भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण उपरान्त लगभग 218 वर्षों के बाद विश्व के तमाम देशों को अपने धम्म-विजय अभियान द्वारा विजित करने वाले महान सम्राट अशोक ने इसी भारत-भूमि पर राज्य करना प्रारम्भ किया. न्यग्रोध नामक सात वर्षीय श्रामणेर के ‘अप्पमाद’ (अप्रमाद) से संबंधित धर्मोपदेश को सुनकर सम्राट अशोक के मन में बुद्ध, धम्म व संघ के प्रति श्रद्धा व भक्ति उत्पन्न हुई. जब सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म में आस्था उत्पन्न हुई तो सम्राट ने युद्ध-विजय को त्यागकर अहिंसा व धम्म-विजय का अभियान शुरू किया. सम्पूर्ण जम्बुद्वीप में बहुजनों के सुख व हित के लिए बहुत सा धम्म-कार्य करने के तद्नन्तर अपने आचार्य मोग्गलिपुत्ततिस्स से पूछा,‘‘भगवान बुद्ध के कितने उपदेश हैं?’’ तब मोग्गलीपुत्ततिस्स ने बताया-‘‘राजन् भगवान बुद्ध के 84000 उपदेश हैं.’’ सम्राट अशोक ने 84000 धर्म-स्कन्धों की पूजा करने व श्रद्धा व्यक्त करने के लिए सम्पूर्ण जम्बुद्वीप के 84000 नगरों में विहार, स्तूप व चैत्य बनवाकर एक ही दिन सबकी पूजा की और सम्पूर्ण जम्बुद्वीप में दीप प्रज्जवलित करवाया गया. तमाम विद्वानों का ऐसा मनाना है कि इसी घटना के बाद इसी दिन हमारे देश में दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है. जो राजा पहले ‘चण्डासोक’ था इसी घटना के बाद से अब ‘धम्मासोक’ नाम से प्रसिद्ध हो गया. प्रव्रज्या को राज्याभिषेक से ऊंचा जानकर सम्राट ने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को बहुत बड़े समारोह के साथ प्रव्रजित करवाया. इतना ही नहीं बल्कि सम्राट अशोक के ही संरक्षण में सुप्रसिद्ध तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन देश की राजधानी पाटलिपुत्र में हुई इसी तृतीय बौद्ध संगीति के परिणामस्वरूप ही मोग्गलिपुत्ततिस्स की अध्यक्षता एवं महान सम्राट अशोक के संरक्षण में विदेशों में भगवान बुद्ध के धम्म के प्रचार व प्रसार की योजना बनायी गयी. बाह्य देशों में धम्म के प्रचार व प्रसार के लिए नौ समूह बनाकर भेजे गये. इस प्रकार सम्राट अशोक का धम्म-दायित्व पूर्ण हुआ.
15 मार्च 1934 को पंजाब प्रान्त के रोपण जिले में ख्वासपुर गांव में जन्में मान्यवर कांशीराम बाबा साहेब के ऐसे श्रेष्ठ अनुयायी हुए कि उन्हें डॉ. अम्बेडकर के आन्दोलन का उत्तराधिकारी कह सकते हैं. बाबा साहेब अम्बेडकर के परिनिर्वाण उपरान्त एक वर्ष के बाद ही सन् 1957 में अपनी 23 वर्ष की उम्र में ही कांशीराम जी ने बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के आन्दोलन को बड़ी तीव्रता के साथ समझने का प्रयास किया. उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत के बहुसंख्यक समाज को राजनीति करने के तौर-तरीके सिखाने एवं निष्कर्ष के रूप में बौद्ध धम्म की तरफ प्रेरित करने में लगाया.
