आगरा स्थित जिस ऐतिहासिक कोठी मीना बाजार मैदान में तकरीबन 50 वर्ष पूर्व बाबासाहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपने ऐतिहासिक भाषण में लोगों को अपनी आत्मनिर्भर राजनीति की ओर चेतना से आगे बढ़ने का संदेश दिया था. उसी ऐतिहासिक मैदान से 21 अगस्त को बसपा प्रमुख एवं राज्यसभा की सदस्य तथा चार बार की उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती ने यूपी चुनाव के लिए हुंकार भर दी है. 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए दलितों, पिछड़ों एवं मुस्लिम अल्पसंख्यकों तथा अपर कास्ट के निर्बल वर्गों का आवाहन करते हुए उन्होंने यह समझाया कि कौन सा दल उनके हक एवं हुकूक के लिए सबसे अधिक प्रतिबद्ध है.
बसपा सुप्रीमों ने सिंहनी की तरह दहारते हुए विपक्षियों पर चुन-चुन कर हमला बोला. उन्होंने हुंकार भरी कि भाजपा एवं कांग्रेस प्रदेश का भला नहीं कर सकते, क्योंकि ये पूंजीपतियों एवं धन्ना सेठों को मदद करने वाली पार्टियां हैं. दूसरी ओर उन्होंने सपा पर हमला बोलते हुए कहा कि यह गुंडों. माफियाओं, अपराधियों, अराजक तत्वों एवं भू- माफियाओं आदि की पार्टी है. इसलिए यह पार्टी भी प्रदेश का भला नहीं कर सकती. अर्थात बसपा सुप्रीमों ने भाजपा, सपा एवं कांग्रेस तीनों को बेनकाब किया.
रैली को लेकर बहुजन समाज पार्टी के समर्थकों के उत्साह ने विपक्ष की नींद उड़ा दी है. 11 बजे से निर्धारित रैली में ‘बहन जी’ 1 बजे पहुंचीं, लेकिन समर्थकों के आने का सिलसिला सुबह 7 बजे से ही शुरू हो गया था. बसपा प्रमुख के निर्धारित कार्यक्रम से एक घंटे पहले ही सारा मैदान नीले झंडों और बहुजन समाज के महापुरुषों के नारों से गूंज रहा था. इस रैली को लेकर बसपा ने भी दावा किया था कि यह रैली ऐतिहासिक रैली होगी और हुआ भी यही. रैली में पहुंचें लाखों समर्थकों ने जता दिया कि वो यूपी के रण में बसपा के सैनिक बनकर लड़ने को तैयार हैं. यह रैली आगरा और अलीगढ़ मंडल की संयुक्त रैली थी.
रैली नहीं जनसैलाब
रैली में पहुंची भीड़ को जनसैलाब कहा जा सकता है. रैली स्थल में बसपा समर्थकों के हुजूम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रैली स्थल से चार किलोमीटर दूर तक समर्थकों का जाम लगा था. यहां तक की बसपा प्रमुख की रैली खत्म होने तक समर्थक आयोजन स्थल पर पहुंचते रहे. रैली में आने वाले लोगों का उत्साह देखते ही बनता था. उनके चेहरे पर एक अजीब सा उत्साह था. यह बसपा की उपलब्धि कही जाएगी कि जब लोग रैलियों में लोगों को लेकर आते हैं, बसपा समर्थक खुद स्वप्रेरणा से रैली में बसपा के प्रति अपना समर्थन जताने पहुंचे थे. रैली में पहुंची भीड़ किराय की भीड़ नहीं थी. लोग इंतजार करते हुए ऊब नहीं रहे थे. रैली में आए लोगों का ऐसा जोश कम ही दिखाई देता है.
