कुछ चीजों को तथाकथित ऊँची जात के लोगों ने अपना जातीय श्रेष्ठता दिखाने का बपौतीया अधिकार मान लिया है जैसे- मूँछ, सूट-बूट, जींस, सुनहरी मोजड़ी( जूती), सोने की मोटी सी चेन, गोरा रंग, घोड़े की सवारी, सिंह जैसे सरनेम, अच्छी कद-काठी आदि-आदि.
इसलिए जब कोई दलित इन चीजों में दिखता है तो इन सवर्णों के अंदर का जातिवाद ज़ोर मारने लगता है. इन दिनों मार्केट में जातीय दम्भ दिखाने वाले टीशर्ट-लोगों आदि भी खूब चल पड़े हैं. जातिवाद का ज़हर अचानक से मार्केट का फ़ैशन बन गया है. हालाँकि मार्केट वही बेचता है जो बिकता है, और दिनों जाति का दंभ भी बिक रहा है.
एससी-एसटी एक्ट में बदलाव के बाद जाति घृणा से भरे लोग अपने ऊँचे होने का बोध कराने के लिए अब खुले रूप में सामने आने लगें हैं.
नतीज़न ये दलितों के साथ मार-पीट, गाली-गलौज, हिंसा, हत्या, सामूहिक अपमान, परेड निकालना, उन्हें नंगा करना, जैसे कृत्यों पर उतर आते हैं. मुस्लिमों( पसमांदाओं) के साथ होने वाली मॉब लिंचिंग भी इसी प्रेक्टिसेस का हिस्सा है. ऐसी कोई भी अमानवीय घटना को ये अकेले नहीं बल्कि समूह में अंजाम देते हैं. क्योंकि इन्हें पता है कि अकेले कोई हरकत करेंगे तो बराबर की टक्कर मिलेगी.
दूसरी बात इस तरह की सामूहिक मारपीट और अपमान की घटना एक व्यक्ति नहीं बल्कि पूरे समुदाय को संबोधित होती है. इसलिए एक बड़े जनसमूह को डराने के लिए ये सामूहिक रूप से घटना को अंजाम देते हैं. कारण अलग-अलग गिना देंगे पर इन सब घटनाओं का एक ही सबब है सवर्ण होने, जात के ऊंचा होने की घोषणा और बहुजनों को ग़ुलाम बनाने के लिए व्यापक स्तर पर संबोधित करना. कई बार ये पूर्णतः नियोजित या प्रायोजित भी देखी गई हैं.
-दीपाली तायड़े (लेखिका पत्रकार हैं.)
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