भगवान तथागत गौतम बुद्ध के धम्म-सिद्धान्त ‘बहुजन हिताय- बहुजन सुखाय’ से प्रभावित होकर और इसे ही आदर्श मानते हुए मान्यवर कांशीराम साहब ने 14 अप्रैल 1984 को ‘बहुजन समाज पार्टी’ की स्थापना की. मान्यवर कांशीराम जी ने सम्पूर्ण भारत देश को ही अपना कार्य क्षेत्र बनाया परन्तु उत्तर प्रदेश को अपने आन्दोलन के लिए अधिक उर्वरा प्रदेश मानते हुए उत्तर प्रदेश को अपनी प्रयोगशाला के रूप में स्वीकार किया और अपने अनुयायियों को कहा- ‘‘मेरे सपनों का भारत सम्राट अशोक के भारत जैसा होगा, यदि मानवतावाद को इस देश में लाना है तो मानवता लाने के लिए भारत को बौद्धमय बनाना जरूरी है.’’ अपने लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ते हुए इसी प्रकार अपने संघर्षों के निचोड़ के रूप में उन्होंने 30 मार्च 2002 को नागपुर के उॅटखाना में एक विशाल सभा को सम्बोधित करते हुए कहा था- ‘‘मैंने फैसला किया है कि 2006 में जब बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के धर्म परिवर्तन के 50 साल पूरे होंगे, तो हम लोग उत्तर प्रदेश में चमार समाज के लोगों को ‘सलाह देंगे’ कि आप लोग ‘बौद्ध धर्म अपनाएँ’ और मुझे पूरा भरोसा है कि मेरी सलाह को मानकर सिर्फ उत्तर प्रदेश में 2 करोड़ से ज्यादा चमार समाज के लोग बौद्ध धर्म अपनायेंगे इसलिए बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का जो दूसरा काम आज तक भी अधूरा रहा है, उसको भी हम लोग आगे बढ़ायेंगे.’’
वर्तमान समय में मान्यवर कांशीराम जी के भी करोड़ों अनुयायी हैं. मान्यवर कांशीराम जी ने अपने उन करोड़ों अनुयायियों में से अपनी परम शिष्या कुमारी मायावती जी को 15 दिसम्बर 2001 को अपने आन्दोलन की जिम्मेवारी देते हुए अपने आन्दोलन का उत्तराधिकारी घोषित किया. अपने आन्दोलन की जिम्मेवारी कुमारी मायावती के कन्धें पर डालते हुए उन्हें भारत में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार व संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध किया. अपने परिनिर्वाण से पूर्व मान्यवर कांशीराम जी ने अपनी वसीयत लिखी- ‘‘मेरी मृत्यु के बाद मेरा अन्तिम संस्कार बौद्ध रीति से ही होना चाहिए.’’ मान्यवर कांशीराम जी ने नागपुर, महाराष्ट्र में यह उद्घोषणा की थी कि 14 अक्टूबर 2006 को जब बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर के दीक्षा दिवस 14 अक्टूबर 1956 कि स्वर्ण जयंती मनायी जायेगी तो उस अवसर पर वे उत्तर प्रदेश के लगभग 2 करोड़ चमारों के साथ बौद्ध धर्म की दीक्षा लेंगे. परन्तु 2003 ई. में ही उन्हें ब्रेन अटैक जैसी खतरनाक बीमारी हो गयी और वे अस्वस्थ हो गये. लगातार 3 वर्षों के इलाज के बाद 14 अक्टूबर 2006 से पाँच दिन पहले ही 9 अक्टूबर 2006 को उनका परिनिर्वाण हो गया. इस प्रकार मान्यवर कांशीराम बौद्ध धर्मान्तरण की अपनी की हुई भविष्यवाणी पूर्ण नहीं कर सके.
डॉ. अम्बेडकर प्रणीत नवबौद्धों के आन्दोलन के मुखिया मान्यवर कांशीराम की शिष्या कुमारी मायावती वर्ष 1995, 1997, 2002 और 2007 में जब उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं तो उन्होंने मान्यवर कांशीराम के उत्तराधिकार को आगे बढ़ाते हुए वर्ष 1997 ई. में सुप्रसिद्ध इन बौद्ध तीर्थ-स्थलों के नाम पर नवीन जिलों का गठन किया. तीर्थ-स्थलों के नाम पर नवनिर्मित जनपदों की ही प्राथमिक प्रेरणा से तत्कालीन मुख्यमंत्री बहन कुमारी मायावती ने भगवान बुद्ध और उनकी माँ के नाम पर भी नये जिलों का गठन किया. इतना ही नहीं बल्कि आधुनिक भारत में बौद्ध धर्म के पुर्नरुद्धारक बोधिसत्व बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर व उनकी पत्नी रमाबाई और उनके बौद्धमय भारत बनाने के सपने को साकार करने वाले मान्यवर कांशीराम के नाम पर भी नये जनपदों का निर्माण किया. बहन कुमारी मायावती ने भगवान बुद्ध के मानवतावादी श्रमण संस्कृति को अपना आदर्श बनाने वाले सन्तों, गुरुओं एवं महापुरुषों के नाम पर भी नये जनपदों का गठन कर उत्तर प्रदेश में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार किया.
