पिछले दिनों अखबारों और सवर्ण मीडिया में बहुजन समाज पार्टी को लेकर एक बार फिर गलतफहमी का प्रचार किया जा रहा है. ये बताने की कोशिश की जा रही है कि बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में होने वाले 2017 के विधानसभा चुनाव में दलित और ब्राह्मण समीकरण के आधार पर चुनाव लड़ेगी. आने वाले समय में ब्राह्मणवादी एवं मनुवादी मीडिया इस बात को और बढ़ा चढ़ा कर पेश करेगा. इसलिए बहुजन समाज को बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा एवं गठबंधन पर अपनी समझ को धार देनी होगी. हमें सोचना चाहिए कि मीडिया किस आधार पर यह कह रहा है कि बहुजन समाज पार्टी ब्राह्मण एवं दलित समीकरण पर ही भरोसा दिखा रही है.
उसके उत्तर के रूप में हाल ही में संपन्न राज्यसभा के लिए होने वाले चुनावों में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) द्वारा नामित नेताओं को आधार बनाया जा रहा है. डॉ. अशोक सिद्धार्थ (अनुसूचित जाति) एवं सतीश चंद्र मिश्रा (ब्राह्मण) को राज्यसभा में प्रत्याशी बनाए जाने का उदाहरण दिया जा रहा है. यद्यपि बहुजन समाज पार्टी की तरफ से ऐसी कोई भी दलील राज्यसभा में अपने प्रत्याशियों के नामांकन के बाद नहीं दी गई. इसमें बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने एक बार भी कहीं नहीं कहा है कि वह उत्तर प्रदेश के 2017 के चुनावों में ब्राह्मण और दलित समीकरण पर चुनाव लड़ेगी. बहुजन समाज पार्टी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में साफ कहा गया है कि बसपा सर्वजन समाज के आधार पर चुनाव लड़ेगी और इस बात को उन्होंने उत्तर प्रदेश में विधान परिषद (एमएलसी) में पार्टी के कोटे से नामित विधायकों के नामों को आधार बनाया. बसपा द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में साफ कहा गया है कि बहुजन समाज पार्टी द्वारा दो अनुसूचित जाति एवं एक पिछड़ा यानि ओबीसी उम्मीदवार को परिषद में नामित किया जा रहा है. और इससे पहले नसीमुद्दीन सिद्दीकी तथा ठाकुर जयवीर सिंह को विधान परिषद में नामित किया जा चुका है.
बहुजन प्लस सर्वजन
उपरोक्त तथ्यों से यह बात स्थापित होती है कि बहुजन समाज पार्टी की केंद्रीय विचारधारा अभी भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग एवं कनवर्टेड मायनॉरिटीज पर आधारित है, जिसे मान्यवर कांशीराम 85 प्रतिशत कहा करते थे और उनको बहुजन का नाम दिया था. इस कोर बहुजन विचारधारा के अंदर बहन मायावती ने समाज की अन्य जातियों को जोड़कर और उसमें भी विशेष कर सवर्ण समाज में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों और जातीय दुराग्रह से परे लोगों को जोड़कर सर्वजन का नारा दिया है. इसके तहत उन्होंने कुछ सवर्ण समाज के लोगों को जैसे सतीश चंद्र मिश्रा एवं ठाकुर जयवीर सिंह आदि को राज्यसभा एवं विधान परिषद में नामित किया है. इसलिए बहुजन समाज को विश्वास होना चाहिए कि बहुजन समाज पार्टी ने ऐसी कोई भी घोषणा नहीं कि है, जिससे कि यह बात स्थापित हो कि बहुजन समाज पार्टी आने वाले विधानसभा के 2017 चुनाव में सिर्फ दलित औऱ ब्राह्मण समीकरण पर ही चुनाव लड़ेंगे. बल्कि उनके कृतत्व एवं नेताओं की सक्रियता को देखते हुए जिसमें मुख्य रूप से बहन मायावती, अशोक सिद्धार्थ, सुखदेव राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्या, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, आर. के चौधरी और रामअचल राजभर सहित बहुजन समाज के अनेक लोग हैं, जो बसपा की बहुजन विचारधारा को परिलक्षित करते हैं. इस विचारधारा के प्रसार के लिए बहुजन समाज पार्टी में सवर्ण समाज के नेताओं को जोड़ना शुरू किया गया था. जिसमें सबसे पहले रामबीर उपाध्याय और बाद में सतीश चंद्र मिश्रा एवं नकुल दूबे आदि का पदार्पण हुआ.
