भारत के मणिपुर राज्य में पिछले दो महीनों से जारी हिंसा की गूंज भले ही दिल्ली में बैठे सत्ताधारियों तक नहीं पहुंच रही हो, दुनिया में इसके कारण भारत की भारी फजीहत हो रही है। इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने सदन में इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कर दी है और सरकार को घेरा है।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फ्रांस दौरे के बीच, यूरोपीय संसद ने मणिपुर हिंसा पर एक प्रस्ताव पारित किया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि यूरोपीय संघ भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख सदस्यों द्वारा की गई राष्ट्रवादी बयानबाजी की कड़े शब्दों में निंदा करता है। हालांकि भारत सरकार ने इस पर पलटवार करते हुए इसे आंतरिक मामला बताया है।
मणिपुर हिंसा का जिक्र फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में चल रहे पूर्ण सत्र के दौरान तब हुआ जब मानव अधिकारों, लोकतंत्र एवं कानून के शासन के उल्लंघन के मामलों पर बहस हो रही थी। इस दौरान मणिपुर में जातीय झड़पों पर भी चर्चा हुई। मणिपुर हिंसा पर बहस को संसद के एजेंडे में बहस शुरू होने के दो दिन पहले ही शामिल किया गया था। मणिपुर की स्थिति पर एक प्रस्ताव ब्रसेल्स स्थित यूरोपीय संघ की संसद में रखा गया था।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस चिंता को समझने की बजाय भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि ईयू में संबंधित सांसदों को स्पष्ट कर दिया गया है कि यह पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है।
दूसरी ओर इस पूरे मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार घिरती जा रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर तंज कसते हुए कहा कि मणिपुर के मुद्दे पर यूरोपियन संसद तक चर्चा हो गई, लेकिन मोदी ने एक शब्द नहीं कहा। तो वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस मुद्दे पर सदन में प्रधानमंत्री की मौजूदगी में चर्चा कराए जाने की मांग की है।
मणिपुर में 3 मई से कुकी और मैतेई समुदाय के बीच हिंसा जारी है, जिसमें काफी जाने जा चुकी है। पिछले दिनों राहुल गांधी के मणिपुर दौरे के बाद से यह मुद्दा सुर्खियों में आया था और इस पर बहस तेज हो गई थी। जिसके बाद 12 जुलाई को यूरोपीय संसद ने इस पर बहस के बाद 13 जुलाई को मणिपुर पर एक प्रस्ताव पारित करते हुए भारत सरकार से हिंसा को रोकने और धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा के लिए तुरंत कार्रवाई करने का आवाह्न किया।
अब भारत सरकार भले ही इसे आंतरिक मामला कह कर अंतरराष्ट्रीय फजीहत से किनारा करना चाह रही है, लेकिन जिस तरह से मणिपुर में हिंसा को रोकने में सरकार उदासीन दिखी, वह बड़े सवाल खड़े करता है।