इस प्रकार बहन कुमारी मायावती ने 20 सितम्बर सन् 1995 को सिद्धार्थ नगर की स्थापना, बुद्ध पूर्णिमा के दिन 25 मई सन् 1997 को जिला श्रावस्ती की स्थापना, 4 अप्रैल सन् 1997 को जिला कौशाम्बी और 22 मई सन् 1997 को पडरौना का नाम बदल कर कुशीनगर कर दिया. इतना ही नहीं बल्कि भगवान गौतम बुद्ध के नाम पर दिनांक 6 मई सन् 1997 को जिला गौतम बुद्ध नगर की स्थापना एवं दिनांक 6 मई सन् 1997 को भगवान गौतम बुद्ध की माँ महामाया के नाम पर जिला महामाया नगर की स्थापना किया. बुद्धकाल में कण्णकुज्ज नगर के रूप में विख्यात बौद्ध तीर्थ-स्थल के परिक्षेत्र में 18 सितम्बर सन् 1997 को जिला कन्नौज की स्थापना किया. भारत में बौद्ध धर्म का पुर्नरुत्थान करने वाले डॉ. बी.आर. अम्बेडकर और उनकी पत्नी के नाम पर नवनिर्मित जनपद डॉ. अम्बेडकर नगर (20 सितम्बर सन् 1995), भीम नगर (28 सितम्बर सन् 2011) एवं रमाबाई नगर (18 सितम्बर सन् 1997) का गठन किया. मान्यवर कांशीराम के नाम पर नवनिर्मित जनपद कांशीराम नगर (सन् 2009) और बौद्ध सिद्धान्तों एवं बौद्ध शब्दावली के नाम पर नवनिर्मित जनपद पंचशील नगर (28 सितम्बर सन् 2011) एवं प्रबुद्ध नगर (28 सितम्बर सन् 2011) का ऐतिहासिक गठन किया. इतना ही नहीं बल्कि श्रमण-संस्कृति को मानने वाले संतों-गुरूओं व महापुरुषों के नाम पर भी नवीन जिलों का गठन किया गया है जिसमें संत रविदास नगर, संत कबीर नगर, ज्योतिबाराव फूले नगर एवं छत्रपति शाहू जी महाराज नगर इत्यादि प्रमुख हैं.
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एवं राष्ट्रीय संग्रहालय के निर्देशन में बौद्ध तीर्थ-स्थलों से प्राप्त पुरातात्विक सामग्री के संरक्षण हेतु उत्तर प्रदेश में पहला संग्रहालय 1910 ई. में बौद्ध तीर्थ-स्थल सारनाथ (षिपत्तन मृगदाववन) में स्थापित हुआ था, जिसमें बुद्धकाल से लेकर 12वीं शताब्दी तक के पुरावशेष संग्रहित हैं. सन् 1910 के बाद इस दिशा में किसी भी सरकार ने कोई भी महत्वपूर्ण कार्य नहीं किया. पहली बार बहन कुमारी मायावती ने संग्रहालयों के विकास के क्रम में उत्तर प्रदेश में अभूतपूर्व कार्य किया. 31 अगस्त 2002 को संग्रहालय निदेशालय के रूप में उत्तर प्रदेश में स्वतंत्र निदेशालय की स्थापना किया. राज्य संग्रहालय, बनारसी बाग, लखनउ के परिसर के पुराने भवन में इस निदेशालय को स्थापित किया गया. इस निदेशालय की स्थापना के पूर्व ही कुमारी मायावती जी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में यत्र-तत्र बिखरी पुरातात्विक सम्पदा के संग्रह, संरक्षण, अभिलेखीकरण व प्रदर्शन के लिए एवं शोध के साथ ही इस क्षेत्र के गरिमामय इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व की जानकारी जनसामान्य को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश शासन द्वारा दिनाँक 04 मई, 1997 को ‘राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर’ की स्थापना किया. पूर्वी उत्तर प्रदेश बौद्ध धर्म के उद्भव और विकास का हृदय स्थल रहा है. बुद्ध के जीवन की घटनाओं से संबंधित स्थल लुम्बिनी, देवदह, कोलियों का रामग्राम एवं तथागत की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर इत्यादि इसी क्षेत्र से संबंधित हैं.