भगवान बुद्ध के प्रति बसपा का समर्पण
इसके बाद हाल ही में बहुजन विचारधारा की एक झलक तब देखने में सामने आई जब बहुजन समाज पार्टी द्वारा बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा भारत के सभी नागरिकों को बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर बधाई दी गई. पार्टी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया कि किस प्रकार बहुजन समाज पार्टी की चार सरकारों में भगवान बुद्ध एवं उनसे जुड़ी हुई स्मृतियों को उत्तर प्रदेश में स्थापित किया गया है. सर्व प्रथम प्रदेश में भगवान बुद्ध से जुड़े हुए स्थानों का एक कॉरीडोर विकसित किया गया, जिसके तहत भारत एवं भारत के बाहर से आने वाले सैलानियों को इन स्थानों के प्रति आकर्षित किया जा सके और इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिले. इसी संदर्भ में ग्रेटर नोएडा का नाम बदलकर गौतम बुद्ध नगर रखा गया और गौतम बुद्ध नगर में ही गौतम बुद्धा युनिवर्सिटी (जीबीयू) की स्थापना की गई. साथ ही विश्वविद्यालय के सीडर के तौर पर पंचशील इंटरमीडिएट विद्यालय की स्थापना की गई. इसी के साथ ही साथ लखनऊ में वीआईपी रोड पर अंतरराष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, बुद्ध परिवर्तन स्थल एवं अनेक उद्यानों की भी स्थापना की गई. साथ ही साथ चार अन्य नगरों के नाम भी एवं एक नाम भगवान बुद्ध की माता महामाया के नाम पर रखा गया. इसी कड़ी में उद्यानों एवं स्मृति स्थलों के भवनों की बनावट बौधकालीन कला (आर्किटेक्चर) पर आधारित है.
उपरोक्त तथ्यों से यह प्रमाणित होता है कि एक तरफ बहुजन समाज पार्टी समाजों के प्रतिनिधित्व के आधार पर बहुजन समाज का प्रतिनिधित्व करती है तथा अध्यात्मिक स्तर पर बुद्ध, रैदास एवं कबीर से प्रेरणा लेती है एवं अपने समाज के अनेक विचारकों एवं समाज सुधारकों यथा ज्योतिबा फुले, नरायणा गुरू, शाहूजी महाराज, माता सावित्रीबाई फुले एवं बाबासाहेब के बताए हुए मार्ग पर बहुजन विचारधारा का अनुसरण करती है. पर प्रजातांत्रिक राजनीति का अनुसरण करते हुए बसपा ने बहुत पहले एक नारा दिया था, ‘जिसकी जितनी संख्या भारी- उसकी उतनी भागेदारी’ और इसलिए प्रजातंत्र में सभी समाजों के नागरिकों का उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व ही प्रजातंत्र की स्थापना को आगे बढ़ाता है. और शायद इसीलिए बहुजन समाज पार्टी ने सर्वजन का नारा दिया. इसके तहत उन्होंने बहुजन समाज से अलग सवर्ण समाज को भी अपनी राजनीति में शामिल कर प्रतिनिधित्व देना शुरू किया है. परंतु ब्राह्मणवादी एवं मनुवादी मीडिया बहुजन समाज पार्टी की मूल विचारधारा को नजरअंदाज (ब्लैक आउट) करते हुए केवल दलित एवं ब्राह्मण गठजोड़ का राग अलापता है. यद्यपि उसको यह कहना चाहिए कि बहुजन समाज पार्टी की विचारधारा बहुजन प्लस सर्वण समाज की है. इसलिए बहुजन समाज के सभी सदस्यों को मनुवादी मीडिया के इस अनर्गल प्रचार से बचना चाहिए.
सांप्रदायिकता की चुनौती
उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए बहुजन समाज के समक्ष अनेक चुनौतियां है. पहली चुनौती तो ‘मनुवादी’ मीडिया द्वारा बसपा के खिलाफ फैलायी जाने वाली गलतफहमी/दुष्प्रचार से सावधान रहना है. इसी कड़ी में बहुजन समाज की दूसरी सबसे गंभीर चुनौती होगी कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश राज्य में संप्रदायिक संघर्षों से कैसे प्रदेश एवं बहुजन समाज को सुरक्षित रखा जाए, क्योंकि संप्रदायिक संघर्षों से सबसे ज्यादा नुकसान बहुजन समाज के भाईचारे को होता है. क्योंकि समाज धर्मों के आधार पर बंट जाता है. और बहुजन समाज का भाईचारा संप्रदायिकता में बदल जाता है. इसलिए बहुजन समाज के भाई-बहनों को अपने आस-पास होने वाले संप्रदायिक संघर्षों को जिस तरह से भी हो उसे टालना चाहिए. बहुजन समाज द्वारा सांप्रदायिक संघर्षों को टालना इसलिए भी आवश्यक है कि अनेक संप्रदायिक संघर्षों में यह देखा गया है कि इन संघर्षों में सबसे ज्यादा जान माल का नुकसान दलित, पिछड़ों और अक्लियत समाज का होता है और उनके बीच का भाईचारा खत्म हो जाता है. इसलिए बहुजन समाज को सांप्रदायिक संघर्षों को बढ़ाने वाली विचारधारा को चिन्हित करना होगा, उनके नेताओं के कार्यक्रमों को भी समझना होगा जिससे की बहुजन समाज में भाईचारा बढ़े और सांप्रदायिक तनाव दूर हो सके.
