दलितों को उद्योगपति बनाने वाली प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वकांक्षी योजना के तहत सरकार ने साल 2019 में स्टैंड अप इंडिया के जरिये दलितों को एक बड़ा सपना दिखाया। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद अपने हाथों से लेटर ऑफ इंटेंट देकर इस योजना की शुरुआत की। लेकिन साल 2024 के चुनाव के पहले ही यह दावा दम तोड़ चुका है और उद्योगपति बनने का सपना देखने वाले सैकड़ों दलित सड़क पर आ चुके हैं।
दरअसल स्टैंड अप इंडिया स्कीम के तहत एससी/एसटी को इंटरप्रेन्योर बनाने के लिए एक स्कीम लाई गई। इसके मुताबिक ब्लक एलपीजी ट्रांसपोटेशन वर्क को पेट्रोलियम मिनिस्ट्री के तहत लांच किया गया। इसमें दलित एवं आदिवासी समाज के लोगों को उद्यमी बनाने का लक्ष्य था। इसमें तीन ऑयल कंपनियां शामिल थी। IOC-इंडियन ऑयल कारपोरेशन, BPCL-भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड और HPCL- हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन लिमिटेड।
इन तीनों कंपनियों ने मिलकर टेंडर निकाला जिसमें कहा गया कि वो टैंकर ट्रक खरीदने वाले उद्यमियों को अपने कंपनी के तहत काम देंगी। दरअसल यह योजना सालों से चल रही थी, लेकिन इस योजना में एससी-एसटी के लिए मिलने वाला आरक्षण पूरा नहीं हो पा रहा था। इस योजना के तहत एससी-एसटी समाज के उद्यमियों को उनकी जनसंख्या के हिसाब से 23 प्रतिशत का रिजर्वेशन दिया गया।
इसके लिए सरकार और दलितों के बीच उद्यमी तैयार करने का दावा करने वाले संगठन डिक्की, यानी DALIT INDIAN CHAMBER OF COMMERCE AND INDUSTRY नाम की संस्था ने सरकार, तेल कंपनियों और दलित उद्यमियों को एक साथ जोड़ा। डिक्की द्वारा बैंको से एमओयू किया गया। जिसमें बैंकों को बताया गया कि हर गाड़ी को प्रति महीने तकरीबन 5000 किलोमीटर का काम मिलेगा और यह एक फायदेमंद बिजनेस होगा।
डिक्की और तेल कंपनियों ने पहली बार उद्यम के क्षेत्र में उतरने वाले एससी-एसटी एंटरप्रेन्योर यानी नव उद्यमियों को जो गणित पहली मीटिंग में समझाया उसके मुताबिक एक गाड़ी से 50-60 हजार रुपये हर महीने की बचत थी। सरकारी स्कीम में लोन भी आसानी से मिल रहे थे। सो फायदे वाले बिजनेस में तमाम लोगों ने बैंक से लोन लेकर पैसा लगा दिया। दो बैंकों बैंक ऑफ बड़ोदा और बैंक ऑफ इंडिया ने ट्रक टैंकर खरीदने वाले एससी-एसटी उद्यमियों को लोन दिया। लेकिन पांच साल पहले जिस उम्मीद से दलित उद्मियों ने इस योजना में पैसा लगाया था, वह उम्मीद पूरी नहीं हो सकी और तमाम लोग दिवालिया हो चुके हैं। सैकड़ों लोगों की गाड़ियां खड़ी हो चुकी है। काम बंद है। और तुर्रा यह कि बैंकों ने अब उगाही का नोटिस भेजना शुरू कर दिया है, जिससे एससी-एसटी समाज के उद्यमियों में भारी बेचैनी है।
कोलकत्ता से ताल्लुक रखने वाले पीड़ित मनोज कुमार दास का कहना है कि हमलोगों से जो वादा किया गया था, वो पूरा नहीं हुआ। हमसे कहा गया था कि हमारी गाड़ियां पांच हजार किलोमीटर चलेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। डिक्की के एजवाइडर राजेश पासवान जब कोलकाता आए थे तो मैंने उनसे शिकायत की और स्थिति बताया। उनसे समाधान निकालने की अपील की। तो उनका कहना था कि यह स्कीम पुरानी हो गई है।
भगवती इंटरप्राइजेज के कुलदीप सिंह रंगा कहते हैं, “इसमें मुख्य भूमिका डिक्की और IOCL कंपनियों की थी। इसमें जो एमओयू साइन हुआ था, उसमें डिक्की, तेल कंपनियों और फाइनेंस मिनिस्ट्री के साथ हुआ था। इसमें सभी टर्म्स और कंडिशन डिक्की ने रखी थी। कहा गया था कि कोई दिक्कत आएगी तो इसका समाधान निकाला जाएगा। एससी-एसटी ट्रांसपोर्टर की मदद की जाएगी। लेकिन जब मुश्लिक वक्त आया तो किसी ने मदद नहीं की।”
दरअसल इस योजना में कई परते हैं। एक सरकार की स्टैंड अप इंडिया स्कीम का, दूसरा ऑयल कंपनियों का, तीसरा बैंकों का और चौथा, दलित उद्यमियों को इस योजना से जोड़ने वाले संगठन डिक्की का। पहले बात करते हैं इस योजना की। 16 फरवरी 2018 को डिक्की ने दिल्ली के नेहरू युवा केंद्र में एक मीटिंग बुलाई। इसमें तेल कंपनियों के अधिकारी भी मौजूद थे। यहां दलित और आदिवासी उद्यमियों के लिए ट्रक टैंकर चलाने की योजना पर चर्चा हुई। जो तमाम बातें कही गई, उसमें दलितों को इस बिजनेस में फायदा दिखाया गया। दलित उद्यमियों को भरोसा दिलाया गया कि एक टैंकर से तकरीबन 50 हजार रुपये की आमदनी होगी। टैंकर लेने के लिए कीमत का 10 से 25 फीसदी भुगतान करना था और बाकी पैसा बैंक से लोन होना था। एक गाड़ी की कीमत 35 लाख रुपये के करीब थी। इसमें से 20 से 35 प्रतिशत पूंजी अपने पास से लगानी थी। इसमें 4 से 7.5 लाख की बैंक गारंटी भी कम्पनी के पास रखना शामिल था।