भारत के बौद्ध स्थलों में कुशीनगर (कुशीनारा) का प्रमुख स्थान है. भगवान बुद्ध ने लगभग 80 वर्ष की अवस्था में अपनी चारिका पूर्ण करने के पश्चात कुशीनारा के उपवत्तन नामक शालवन में महापरिनिर्वाण को प्राप्त किया था, जिसे आज कुशीनगर कहा जाता है. इस पवित्र स्थल पर असंख्य पर्यटक एवं बौद्ध धर्मानुयायी प्रति वर्ष भगवान बुद्ध को श्रद्धाजंलि अर्पित करने आते हैं. कुशीनगर की धार्मिक महत्ता एवं समृद्ध ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक धरोहर ने कई देशों एवं विभागों को इस क्षेत्र में अपने धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठन स्थापित करने की प्रेरणा दी और परिणामस्वरूप यह स्थल सम्पूर्ण विश्व में आकर्षण का केन्द्र बन गया. कुशीनगर की पुरातात्विक सम्पदा सहित भारतीय संस्कृति को संकलित तथा सुरक्षित करने के उद्देश्य से कुमारी मायावती ने शासन द्वारा 04 मई, 1997 को कुशीनगर में ‘राजकीय बौद्ध संग्रहालय, कुशीनगर’ की स्थापना किया.
भगवान बुद्ध की क्रीड़ास्थली एवं युवावस्था तक कर्मस्थली होने के कारण कपिलवस्तु भी बौद्ध तीर्थ-स्थल के रूप में प्रसिद्ध है. जिसकी पहचान सिद्धार्थ नगर जिले में स्थित पिपरहवाँ नामक स्थान से की गयी है. जहाँ पर देश-विदेश से लाखों की संख्या में पर्यटक पर्यटन हेतु आते हैं. पिपरहवाँ में ही बुद्ध के अस्थि-अवशेषों से भरा हुआ कलश प्राप्त हुआ. जिस पर ब्राह्मी एवं खरोष्ठी, दोनों लिपियों में लेख लिपिबद्ध हैं. बौद्ध तीर्थ-स्थल कपिलवस्तु की महत्ता को दृष्टिगत रखते हुए बौद्ध हैरिटेज सेन्टर, पिपरहवाँ की योजनान्तर्गत तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमारी मायावती जी ने ‘राजकीय बौद्ध संग्रहालय पिपरहवाँ, सिद्धार्थनगर’ की स्थापना करवाया. इसी श्रृंखला में कुमारी मायावती ने रामपुर जनपद में ‘भीमराव अम्बेडकर संग्रहालय एवं पुस्तकालय’ का भी निर्माण करवाया. इस संग्रहालय के मुख्य द्वार पर डॉ. अम्बेडकर के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं को कालाक्रमानुसार लिपिबद्ध कर प्रदर्शित किया गया है.
शैक्षणिक विकास के क्रम में तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमारी मायावती जी ने उत्तर प्रदेश में उच्च शिक्षा की दृष्टि से तकनीकी एवं प्रबंधन में डिग्री एवं डिप्लोमा देने वाले समस्त महाविद्यालयों को दो भागों में विभाजित कर उन्हें ‘गौतम बुद्ध प्राविधिक विश्वविद्यालय (Goutam Buddh Technical University) एवं ‘महामाया प्राविधिक विश्वविद्यालय (Mahamaya Technical University) से सम्बद्ध कर दिया. शिक्षा की दृष्टि से ‘महामाया गरीब बालिका आशीर्वाद योजना’ का निर्माण किया गया जिसके तहत प्रत्येक वर्ष लगभग पांच लाख बालिकाओं को लाभान्वित किया. इसके अलावा ‘महामाया गरीब आर्थिक मदद योजना’ के तहत बालिकाओं को शिक्षित करने के लिए विशेष रूप से कार्य किया गया है. डॉ. अम्बेडकर के नाम पर भी और इतना ही नहीं बल्कि भगवान बुद्ध की विचारधारा से प्रभावित और मानवता के लिए काम करने वाले और कई सन्तों, गुरुओं व महापुरुषों के नाम पर सैकड़ों शैक्षणिक संस्थान खोले गये. कुमारी मायावती के शासनकाल में उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से उन्हें संचालित किया गया, जिनके माध्यम से डॉ. अम्बेडकर और बुद्ध की विचारधारा को बढ़ाने के लिए बल प्रदान किया गया.
बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अभिप्रेत गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय का भगवान बुद्ध के नाम पर मात्र नामकरण ही नहीं किया बल्कि शिक्षकों एवं कर्मचारियों के रहने के लिये पंचशील आवासीय परिसर का निर्माण, परिसर में निर्मित महामाया शांति सरोवर के नाम से दर्शनीय स्थल का निर्माण, विश्वविद्यालय के मुख्य मार्ग का नामकरण सिद्धार्थ गौतम मार्ग, बाह्य परिधि मार्ग को बौद्ध परिपथ तथा आन्तरिक परिधि मार्ग को महामाया परिपथ का नाम दिया जाना, विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार का नामकरण महामाया द्वार और गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में विपस्सना विद्या के अभ्यास हेतु महात्मा ज्योतिबाराव फूले विपस्सना ध्यान भावना केन्द्र की स्थापना इत्यादि का कार्य बहन कुमारी मायावती जी के बौद्ध धर्म के पुर्नरुत्थान की दिशा में ऐतिहासिक कार्य है.
सामाजिक कल्याण के विकास के क्रम में बहन जी ने उत्तर प्रदेश में सामाजिक कल्याण की कई योजनाओं में भगवान बुद्ध द्वारा उपदेशित ‘बहुजन हिताय-बहुजन सुखाय’ की नीति का अनुसरण किया है. भगवान बुद्ध और बौद्ध धर्म के पुर्नरुद्धारक डॉ. अम्बेडकर के ‘समता मूलक समाज की स्थापना’ के सिद्धान्तों के आधार पर कुमारी मायावती जी ने अपनी योजनाएं निर्मित की और उन योजनाओं का नामकरण भगवान बुद्ध की मां महामाया व डॉ. अम्बेडकर के नाम पर किया. सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में निर्मित योजनाओं का नामकरण भी बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में बहन जी के योगदान को परिभाषित करता है.
आवासीय व्यवस्था के विकास के क्रम में देश की राजधानी दिल्ली से सटे हुए नवनिर्मित जनपद गौतम बुद्ध नगर (नोएडा) में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का विकास कार्य किया गया. उत्तर प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले नागारिकों को आवास उपलब्ध करवाने के लिए ‘डॉ. अम्बेडकर ग्राम सभा विकास योजना’ का कार्यान्वयन भी बहन जी की सरकारों के द्वारा बहुत बड़े पैमाने पर किया गया और इतना ही नहीं बल्कि भगवान बुद्ध की मां महामाया के नाम पर ‘महामाया सर्वजन आवास योजना’ का निर्माण किया गया और इस योजना के तहत समाज के सभी वर्गों को जो आवास विहीन थे, उन्हें आवास उपलब्ध करवाने के लिए बहुत बड़े पैमाने पर कार्य किया गया. इन योजनाओं के अलावा बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका निभाने वाले श्री कांशीराम जी के नाम पर निर्मित ‘मान्यवर श्री कांशीराम जी शहरी समग्र विकास योजना’ एवं ‘मान्यवर कांशीराम शहरी गरीब आवास योजना’ के तहत तत्कालीन मुख्यमंत्री बहन कुमारी मायावती जी के द्वारा आवासीय व्यवस्था के क्षेत्र में विशेष रूप से कार्य किया गया.
