भारतीय मीडिया ने बालाकोट में भारतीय सेना की कार्रवाई के बाद हुई मौतों के आंकड़ों पर जो खबर चलाई, वो एजेंडा सेटिंग का हिस्सा था. संख्या क्या है कोई नहीं जान पाएगा, जब तक पाकिस्तान आधिकारिक तौर पर नहीं बता दे. लेकिन वह क्यों बता देगा? पत्रकार किसी खास पार्टी को लाभ पहुंचाने के मकसद में फंस गए या उस मुहिम का हिस्सा बन गए ये वही जाने. मेरे हिसाब से भारत ने पाकिस्तान में घुसकर कर हमला किया, यही महत्वपूर्ण था और पाकिस्तान पर शुरुआती दवाब बनाने के लिए काफी था. आगे की लड़ाई कूटनीतिक ही होनी थी. कितने मरे, यह सिर्फ उनके लिए था जिनको इस उन्माद को वोट में परिवर्तन करना या होता दिख रहा था.
लोकतंत्र में कोई सवाल सत्ता पक्ष से नहीं पूछा जाना अहितकर होता है. दुर्भाग्य से सोशल मीडिया पर सवाल पूछने वाले ट्रोलर्स के निशाने पर रहते हैं. फिर, अगर सत्ता पक्ष इस कार्रवाई को वोट में बदलना चाहता है तो विपक्ष को भी सवाल पूछने का पूरा हक है. तीनों सेना के प्रमुखों ने अपनी पीसी में कभी भी संख्या का जिक्र नहीं किया. फिर मीडिया तथाकथित मौतें क्यों जारी करता रहा, यह बड़ा सवाल है. सेना ने संख्या नहीं बताई तो क्या सेना का शौर्य घट गया? इसके उलट सेना के प्रति लोगों की आस्था और मजबूत हुई है. मीडिया का वॉर हिस्टीरिया सिर्फ वोट के मकसद से है. असली युद्ध अब कूटनीतिक तरीके से लड़ा जाता है. हम पहले ही चार युद्ध जीत चुके हैं. एक और जंग जीत जाएंगे, उससे क्या पाकिस्तान ठीक हो जाएगा? पाकिस्तान मेरी समझ से कूटनीतिक तरीके से ही दवाब में आएगा. उस पर आर्थिक, व्यापारिक पाबंदी से लेकर दूसरे दवाब बनाने होंगे.
बहरहाल इस दिशा में भारत बेहतर प्रयास कर सकता है. कर भी रहा होगा, लेकिन चुनावी एजेंडा बाकी सारी बातों पर हावी है. यह बहुत बुरा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सर्वदलीय बैठक तक में नहीं जाते हैं. निश्चित तौर पर हमारे लिए अभिनंदन का लौटना न सिर्फ जेनेवा संधि की जीत है, बल्कि गर्व का विषय है. पर यह दुर्भाग्य है कि विंग कमांडर अभिनन्दन जब पाकिस्तान से आ रहे होते हैं, तब दिन भर मीडिया वाघा बॉर्डर पर तो रहता है, लेकिन उसी दिन पांच अर्धसैनिक बल और पुलिस की मुठभेड़ में मौत हो जाती है और मीडिया उस तरफ कैमरा तक नहीं घुमाना चाहता है, क्यों? क्योंकि शोक कभी वोट पैदा नहीं करता, वोट उन्माद पैदा करता है. मीडिया और प्रधानमंत्री एक दूसरे के पूरक हैं. मीडिया उन्माद और वॉर हिस्टीरिया पैदा कर रहा है, तो इसका लाभ उठाकर नरेंद्र मोदी अपने चुनावी कार्यक्रम को अश्वमेघ घोड़ा की तरह दौड़ा रहे हैं, लेकिन उनसे पूछा जाने वाला कोई सवाल सेना के खिलाफ बताया जाता है. यह दरअसल उनकी राजनीति के प्रति उन्माद पैदा करता है.
- लेखक पत्रकार रहे हैं. फिलहाल शिक्षा जगत से जुड़े हैं.
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