महिलाओं की भागेदारी
रैली स्थल पर महिलाओं की संख्या भी देखने वाली थी. रैली स्थल में महिलाएं सुबह से ही आकर बैठ गई थीं. औऱ जैसे ही ‘बहन जी’ मंच पर अपने चिर-परिचित अंदाज में लोगों का अभिवादन कर रही थीं इन महिलाओं ने भी हाथ हिलाकर बहन जी को जवाब दिया. रैली में पूरे समय ये महिलाएं बहन जी के भाषण पर ताली बजाती रहीं, जैसे उनकी हां, में हां मिला रही हो. महिलाओं का इतनी बड़ी तादात में रैली में आना महिलाओं पर बसपा सुप्रीमों की पकड़ को बताता है. और यह प्रमाणित करता है कि आज भी मायावती का रिश्ता महिलाओं से बहुत गहरा है.
रैली से डरे विपक्षी दल
बसपा की आगरा रैली से अन्य सभी राजनैतिक दल घबरा गए हैं. बसपा की रैली में पहुंचे समर्थकों की सुनामी ने विपक्षी दलों में बड़ी रैली करने का जोश ठंडा कर दिया है. जाहिर है कि विपक्षी दलों द्वारा बड़ी रैली आयोजित करने पर इसकी तुलना बसपा की रैली से होगी, जहां वह कहीं नहीं ठहरेंगे. यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में चुनावी जुगत में लगे कांग्रेस और भाजपा जैसे राजनैतिक दलों द्वारा रोड शो का सहारा लेने की बात कह रहे हैं. वो सभी जानते हैं कि बसपा के समान लोगों की भीड़ वे चाहकर भी नहीं जुटा सकते. विपक्षी दल चाहे कैमरे से कितना भी खेल कर लें, कैमरा चाहे लांग शॉट दे चाहे 360 डिग्री पर लगा दिया जाए, उसके बावजूद भी वे बसपा की रैली में आए हुए समर्थकों का मुकाबला नहीं कर सकते. ऐसे में भाजपा, कांग्रेस और सपा के जनसमर्थन की वास्तविकता की पोल खुल जाएगी. इसलिए ऐसा लगता है कि आने वाले समय में बसपा को छोड़कर कोई भी राजनैतिक दल उत्तर प्रदेश में रैली करने का साहस नहीं करेगा. यह बसपा की सबसे बड़ी जीत है.
अल्पसंख्यकों और दलितों पर अत्याचार को लेकर मायावती का हमला
बसपा सुप्रीमों ने भाजपा पर दलितों एवं अल्पसंख्यक मुस्लिमों पर हो रहे अत्याचार को लेकर हमला बोला. उन्होंने कहा कि जब से भाजपा केंद्र की सत्ता में आई है, तब से मुस्लिम भाईयों पर हमले बढ़े हैं. उनके साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है तथा उनकी जान-माल की भी सुरक्षा नहीं की जा रही है. लव जेहाद, धर्म परिवर्तन, गोरक्षा, सांप्रदायिक संघर्ष आदि बहाने के जरिए अल्पसंख्यक समाज पर शोषण एवं उत्पीड़न बढ़ा है जो कि प्रजातांत्रिक राजनीति के लिए ठीक नहीं है. इसी कड़ी में बसपा सुप्रीमों ने भाजपा पर आरोप लगाया कि भाजपा शासित प्रदेशों में भी दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं. उन्होंने साफ-साफ रोहित वेमुला, गुजरात के उना में दलितों पर अत्याचार तथा उत्तर प्रदेश में उन्हीं पर भाजपा के तत्कालिन उपाध्यक्ष दयाशंकर द्वारा आपत्तिजनक टिप्पणी का जिक्र करते हुए कहा कि ये सारे तथ्य इसको प्रमाणित करते हैं.
