भाजपा के खिलाफ बनाने की खातिर विपक्षी दलों ने 10 दिसंबर को महाबैठक करने का ऐलान किया है. यह बैठक दोपहर 3.30 बजे से पार्लियामेंट एनेक्सी में होना तय है. बैठक को लेकर समाजवादी पार्टी ने अपनी सहमति दे दी है… तो वहीं इस बैठक में तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी, राजद के तेजस्वी यादव, तेलगु देशम पार्टी के अध्यक्ष और बैठक के मुख्य संयोजक चंद्रबाबू नायडू, एनसीपी के शरद पवार, जेडीएस के एच.डी. कुमारास्वामी सहित नेशनल कांफ्रेंस के फारुक अबदुल्ला के पहुंचने की पूरी संभवना है. उम्मीद यह भी जताई जा रही है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी इस बैठक में हिस्सा लेने आ सकते हैं. लेकिन इन सबके बीच सबकी नजरें बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती पर टिकी है, जिन्होंने इस बैठक को लेकर अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं. न तो बसपा ने इस बैठक में शामिल होने से इंकार किया है, और न ही शामिल होने को लेकर ही कोई बयान दिया है.
हालांकि विपक्षी दल इसकी तैयारी में भी हैं कि बसपा की ओर से किसी के शामिल नहीं होने पर यह बैठक प्रभावित न हो. लेकिन असल में ऐसा है नहीं. साफ है कि मायावती या फिर बसपा के किसी प्रतिनिधि का इस बैठक में जाना जहां इस विपक्षी गठबंधन को मजबूती देगा तो वहीं बसपा की अनुपस्थिति से विपक्षी गठबंधन को झटका तो लगेगा ही. ऐसे में सवाल यह है कि आखिर बसपा मुखिया मायावती इस बैठक को लेकर अपनी चुप्पी क्यों साधे हुए हैं?
दरअसल इसकी सबसे बड़ी वजह गठबंधन को लेकर मायावती की वो सोच है, जिसको वह पहले भी जाहिर कर चुकी हैं. मायावती का कहना रहा है कि पहले सीटों का बंटवारा हो जाए फिर गठबंधन के साथ मंच साझा किया जाए. लेकिन अभी उत्तर प्रदेश में सीटों का फाइनल बंटवारा नहीं हुआ है, जिसकी वजह से वो विपक्षी बैठक को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं और फिलहाल चुप हैं. वहीं विपक्ष के लिए मायावती इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि देश के हर राज्य में कम या ज्यादा उनके वोटर मौजूद हैं.
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि अगर 10 दिसंबर की बैठक में बसपा शामिल नहीं होती हैं तो क्या बिना बसपा के विपक्षी गठबंधन को धार मिल पाएगी.
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