जब लिख रहा हूं घटना उससे एक दिन पहले यानि बीते कल सोमवार की है. जंतर-मंतर पर पिछले 28 दिनों से धरना दे रहे तमिलनाडु के किसानों का धैर्य सरकारी धोखाधड़ी देखकर जवाब दे गया. पुलिस इन्हें पीएम से मिलवाने के लिए साउथ ब्लॉक ले आई. कहा गया कि पीएम से इनकी मुलाकात करवाई जाएगी. लेकिन पीएम को वक्त नहीं था. वह तो आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री को मेट्रो पर बिठाकर अक्षरधाम घुमाने ले गए थे. नतीजा, घर बार छोड़कर इंसाफ की आस में दिल्ली में बैठे किसानों की सब्र का बांध टूट गया.
प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात नहीं हो पाने से निराश किसानों ने साउथ ब्लॉक स्थित प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के बाहर सड़क पर ही नग्न होकर विरोध प्रदर्शन किया. किसान कर्ज माफी के साथ कावेरी नदी जल विवाद का स्थायी समाधान निकालने और फसलों की उचित मूल्य देने की मांग कर रहे थे.
लेकिन उन्हें क्या पता था कि देश का पीएम बहुत व्यस्त है. उसे दिन में कई बार मौके विशेष पर कपड़े बदलने होते हैं. कुछ सेल्फी लेनी होती है और फिर दिल्ली में एमडीसी का चुनाव भी तो है. तामिलनाडु के किसान तो उन्हें वोट दिलवाते नहीं, सो वह आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री को मेट्रों में घुमाने के बहाने बिना कहे दिल्ली एमसीडी के चुनाव में भी उतर गए. असल में देश का प्रधानमंत्री सीधे एमसीडी का चुनाव प्रचार करता तो पार्टी और उसकी बदनामी होती, सो उसने एक आसान और चालाक तरीका निकाला. और देखिए, उसके अगले दिन ही आखिरकार यह खबर आ ही गई कि भाजपा के नेता एमसीडी चुनाव के लिए मेट्रों में वोट मांगेंगे.
भारत का मीडिया भी गजब चीज है. अव्वल दर्जे का बेशर्म. जब देश के मजबूर किसान संसद के सामने नंगे होकर नाच रहे थे, वह मोदीजी का मेट्रो सफरनामा दिखा रहा था. वह ये बता रहा था कि आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने मोदीजी के साथ कितनी सेल्फी ली, मोदीजी ने ट्विटर पर क्या लिखा, ऑस्ट्रेलियाई पीएम ने भारतीय पीएम के साथ फोटो पोस्ट करते हुए क्या लिखा. शानदार पत्रकारिता का शानदार नमूना. शायद भारत की मीडिया के लिए उन किसानों की व्यथा से ज्यादा जरूरी भाजपाई पीएम और सीएम को दिखाना है. आज भारत के मीडिया समूह तो बस दिल्ली और यूपी तक सिमट कर रह गए हैं. गोया भारत में दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अलावा कोई अन्य राज्य ही ना हो. हे मीडिया के महानुभावों भारत में 29 राज्य और 7 केंद्रशासित प्रदेश हैं. सब पर ध्यान दीजिए. सभी राज्यों की समस्याओं पर ध्यान दीजिए.
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।