पर्यटन की दृष्टि से बहुआयामी आकर्षणों से परिपूर्ण उत्तर प्रदेश भारत का ऐसा राज्य है जहाँ हर आयु, वर्ग, सम्प्रदाय तथा क्षेत्र के पर्यटक प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में भ्रमणार्थ आते हैं. उत्तर प्रदेश में अधिकांश विदेशी पर्यटकों का आवागमन बौद्ध तीर्थ-स्थलों के कारण ही होता है. बौद्ध तीर्थ-स्थलों की दृष्टि से पर्यटन का विकास करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘बौद्ध परिपथ से मथुरा और संकिसा को जोड़ने के क्रम में ब्रज परिपथ, सारनाथ के लिए वाराणसी-विन्ध्य परिपथ, श्रावस्ती के लिए लखनउ-अवध परिपथ का चिन्हांकन किया. पर्यटन के विकास के क्रम में इन परिपथों के विकास के लिए बहन जी ने विभिन्न योजनाएँ निर्मित की हैं.
सन् 1995 में उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘बौद्ध परिपथ’ के महत्व को स्वीकारते हुए इसकी अवस्थापना सुविधाओं में सुधार लाने की प्राथमिकता दी गई और भगवान गौतम बुद्ध एवं बौद्ध परिपथ से जुड़े स्थानों के विकास के क्रम में गोरखपुर परिक्षेत्र में बौद्ध परिपथ का विकास विशेष रूप से किया गया. गोरखपुर परिक्षेत्र में भगवान बुद्ध से संबंधित राजमार्गों का सुदृढ़ीकरण/चौड़ीकरण/ब्रिजवर्क कराया गया. इसके अलावा कुशीनगर में पर्यटक आवास गृह का विस्तारीकरण/उच्चीकरण, कपिलवस्तु में लैण्डस्केपिंग एवं सौन्दर्यीकरण, कपिलवस्तु में भारतीय बौद्ध महाविहार में यात्री निवास का निर्माण, बौद्ध हेरिटेज सेंटर/वाणिज्यिक परिसर का निर्माण, कपिलवस्तु में बौद्ध संग्रहालय का निर्माण, हेरिटेज पार्क एवं विपश्यना केन्द्र की स्थापना, बौद्ध कला वीथिका की स्थापना एवं कुशीनगर में हवाई पट्टी का निर्माण इत्यादि के कार्य अत्यन्त उल्लेखनीय हैं. फैज़ाबाद परिक्षेत्र में बौद्ध पर्यटन के विकास के क्रम में जनपद श्रावस्ती में स्थित बौद्ध तीर्थ-स्थल का विकास बड़े पैमाने पर किया गया.
वाराणसी परिक्षेत्र में बौद्ध पर्यटन के विकास हेतु बौद्ध तीर्थ-स्थल सारनाथ में तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमारी मायावती जी के निर्देश पर तमाम उल्लेखनीय कार्य किए गए. इस प्रकार हम देखते हैं कि वाराणसी एवं फैजाबाद परिक्षेत्र में बौद्ध परिपथ का विकास विशेष रूप से किया गया. पर्यटन-व्यवसाय एवं रोजगार हेतु इच्छुक व्यक्तियों को पर्यटन संबंधी शिक्षण एवं प्रशिक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से लखनउ में मान्यवर कांशीराम पर्यटन प्रबन्ध संस्थान, चिनहट की स्थापना की गई.
लखनउ में बौद्ध पर्यटन को बढ़ावा देने एवं बौद्ध धर्म के पुर्नरुत्थान के लिए प्रतिबद्ध बहन कुमारी मायावती के शासनकाल में उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनउ में बौद्ध स्थापत्य के आधार पर कई बौद्ध विहारों एवं बौद्ध स्मारकों के निर्माण करवाये गये. उनमें बौद्ध विहार शान्ति उपवन, डॉ. भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन स्थल, सामाजिक परिवर्तन प्रतीक स्थल, डॉ. भीमराव अम्बेडकर सामाजिक परिवर्तन संग्रहालय, मान्यवर श्री कांशीराम जी बहुजन नायक पार्क, रमाबाई मूलक चौक, रमाबाई अम्बेडकर मैदान एवं बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर की चौमुखी प्रतिमा, गोमती विहार खण्ड-1 इत्यादि प्रमुख स्थल ऐतिहासिक रूप से बहन जी योगदान को व्याख्यायित कर रहे हैं.