भ्रष्टाचार के खिलाफ दुष्प्रचार
बहुजन समाज की एक अन्य चुनौती होगी कि किस प्रकार बहुजन समाज पार्टी के खिलाफ भ्रष्टाचार के झूठे प्रचार के बहकावे में ना आएं. आज के इस भ्रामक इलेक्ट्रानिक मीडिया के हमले में सच्चाई और झूठ का पता लगा पाना आसान नहीं है. और जैसा कि सभी जानते हैं कि मीडिया घरानों को पूंजीपतियों ने अब खरीद लिया है. इसी कारण भारतीय राजनीति में राजनैतिक दलों का तथा पूंजीपतियों का एक नया गठजोड़ सामने आया है. इस गठजोड़ में सत्ताधारी सरकारें विपक्षियों पर तथा कमजोर प्रांतीय दलों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगातार लगाती हैं. इन आरोपों को इस प्रकार प्रायोजित किया जाता है कि बड़े से बड़ा राजनैतिक दल भी उनको चुनौती नहीं दे पाता. यहां तक की कई मजबूत राष्ट्रीय राजनैतिक दल जिनकी कई राज्यों में सरकारें चल रही होती हैं, साथ ही साथ कई टेलिविजन न्यूज चैनलों और अखबारों में उनका दखल होता है; वे अपने ऊपर लगे आरोपों से अपने आप को बचा नहीं पाते और उनकी साफ-सुथरी छवि धूमिल हो जाती है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में अगस्ता हैलिकॉप्टर डील में देखने को मिला. जिसके अंदर इटली की एक अदालत में सुनाई गई सजा के आधार पर राज्यसभा के अंदर सोनिया गांधी, अहमद पटेल एवं ए.के एंटोनी पर आरोप लगाए गए जिसको बाद में सत्ता दल प्रमाणित भी नहीं कर पाया. परंतु आरोप तो लग गए और कांग्रेस जैसी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी उन आरोपों को अपने ऊपर से हटा नहीं पाई और असम और केरल के चुनाव में उसे भारी हार का सामना करना पड़ा. इसलिए बहुजन समाज को समझना चाहिए कि राजनैतिक दलों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाना राजनैतिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गया है. इस राजनैतिक दांव पेच से किसी भी दल और उसके शीर्ष नेता पर झूठा आरोप लगा कर उसके प्रति नकारात्मक माहौल बनाया जा सकता है और उसकी तेज तर्रार छवि को खंडित किया जा सकता है. इस संदर्भ में यहां पर बहुजन समाज पार्टी एवं उसके शीर्ष नेतृत्व को आने वाले समय में इस राजनैतिक रणनीति का सामना करना पर सकता है.
इसलिए बहुजन समाज के लोगों को इस गंदी राजनीति के विषय में अभी से सजग रहना होगा, क्योंकि विपक्ष बहुजन समाज पार्टी के खिलाफ और उसके नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप पुनः प्रचारित करेगा. सीबीआई तथा इन्कम टैक्स आदि संस्थाओं से भी नोटिसों को भिजवाएगा लेकिन बहुजन समाज को यह समझना चाहिए कि जो भी सरकार सत्ता में होती है उसके पास पुलिस, सीबीआई, लोकल इंटेलिजेंस, इंकम टैक्स तथा इंफोर्समेंट डायरेक्टरेट सभी कुछ की सुविधाएं होती है. तो ऐसी स्थिति में वो बहुजन समाज पार्टी पर हमेशा आरोप ही क्यों लगाता रहता है, उसको तुरंत आरोपों के समकक्ष त्वरित कार्रवाई करते हुए दोषियों को सजा सुना देनी चाहिए, जिससे की दूध का दूध और पानी का पानी हो जाए. अगर भ्रष्टाचार के आरोपों में त्वरित कार्रवाई नहीं होती है तो बहुजन समाज को यह समझ लेना चाहिए कि दाल में कुछ काला है और विरोधी सत्ताधारी और मीडिया केवल और केवल बहुजन समाज पार्टी और उसके शीर्ष नेतृत्व की छवि को खंडित करने के लिए ऐसा कर रहा है, जिससे की मतदाताओं को बहकाया जा सके.
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