नई दिल्ली। नोबेल पुरस्कार से सम्मामित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने भारत की मौजूदा अर्थव्यवस्था को खोखला करार दिया है. अमर्त्य सेन ने साफ तौर पर कहा कि बीजेपी सरकार में अर्थव्यवस्था का हाल खस्ता हो गया है. तो वहीं अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि भारत की मौजूदा सरकार एक पहिए से चल रही है और उस पहिए की भी हवा निकल रही है.
शनिवार को राजकमल प्रकाशन द्वारा नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशात्री अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज़ की नई पुस्तक ‘भारत और उसके विरोधाभास’पुस्तक पर परिचर्चा का आयोजन साहित्य अकादेमी हॉल में किया गया. लोगों से खचाखच भरे हॉल में अमर्त्य सेन और ज्यां द्रेज़ से वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार और सबा नकवी ने बातचीत की. इस दौरान मौजूदा सरकार की अर्थनीति पर बातचीत हुई.
हमें शर्मिंदा होना पड़ता है…
नोबल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने भारत की सबसे बढ़ती हुई अर्थव्यस्था होने के बावजूद भारत में विरोधाभास को चिन्हित करते हुए कहा “बीस साल पहले, इस क्षेत्र के छह देशों में, भारत श्रीलंका के बाद दूसरा सर्वश्रेष्ठ था. अब यह है दूसरा सबसे खराब देश है. वर्तमान सरकार में पिछले सरकार से ज्यादा हालत ख़राब हो गये हैं किसी भी सरकार ने स्वास्थ और शिक्षा के क्षेत्र के लिए कारागार उपाय नही किये, और तो और मोदी शासन में स्वास्थ और शिक्षा के क्षेत्र को बिलकुल ही नजरअंदाज किया गया है और सरकार का पूरा ध्यान गलत दिशा में चला गया है”.
उन्होंने आगे कहा “जब हमें भारत में कुछ अच्छे चीजों के होने पर गर्व होता है तो हमें साथ ही उन चीजों की भी आलोचना करना चाहिए जिनके कारण हमें शर्मिंदा होना पड़ता है.”
बांग्लादेश से भी पीछे हैं
पुस्तक के सह-लेखक ज्यां द्रेज ने कहा कि दुसरे देशों में मजदूर श्रेणी का विकास होता है लेकिन भारत में मजूदरों की स्थिति ज्यों की त्यों बनी रहती है. इसको लेकर सरकार ध्यान नहीं देती है. बीजेपी सरकार की बीमा योजना अच्छी है लेकिन वह आम जन या जरूरतमंद तक पहुंच नहीं पाई है. पिछले कुछ वर्षों में भारत को सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बनने की अपनी खोज में कुछ सफलता मिली है. मगर यह सोचने वाली बात है कि 7 प्रतिशत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि के बावजूद, ग्रामीण मजदूर की आय एक ही रही है और फिर भी कोई इसके बारे में नहीं बोलता है.
आगे उन्होंने कहा अगर हम स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में बात करें, तो भारत आर्थिक रूप से आगे होने के बावजूद इस क्षेत्र में बांग्लादेश से भी पीछे है, और इसका का प्रमुख कारण भारत में सार्वजनिक कार्रवाई में कमी है. आर्थिक विकास विकास को प्राप्त करने में मदद कर सकता है, लेकिन इसके साथ सार्वजनिक कार्रवाई भी की जानी चाहिए.
भारत और उसके विरोधाभास किताब 2013 में अंग्रेजी में आयी ‘एन अनसर्टेन ग्लोरी इंडिया एंड इट्स कंट्राडिक्शन’ का हिंदी अनुवाद है.किताब के अनुवादक सुपरिचित पत्रकार अशोक कुमार हैं.
दुनिया में आर्थिक वृद्धि के इतिहास में ऐसे कुछ ही उदाहरण मिलते हैं कि कोई देश इतने लम्बे समय तक तेज़ आर्थिक वृद्धि करता रहा हो और मानव विकास के मामले में उसकी उपलब्धियाँ इतनी सीमित रही हों. इसे देखते हुए भारत में आर्थिक वृद्धि और सामाजिक प्रगति के बीच जो सम्बन्ध है उसका गहरा विश्लेषण लम्बे अरसे से अपेक्षित है.
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