बौद्ध तीर्थ-स्थलों को जोड़ने के क्रम में ग्रेटर नोएडा से बलिया तक आठ लेन वाली ‘गंगा एक्सप्रेस-वे परियोजना’ का निर्माण किया गया. इस मार्ग के निर्माण हो जाने पर बौद्ध तीर्थ-स्थल संकिसा, सारनाथ एवं कुशीनगर की यात्रा आसान व सुलभ हो जाएगी. सड़क परिवहन के साथ ही साथ रेल परिवहन, जल परिवहन एवं उड्डयन परिवहन का विकास भी बौद्ध तीर्थ-स्थलों की दृष्टि से किया गया. नागारिक उड्डयन सेवा की दृष्टि से हवाई पट्टी श्रावस्ती, हवाई पट्टी गौतम बुद्ध नगर एवं अर्न्तराष्ट्रीय एयर पोर्ट कुशीनगर का निर्माण उल्लेखनीय है.
ब्रिटिश-भारत के कुछ महान अन्वेषकों ने और भारतीय पुरातत्व विभाग ने जिन पुरातात्विक स्थलों का उत्खनन कर, उन्हें बौद्ध तीर्थ-स्थल के रूप में घोषित किया उनमें से कुछ पर भारतीय सरकारों ने ध्यान दिया और उनका विकास भी किया परन्तु अपने मुख्यमन्त्रित्व काल में बहन कुमारी मायावती जी ने उन तीर्थ-स्थलों के परिक्षेत्र में बौद्ध तीर्थ-स्थलों के नाम पर नवीन जिलों का निमार्ण एवं भगवान बुद्ध व उनके महान अनुयायियों के नाम पर भी नवनिर्मित जिलों की स्थापना करके और भगवान बुद्ध की विचारधारा के आधार पर कई योजनाएँ निर्मित कर बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का ऐतिहासिक कार्य किया है.
उत्तर प्रदेश के नागरिकों के रहन-सहन, आचार-व्यवहार इत्यादि का अध्ययन करने के उपरान्त यह स्पष्ट हुआ कि यहाँ के लोग शताब्दियों से चली आ रही वर्णवाद, जातिवाद एवं छुआछूत इत्यादि की परम्परा से ग्रसित रहते थे परन्तु आधुनिक समय में जब नवबौद्धों द्वारा बुद्ध की शिक्षा-दीक्षा का प्रचार-प्रसार बड़े पैमाने पर किया जा रहा है तो इसके कारण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़े वर्ग के ऐसे कई समुदाय हैं जो वर्णवाद, जातिवाद एवं छुआछूत इत्यादि जैसी कुरीतियों से उपर उठकर भगवान बुद्ध के आदर्शों पर आधारित अपनी संस्कृति के विकास में उन्नति कर रहे हैं. अंधविश्वास तथा ढोंग-ढकोसला एवं पाखण्डों के जाल से मुक्त होने के लिए उत्तर प्रदेश के बहुत से लोग अथक प्रयास कर रहे हैं. कुछ समुदायों के लोगों की पूजा-पाठ, रीति-रिवाज में बदलाव आया है. इन लोगों के शादी-विवाह एवं मृतक इत्यादि संस्कारों में भगवान बुद्ध के आदर्शों का परिपालन किया जा रहा है. उत्तर प्रदेश के कई समुदायों के लोगों ने भगवान बुद्ध के सिद्धांतों को समाहित कर अपनी संस्कृति और संस्कारों में सुधार किया है. सामाजिक-राजनैतिक विकास की दृष्टि से भी उत्तर प्रदेश के विभिन्न समाजों और उनके द्वारा निर्मित राजनैतिक दलों के सिद्धांतों पर बौद्ध धर्म का प्रभाव पड़ा है. भौतिक विकास ही नहीं बल्कि धर्मिक, सांस्कृतिक विकास के साथ-साथ सामाजिक व राजनैतिक विकास में सामन्जस्य स्थापित हुआ है.
– लेखक बौद्ध विद्वान हैं. एम.एससी/ एम.ए./ एम.फिल/पी.एचडी हैं. राजनीति में भी सक्रिय हैं.
नोट- यह आलेख दलित दस्तक के जनवरी, 2017 अंक की कवर स्टोरी का अंश है। बिना मैगजीन की अनुमति के इसे प्रकाशित नहीं किया जा सकता।
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