बसपा प्रमुख का यह आरोप पूरी तरह से सच भ है. हाल ही में राजस्थान में डेल्टा मेघवाल केस, हरियाणा में एक लड़की के साथ दो-दो बार गैंगरेप, मध्यप्रदेश में दलितों पर सबसे ज्यादा अत्याचार की घटनाएं, महाराष्ट्रा में बाईक पर बाबासाहेब का नाम लिखे होने पर एक दलित युवा से मारपीट की घटनाएं यह प्रमाणित करती है कि भाजपा शासित राज्य में दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं और वहां की सरकारें दलितों को न्याय दिलाने में कोई रुचि लेती नहीं दिखती है. इसी संदर्भ में प्रधानमंत्री द्वारा दलितों के लिए जताई गई हमदर्दी पर चुटकी लेते हुए बसपा सुप्रीमों ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को समझना चाहिए कि केवल बातों से बात नहीं बनेगी. उनको बातों से आगे भी संस्थाओं के स्तर पर दलितों को सामाजिक न्याय दिलाने की बात सोचनी चाहिए.
आरक्षण को लेकर बसपा प्रमुख की चिंता
दलितों को सामाजिक न्याय दिलाने की बात को आगे बढ़ाते हुए बसपा सुप्रीमो ने भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा आरक्षण खत्म किए जाने की साजिश को लेकर चिंता जताई. उन्होंने भाजपा शासित केंद्र सरकार पर इल्जाम लगाया कि सरकार धीरे-धीरे आरक्षण खत्म कर रही है. नियुक्तियों में आरक्षित पद का कोई भी विज्ञापन नहीं आ रहा है. सरकार में नियुक्तियां संविदा पर हो रही हैं, जिससे धीरे-धीरे आरक्षण खत्म हो रहा है. इसका कुल तात्पर्य यही हुआ कि भाजपा सरकार आरक्षण खत्म करने में लगी है. यहां यह बताना जरूरी होगा कि भाजपा और संघ के छोटे नेता से लेकर बड़े नेता का आरक्षण के प्रति रवैया सकारात्मक नहीं रहा है. और गाहे-बगाहे वे आरक्षण विरोधी बयान जारी करते रहे हैं.
साथ ही प्रोमोशन में आरक्षण पर भाजपा का लोकसभा में जो रवैया था, उसका भी संज्ञान लेना चाहिए. आज लोकसभा में भाजपा का बहुमत है और प्रोमोशन में आरक्षण का बिल लोकसभा में आसानी से पारित हो सकता है, लेकिन भाजपा कोई भी पहल नहीं कर रही है. इसका मतलब यह हुआ कि भाजपा भी समाजवादी पार्टी की तरह प्रोमोशन में आरक्षण के खिलाफ है. और अगर उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनती है तो प्रोमोशन में आरक्षण कतई लागू नहीं हो सकता. अतः एक ओर दलितों एवं अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हुई अत्याचार की घटनाओं को न रोक पाना और दूसरी ओर आरक्षण को निष्प्रभावी बनाने को देखते हुए दलितों और अल्पसंख्यकों को 2017 के उत्तर प्रदेश के चुनाव में अपने मतों का प्रयोग करने से पहले इस स्थिति पर विचार करना होगा.
भाजपा पर प्रहार, भागवत पर तंज
बसपा सुप्रीमों ने भाजपा पर प्रहार करते हुए कहा कि अच्छे दिन नहीं आए हैं. उन्होंने कहा कि नरेन्द्र मोदी ने जो चुनावी वादे किए थे, वो लेस मात्र भी पूरे नहीं हुए हैं. विशेष कर उन्होंने भारत का काला धन विदेशों से लाने की बात कही थी, जिससे हर गरीब के बैंक अकाउंट में 15 लाख रुपये आ जाएंगे, लेकिन अभी तक एक रुपया भी नहीं आया है. यहां पर हमें सबका साथ सबका विकास के नारे की भी पड़ताल करनी चाहिए. बसपा सुप्रीमों ने आरोप लगाया कि किसानों की बदहाली दूर करने की बजाय भाजपा की केंद्र सरकार भूमि अधिग्रहण का ऐसा कानून लाना चाहती है जिससे की किसानों की जमीन सस्ते दाम पर अधिग्रहित की जा सके. दूसरी ओर बैंकों का घाटा एक लाख 14 हजार करोड़ का जिक्र करते हुए उन्होंने गरीब जनता को समझाने का प्रयास किया कि यह पैसा आखिर धन्नासेठों के पास नहीं गया तो कहां गया. उन्होंने आरोप लगाया कि अमीरों के कर्जे को तो माफ कर दिया जाता है, पर गरीब कर्ज न चुका पाने की वजह से जान दे रहे हैं औऱ सरकार उनका कर्ज माफ नहीं करती है. कुल मिलाकर बसपा सुप्रीमों रैली में आई हुई जनता को यह बताने का प्रयास कर रही थीं कि भाजपा पूंजिपतियों की पार्टी है.
