नई दिल्ली। अगर बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने सोनिया गांधी को फोन नहीं किया होता तो अभी तक भाजपा आराम से कर्नाटक में अपनी सरकार बना चुकी होती. लेकिन बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के एक फोन ने भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. इतनी मुश्किल की भाजपा को 7 विधायकों का समर्थन जुटाने में 24 घंटे से भी ज्यादा का वक्त लग गया है. आखिर क्या हुआ था, हम आपको बताते हैं, वो पूरा वाकया.
कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा जेडीएस और उसके सुप्रीमो देवगौड़ा को लेकर जहां नरम थी, तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी हमलावर थे. लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस और जेडीएस साथ आ गए हैं. हालांकि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में इस समीकरण की संभावना पहले ही जताई जा रही थी, लेकिन कांग्रेस ने जितनी जल्दी जेडीएस को समर्थन देने की घोषणा की, उसकी कल्पना जेडीएस ने भी नहीं की थी.
दरअसल कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर के बीच समझौता कराने में बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती की महत्वपूर्ण भूमिका थी.
मायावती ने जब देखा कि किसी भी पार्टी को उस तरह का बहुमत नहीं मिल रहा है कि वह खुद के दम पर सरकार बना सके, तब उन्होंने कांग्रेस और जेडीएस को मिलाने की पहल की.
मायावती ने कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी को और फिर जेडीएस सुप्रीमो एच.डी. देवगौड़ा से फोन पर बात की.
मायावती ने सोनिया गांधी को सुझाव दिया कि भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस को जेडीएस को समर्थन दे देना चाहिए. बसपा के एक नेता के मुताबिक यह भी बात हुई की समर्थन की घोषणा जल्द की जाए ताकि भाजपा के सामने मुश्किल खड़ी हो सके. सोनिया गांधी और देवगौड़ा दोनों इस पर राजी दिखे.
दूसरी ओर मायावती ने राज्यसभा सांसद और कर्नाटक के बसपा प्रभारी अशोक सिद्धार्थ को भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद से मुलाकात करने को कहा था. फिर क्या था, कांग्रेस ने तुरंत जेडीएस को बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा कर दी और इस तरह मायावती का एक दांव जहां कांग्रेस और जेडीएस को साथ ले आया है तो वहीं इस दांव ने भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है. भाजपा भले ही अपने धन बल और सत्ता की ताकत का इस्तेमाल कर कर्नाटक में अपनी सरकार बनाने में कामयाब हो जाए, इस घटना से साफ हो गया है कि विपक्षी एकता की स्थिति में भाजपा का जीतना आसान नहीं है.
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