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नई दिल्ली। देश के तमाम राज्यों के दलित सवर्णों की गुंडई से परेशान होकर घर छोड़ने को विवश हैं. पलायन के अलावा दलित हिंदू धर्म छोड़कर बौध्द धर्म अपना रहे हैं. दलितों की ऐसी स्थिति को सरकार तमाशबीन बनकर देख रही है. अभी हाल ही में खबर सामने आई है कि महाराष्ट्र के लातूर ज़िले के रुद्रवाडी गांव में सवर्णों और दलितों के झगड़े के कारण एक गांव के सरपंच समेत 24 दलित परिवारों को अपना घर छोड़ दिया.
झगड़ा एक प्रेम प्रसंग को लेकर शुरू हुआ था. लेकिन केवल एक यही कारण नहीं है. दलितों को फैंसी कपड़े से लेकर, बाइक, मंदिर जाने, धूमधाम से शादी करने पर इस गांव के सवर्ण बौखला जाते थे और दलितों के साथ मारपीट करते. बीबीसी ने जब इसकी पड़ताल की तो कई चीजें सामनें आईं.
गांव छोड़ चुकी दलित सरपंच शालू बाई शिंदे अपना दर्द बयां करते हुए बताती है कि मैं तो बस नाम की सरपंच हूं. यहां के बदमाश सवर्ण अपने मनमाने ढंग से गांव पर राज करते हैं. कुछ बोलो तो जान से मारने की धमकी देते हैं. शालू बाई शिंदे कहती हैं कि ”इस तरह के झगड़े अब तक तीन बार हो चुके हैं. इससे पहले दो बार मतांग जाति के गुणवंत शिंदे इसका कारण बने थे.”
शालू बाई शिंदे के बेटे ईश्वर कहते हैं, “हम अब गांव वापस नहीं जाना चाहते. हम वहां कभी सम्मान के साथ नहीं रह पाएंगे. यहां तक कि हमारे नए कपड़े पहनने पर या रिक्शे पर तेज़ आवाज़ में म्यूज़िक बजाने पर भी वो लोग आपत्ति जताते हैं.” उन्होंने कहा, “मेरी कज़न मनीषा वैजीनाथ शिंदे की शादी की हल्दी की रस्म के लिए मारूति मंदिर गए. तब कुछ लड़के आए और हमें पीटने लगे. तब हम वहां से चले गए और अगले दिन गांव में शादी हुई.”
इससे पहले एक दलित लड़का व सवर्ण लड़की के बीच प्रेम प्रसंग था. इसको लेकर भी जमकर मारपीट की गई.
यहां सवर्ण मराठा जाति और अनुसूचित मतांग जाति के बीच झगड़े के बाद 24 दलित परिवार अपना घरबार छोड़कर फ़िलहाल गांव से 25 किलोमीटर दूर उदगीर के पास एक पहाड़ी पर बने टूटे-फूटे हॉस्टल में रह रहने को विवश हैं. पता नहीं सरकार-प्रशासन इनके लिए कब जागेगी?
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