नई दिल्ली। बीजेपी के खिलाफ विपक्षी दलों का महागठबंधन बन सकने की संभावना ने हाल के महीनों में इस अटकलबाजी को हवा दी है कि पीएम नरेंद्र मोदी मई में होने वाले आम चुनाव में सत्ता से बाहर हो जाएंगे. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद इसके कुछ नेताओं ने लोकसभा चुनाव में 120-150 सीटें जीतने का अनुमान भी दे डाला है. ऐसा होने पर बीजेपी विरोध गठबंधन का नेतृत्व करते हुए कांग्रेस सत्ता में आ सकती है.
हालांकि उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती का जलवा बढ़ने से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का चांस कुछ कमजोर पड़ा है. एसपी और बीएसपी ने अपने गठबंधन में कांग्रेस को जगह नहीं दी. हालांकि दोनों दल रायबरेली और अमेठी में अपने उम्मीदवार नहीं उतारेंगे.
एसपी-बीएसपी का सपोर्ट न होने पर कांग्रेस हो सकता है कि यूपी की 80 में से केवल दो लोकसभा सीटें जीत पाए. ऐसा होने पर 543 सदस्यों की लोकसभा में कांग्रेस का आंकड़ा 100 तक पहुंचना भी मुश्किल होगा. कई क्षेत्रीय दलों को बीजेपी से डर तो है ही, वे कांग्रेस से भी सतर्क रहते हैं. उन्हें भले ही मोदी पसंद न हों, लेकिन गांधी को गले लगाने से वे हिचकते हैं. वे खुद अगुवा बनना चाहते हैं.
मायावती की संभावना मजबूत
ऐसी भी संभावना है कि एसपी-बीएसपी मिलकर पीएम पद के लिए मायावती को आगे बढ़ाएं, जबकि 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को यूपी के सीएम कैंडिडेट के रूप में पेश किया जाए. इससे दोनों की महत्वाकांक्षा पूरी होगी. यह गठबंधन यूपी में 60 सीटें जीतने की उम्मीद कर रहा है. 2014 के आम चुनाव के दौरान 80 में से 41 सीटों पर इन दोनों दलों को मिले कुल वोट एनडीए के वोट से ज्यादा थे. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में उनका कंबाइंड वोट शेयर 80 में से 57 लोकसभा क्षेत्रों में ज्यादा रहा.
सत्ता विरोधी रुझान से मोदी का वोट शेयर अगर और कम हो तो यह गठबंधन 57 से ज्यादा सीटें जीतने की भी उम्मीद कर सकता है. इस तरह यह संसद में क्षेत्रीय दलों का सबसे बड़ा ग्रुप बन जाएगा और पीएम पद पर दावा करने की स्थिति में होगा.
समाजवादी पार्टी ने लिया सबक
एसपी-बीएसपी के रिश्ते का इतिहास हालांकि मधुर नहीं रहा है. 1995 में मुलायम सिंह यादव की अध्यक्षता के समय एसपी के विधायकों ने उस गेस्ट हाउस पर हमला कर दिया था, जहां मायावती थीं. आरोप है कि वह भीड़ मायावती की जान ले सकती थी, लेकिन एक साहसी जूनियर पुलिस अफसर ने ऐसा होने नहीं दिया. मायावती ने उसके लिए मुलायम सिंह यादव को कभी माफ नहीं किया, लिहाजा दोनों के बीच गठबंधन संभव नहीं था. हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव से पहले अखिलेश यादव ने परिवार में तख्तापलट कर अपने पिता के हाथ से पार्टी की बागडोर अपने हाथ में ले ली थी.
मायावती को यह नजारा रास आया होगा. वह मुलायम से कभी हाथ नहीं मिला सकतीं, लेकिन आज वह अखिलेश से जुड़कर खुश हैं. एसपी पिछड़े वर्ग के अधिकतर वोट पाने की उम्मीद कर रही है. बीएसपी अधिकतर दलित वोट पाने की उम्मीद कर रही है. उनका सोचना है कि अपर कास्ट के वोटर बीजेपी और कांग्रेस में बंट जाएंगे, जिससे ये दोनों पार्टियां कमजोर हो जाएंगी.
कांग्रेस 2017 के विधानसभा चुनाव में एसपी के साथ थी. एसपी ने 403 विधानसभा सीटों में से 105 कांग्रेस के लिए छोड़ी थीं. बीजेपी ने लेकिन 312 सीटें जीतकर सबकी हवा खराब कर दी. कांग्रेस को सात सीटों से संतोष करना पड़ा. इससे एसपी ने यह नतीजा निकाला कि कांग्रेस कमजोर तो है ही, वह अपने वोट सहयोगी दलों को दिलवा भी नहीं सकती.
कांग्रेस को खारिज नहीं किया जा सकता
बिहार, कर्नाटक, तमिलनाडु और संभवत: हरियाणा में कांग्रेस के पास दमदार क्षेत्रीय सहयोगी हैं. हालांकि वेस्ट बंगाल, ओडिशा और तेलंगाना के क्षेत्रीय दल केंद्र में गैर-बीजेपी, गैर-कांग्रेस सरकार बनने से खुश होंगे. इसकी संभावना कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन से ज्यादा दमदार दिखने लगी है.
यूपी के ताजा घटनाक्रम के बाद मोदी का अपने दम पर जीतने का कुल चांस 50 प्रतिशत पर बना हुआ है, लेकिन कांग्रेस की अगुवाई वाले गठबंधन का चांस घटकर 10 प्रतिशत रह गया है. थर्ड फ्रंट गवर्नमेंट का चांस 40 प्रतिशत हो गया है. पीएम पद के लिए मोदी के बाद दूसरी सबसे दमदार दावेदार अब मायावती हैं. राहुल गांधी बहुत पीछे दिख रहे हैं.
हालांकि आने वाले दिनों में मोदी कम आमदनी वालों के लिए बेसिक इनकम और अयोध्या में राम मंदिर बनाने की योजना की घोषणा कर सकते हैं या पाकिस्तान पर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कर सकते हैं. या हो सकता है कि ग्लोबल इकनॉमी में मंदी का साया मोदी सरकार को घेर ले. अभी कुछ भी फाइनल नहीं है.
श्रोत-नवभारत टाइम्स
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