लखनऊ। न चुनाव हुआ और न अभी ‘अनुमान भरे’ नतीजे आए हैं लेकिन मायावती ने अभी से ‘उपचुनाव’ के लिए जमीन तैयार कर दी है. पिछले पंद्रह सालों से सीधे चुनाव से दूर रहने वाली मायावती ने आंबेडकरनगर की रैली में कह दिया कि दिल्ली का रास्ता तो यहीं से जाता है. इसलिए अगर जरूरत पड़ी तो वह आंबेडकरनगर से ही चुनाव लड़ेंगी. मायावती ने दिल्ली का तीन बार का रास्ता इसी सीट (तब अकबरपुर) से तय किया है. हालांकि पिछले चुनाव में पार्टी ने अपनी ‘परंपरागत सीट’ गंवा दी थी.
सेफ सीट रही है आंबेडकरनगर
दरअसल आंबेडकरनगर मायावती की पुरानी सीट है. मायावती यहीं से चुनाव लड़ती रही हैं. या यूं कह लें कि जब मायावती इस सीट से चुनाव नहीं लड़ीं तब भी बीएसपी के खाते में ही यह सीट रही. तब आंबेडकरनगर लोकसभा सीट अकबरपुर के नाम से जानी जाती थी. मायावती सबसे पहले 1989 में बिजनौर लोकसभा सीट से संसद पहुंची थीं. उसके बाद 1998, 1999 और 2004 में मायावती अकबरपुर (अब आंबेडकरनगर) सीट से चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचीं. 2009 में भी यह सीट बीएसपी के पास ही रही.
इस बार आंबेडकरनगर में बीएसपी के विधायक रितेश पांडे को टिकट मिला है. रितेश पूर्व सांसद राकेश पांडे के पुत्र हैं. चूंकि बीएसपी और मायावती के लिए सबसे मुफीद सीट आंबेडकरनगर ही है ऐसे में उनका यहां से चुनाव लड़ने की अपील करना लोगों को जोड़ने सरीखा ही है. साथ ही बसपा की यह परंपरागत सीट उनकी ही होगी. मायावती ने रविवार को आंबेडकरनगर में आयोजित रैली में कहा कि अगर सब कुछ ठीक रहा तो वह इसी सीट से चुनाव लड़ेंगी. उन्होंने कहा कि सबको पता है कि दिल्ली का रास्ता आंबेडकरनगर की सीट से ही होकर जाता है.
जब 2014 के चुनाव चल रहे थे तब मायावती ने यह कहा था कि वह तो पहले से ही राज्यसभा सांसद हैं. उनका कार्यकाल 2018 में समाप्त होगा. इसलिए वह चुनाव नहीं लड़ेंगी.
इस लोकसभा चुनाव में माया ने कहा कि मेरे लिए महत्वपूर्ण है कि हमारा गठबंधन जीते. मेरे चुनाव लड़ने का सवाल है तो मैं कभी भी यूपी की किसी भी सीट से चुनाव लड़ सकती हूं.
एक और रैली में मायावती ने कहा कि मुझे लगता है कि यह पार्टी के हित में नहीं होगा, इसलिए मैंने 2019 के लोकसभा चुनाव से दूर रहने का मन बनाया है. एक चुनावी सभा में मायावती ने कहा था कि जरूरत पड़ने पर जब भी मेरा मन करेगा मैं किसी भी सीट को खाली कराकर वहां से चुनाव लड़ लूंगी.
आंबेडकरनगर का समीकरण
आंबेडकरनगर में एक मंत्री चुनाव लड़ रहे हैं और दूसरे मंत्री अपनी सरकार को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं. सारे जातीय समीकरण गठबंधन के लिए मुफीद हैं. फिर भी यहां जोरदार जंग है. टांडा के मोहम्मद इश्तियाक कहते हैं कि यहां हाथी का जोर है. वह कहते हैं कि आंबेडकरनगर के लिए मायावती ने बहुत कुछ किया है. वहीं, राजेंद्र सिंह कहते हैं कि इस बार जातीय समीकरण टूट सकते हैं. ऐसे में जाति को जोड़कर निष्कर्ष निकालना उचित नहीं. मोदी का नाम चल रहा है. जिन लोगों को उनकी योजनाओं से लाभ मिला है, उनमें अधिकांश मोदी के साथ हैं.
बीएसपी ने पूर्व सांसद राकेश पांडे के पुत्र रितेश को उतारा है. पिछले चुनाव में राकेश बीएसपी के टिकट पर बीजेपी से दो लाख वोटों से हार गए थे. तब दो ब्राह्मणों की टक्कर थी. बीजेपी से हरिओम पांडे थे और बीएसपी से राकेश पांडे. बीजेपी ने इस बार प्रत्याशी बदला और राज्य सरकार के मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा को बहराइच से लाकर मैदान में उतारा है. कांग्रेस प्रत्याशी उम्मेद सिंह का पर्चा ही खारिज हो गया.
साफ है यहां लड़ाई बीजेपी और गठबंधन के बीच है. बीएसपी के वरिष्ठ नेता लालजी वर्मा टांडा के हैं. बीएसपी के ही अन्य वरिष्ठ नेता राम अचल राजभर इसी जिले के हैं. ऐसे में बीएसपी को उम्मीद है कि गठबंधन के सहारे और जाति समीकरण के बल पर यहां पर हाथी जीत जाएगा. राकेश पांडे का ब्राह्मणों में प्रभाव है, लेकिन फिर भी यहां वोटों का बंटवारा है. यह कहना कठिन है कि कौन कितने प्रतिशत वोट ले जाएगा. बीएसपी कार्यकर्ता किशनलाल कहते हैं कि दलित वोट पार्टी को ही मिलेंगे. मुस्लिम पूरी तरह उनके साथ है. यादव मतदाता भी बीएसपी के साथ जा रहा है.
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