इसी के साथ-साथ बसपा सुप्रीमो ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को भी आड़े हाथों लिया. उन्होंने संघ प्रमुख द्वारा जनसंख्या बढ़ाने के सुझाव पर तंज कसा. उन्होंने कहा कि संघ के मुखिया यदि हिन्दूओं को अपनी जनसंख्या बढ़ाने के लिए कह रहे हैं तो श्री नरेन्द्र मोदी को यह भी बताना चाहिए कि जनसंख्या बढ़ जाने पर क्या वह उनकी रोजी-रोटी का भी इंतजाम कर पाएंगे. अभी वैसे ही ये सरकार गरीबों को रोजी-रोटी नहीं दे पा रही है तो बढ़ी हुई जनसंख्या को कैसे संभालेगी. शायद बसपा सुप्रीमों यहां राष्ट्र नेत्री के रूप में जनसंख्या नियंत्रण के बारे में ज्यादा चिंतित दिखीं.
सपा और भाजपा की मिली भगत पर प्रहार
बसपा सुप्रीमों ने भाजपा और सपा पर मिली भगत का आरोप लगाया. इस तथ्य का साक्ष्य देते हुए बसपा सुप्रीमों ने बताया कि उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था एकदम चरमरा गई है. जिसके खिलाफ कभी-कभी भाजपा धरना प्रदर्शन भी करती है. यद्यपि केंद्र में उसकी सरकार है. फिर भी वह उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की बात नहीं करती. दूसरी ओर सपा के रहते हुए सैकड़ों की संख्या में संप्रदायिक संघर्ष उत्तर प्रदेश में हुए. भाजपा मुस्लिम पलायन की झूठी अफवाह फैलाती है. गोरक्षा के नाम पर गोरक्षक अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न करते हैं. और उसके बाद भी सपा भाजपा, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल आदि हिन्दूवादी संगठनों पर कोई एक्शन नहीं लेती. जिससे कि उत्तर प्रदेश का सामाजिक माहौल खराब होने की हमेशा संभावना बनी रहती है. इससे अल्पसंख्यक समाज भी भयभीत बना रहता है.
इस संदर्भ में हमें यह भी सोचना चाहिए कि यद्यपि भाजपा उत्तराखंड एवं अरुणाचल प्रदेश में जरा सी बात पर राष्ट्रपति शासन लागू करा सकती है लेकिन उत्तर प्रदेश में भीषण दंगे होते हैं, गोमांस रखने के आरोप में एक व्यक्ति को मार दिया जाता है, उसके बाद मथुरा में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (एसपी) समेत अन्य पुलिस वालों की हत्या कर दी गई, बावजूद इसके वह उत्तर प्रदेश को राष्ट्रपति शासन लगाने लायक नहीं समझती. यह सपा औऱ भाजपा की मिली भगत नहीं तो और क्या है? यहां पर हमको यह भी सोचना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनावों में सपा के सभी लोकसभा प्रत्याशी हार गए लेकिन सपा के मुलायम परिवार के पांचों सदस्य कैसे जीत गए? क्या यह दोनों दलों के बीच मिली भगत का अंदेशा नहीं है? अतः बहुजन समाज को एवं अन्य समाज के गरीब तबके को इस मिली भगत को समझ कर बहुजन समाज पार्टी के सर्वजन हिताय- सर्वजन सुखाय नारे की ओर उन्मुख होना चाहिए.
