ने दुर्व्यवहार किया था.
राष्ट्रपति कोविंद अपनी पत्नी सविता के साथ 18 मार्च को इस प्रतिष्ठित मंदिर में पहली बार दर्शन के लिए गए थे. कोविंद दंपति की मंदिर यात्रा को लेकर वहां पर भारी सुरक्षा व्यवस्था तैनात की गई थी, लेकिन उनके मंदिर दर्शन के दौरान कुछ सहायक सुरक्षा प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए उनके करीब पहुंच गए और उन्होंने इस वीआईपी दंपति के साथ न सिर्फ धक्का-मुक्की की बल्कि कोहनी से उन्हें टक्कर भी मारी. राष्ट्रपति भवन ने घटना पर गहरी निराशा जताई है.
यह चौंकाने वाला मामला श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजीटीए) द्वारा दुर्व्यवहार के लिए अपने 3 आरोपी सहायकों को कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद सामने आया है. मंदिर से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कुछ सहायकों ने कोविंद दंपति के रास्ते को उस समय रोक दिया था जब वे मंदिर में पूजा करने जा रहे थे.
सवाल है कि एक तरफ सरकार प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर इतनी सजग है लेकिन राष्ट्रपति की सुरक्षा में लगातार खामी सामने आई है. पिछले दिनों एक मंदिर में यात्रा के दौरान उन्हें मंदिर की सीढ़ियों पर बैठकर पूजा करनी पड़ी थी तो दूसरी ओर जगन्नाथ मंदिर में राष्ट्रपति के साथ धक्का-मुक्की हो चुकी है. ऐसे में सवाल उठना लाजिमी है कि कहीं राष्ट्रपति की सुरक्षा को इसलिए तो हल्के में नहीं लिया जा सकता कि उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि कमजोर है. क्योंकि राष्ट्रपति की सुरक्षा में सेंध के बावजूद इस पर उतनी बहस नहीं हुई, जितनी प्रधानमंत्री की सुरक्षा को लेकर हो रही है. सवाल यह भी है कि अगर आज लालकृष्ण आडवाणी राष्ट्रपति होते या फिर कल वैंकेया नायडू राष्ट्रपति बनेंगे तो उनकी सुरक्षा ऐसी ही होगी?
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विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।
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