यूपी चुनाव में बसपा की मजबूत स्थिति
बसपा सुप्रीमों ने मीडिया को भी आड़े हाथों लिया. उन्होंने मीडिया वालों पर यह आरोप लगाया कि जब कुछ लालची किस्म के बसपा नेता पार्टी छोड़ कर जाते हैं तो मीडिया इसे बढ़ा चढ़ाकर प्रचारित करता है और उनके द्वारा लगाए आरोपों को खूब हवा देता है. प्रिंट से लेकर टेलीविजन मीडिया तक इसमें शामिल है. यहां तक की टीवी चैनल बसपा छोड़ कर गए छोटे से छोटे नेता को खूब तरजीह देते हैं. उसका इंटरव्यू तक चलाया जाता है. ये सब यह दिखाने का प्रयास करते हैं कि जैसे कि बसपा में भगदड़ मची हुई है. मीडिया और विपक्ष के इस सांठगांठ पर बसपा प्रमुख ने प्रश्न उठाया कि जाने वाला हर नेता बसपा में पैसा लेकर टिकट देने का आरोप लगाता है.
उन्होंने सवाल उठाया कि एक तरफ तो विपक्ष और मीडिया यह कहते हैं कि बीएसपी में भगदड़ मची हुई है तो वहीं दूसरी ओर बीएसपी द्वारा पैसा लेकर टिकट देने का आरोप लगाया जाता है. तो मीडिया अगर यह मानती है कि बसपा में भगदड़ मची है तो आखिरकार कोई बसपा में पैसा लेकर टिकट लेने क्यों आएंगा? अगर लोग बसपा का टिकट चाहते हैं तो इसका मतलब यह हुआ कि बसपा मजबूत स्थिति में है. बसपा की मजबूत स्थिति इसलिए भी प्रमाणित होती है कि सभी ओर से नेता बसपा की ओर रुख कर रहे हैं. हाल ही में कई महत्वपूर्ण नेताओं का बसपा में शामिल होना इस बात की पुष्टी भी करता है.
इस बीच एक दूसरा तथ्य यह भी है कि मीडिया में बसपा में शामिल होने वाले नेताओं की खबर प्रमुखता से कभी नहीं छपती. ना ही कोई टेलिविजन उनका इंटरव्यू दिखाता है. इस बात से यह प्रमाणित होता है कि 2017 के चुनाव में बसपा बहुत ही मजबूत स्थिति में है और इसी परिपेक्ष्य में बहुजन समाज अर्थात दलित, पिछड़े, अक्लियतों, अल्पसंख्यकों और अपर कॉस्ट के गरीब लोगों की उम्मीद बसपा की ओर ही दिख रही है.
आगरा की इस ऐतिहासिक रैली के साथ ‘बहन जी’ ने चुनावी बिगुल फूंक दिया है. उन्होंने यह साफ कर दिया है कि यूपी चुनाव में बहुजन समाज पार्टी पूरी ताकत से लड़ने के लिए तैयार है. रैली के बाद यूपी चुनाव को लेकर बसपा ने अन्य विपक्षी दलों पर बढ़त बना ली है. 21 अगस्त को आगरा से शुरू हुई रैली के बाद बहुजन समाज पार्टी ने आजमगढ़, इलाहाबाद और सहारनपुर में भी बड़ी रैली का आयोजन किया. उत्तर प्रदेश चुनाव में यह साफ हो चुका है कि बसपा सबसे आगे है.
प्रो. (डॉ.) विवेक कुमार प्रख्यात समाजशास्त्री हैं। वर्तमान में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ सोशल साइंस (CSSS) विभाग के चेयरमैन हैं। विश्वविख्यात कोलंबिया युनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं। ‘दलित दस्तक’ के फाउंडर मेंबर हैं।