योजना तय हो गई। और अब बारी थी बैंकों के जरिये लोन मिलने की। इस प्रोसेस में दो बैंक शामिल हुए। बैंक ऑफ बड़ोदा और इंडियन बैंक। बैंक ऑफ बड़ोदा ने Baroda Tankerz नाम से जबकि इंडियन बैंक ने इंधन वाहन के नाम से इसके लिए स्पेशल स्कीम बनाई और दलित उद्यमियों को लोन देना शुरू कर दिया। इससे पहले डिक्की और दोनों बैंकों के बीच तमाम नियम और शर्तों के साथ MoU साइन हुआ। इस योजना में मिनिमम एक टैंकर और मैक्सिमम तीन टैंकर के लिए लोन लिया जा सकता था। लोन की राशि 10 लाख से एक करोड़ रुपये के बीच थी। इसमें निवेश करने वाले उत्साहित थे। उन्हें लगा कि प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी योजना स्टैंड अप इंडिया के जरिये वो सच में उद्यमी बन जाएंगे। उन्हें लगा कि यह योजना उनका भविष्य सुधार देगी। दलित उद्यमियों ने लोन लेना शुरू किया।
दलित दस्तक के पास मौजूद जानकारी और आरटीआई से मिली सूचना के मुताबिक बैंक ऑफ बड़ोदा ने 457 निवेशकों को लोन दिया जबकि इंडियन बैंक ने 189 निवेशकों को लोन दिया। वर्तमान स्थिति यह है कि बैंक ऑफ बड़ोदा से लोन लेने वाले 457 में से 153 उद्यमी, जबकि इंडियन बैंक से लोन लेने वाले 189 में से 86 उद्यमी NPA यानी Non Performance Assets हो चुके हैं। आसान भाषा में कहें तो बैंक करप्ट हो चुके हैं।
इसमें से कईयों ने अपना ट्रक टैंकर खड़ा कर दिया है। वजह यह रही कि तेल कंपनियों की तरफ से हर महीने जो 5000 किमी ट्रक चलाने का भरोसा दिलाया गया था, वह पूरा नहीं हो सका। नतीजा, खर्च ज्यादा था और आमदनी कम। सो तमाम लोगों की EMI फेल होने लगी। आज आलम यह है कि तमाम गाड़ियां खड़ी है। कुछ तो एक साल से ऊपर खड़ी होकर स्क्रैप मैं तब्दील हो चुकी है। तो वहीं निवेशकों की बैंक गारंटी के रूप में 4 लाख से 7.5 लाख रूपये कम्पनी के पास सेक्युरिटी के रूप में है। यानी प्रधानमंत्री की महत्वकांक्षी योजना स्टैंड अप इंडिया स्कीम के जरिये उद्योगपति बनने का सपना देखने वाले सैकड़ों दलित दिवालिया हो चुके हैं।
इस पूरी स्कीम में चार पक्ष हैं। पहला- भारत सरकार की पेट्रोलियम मिनिस्ट्री। दूसरा- IOC, BPCL और HPCL जैसी तेल कंपनियां, तीसरा- डिक्की और चौथा लोन देने वाले बैंक। चूकि यह योजना भारत सरकार की थी तो बैंकों ने लोन देने में कोई दिक्कत नहीं की। अब सवाल उठता है कि ऐसा हुआ कैसे और इसके पीछे की वजह क्या रही? निवेशकों का आरोप है कि तेल कंपनियों के जरिये अनुमान के अनुरुप काम नहीं मिल पाने और डिक्की द्वारा कुछ जानकारियों को साझा नहीं करने की वजह से निवेशक पीछे होते गए।
लेकिन क्या दोष सिर्फ डिक्की, तेल कंपनियों और बैंकों का ही है? हमने इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की तो डिक्की और बैंकों ने इसके लिए निवेशकों को ही दोषी ठहरा दिया। दलित दस्तक ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में इसकी पड़ताल की। दलित दस्तक ने वाराणसी में राम कटोरा ब्रांच में संपर्क किया। यहां के अधिकारी ने कैमरे के सामने कुछ भी बोलने से मना कर दिया इसलिए हम उनका नाम नहीं बता रहे हैं, लेकिन दलित समाज के निवेशकों को लेकर उनकी सोच चौंकाने वाली थी। उनका कहना था कि दलित लोग सब पैसा खा गए और अब नुकसान का रोना रो रहे हैं। जिन लोगों के खाते में 10 हजार रुपये भी नहीं होते थे, उनलोगों को सरकार ने लाखों रुपये का लोन दे दिया। उनके साथ तो यही होना था। यह साफ तौर पर जातिवादी सोच थी।
दलित दस्तक ने डिक्की पर लगने वाले तमाम आरोपों के बारे में डिक्की के नेशनल प्रेसीडेंट रवि नारा से बात की। उन्होंने तमाम आरोपों से इंकार करते हुए इस मामले का हल निकालने के लिए राज्य स्तरीय मीटिंग करने की बात कही।
डिक्की द्वारा इस योजना में निवेश के लिए ग्रुप मैनेजमेंट कंपनी बनाई गई। निवेशकों के मुताबिक निवेशकों का टेंडर डिक्की ने खुद भरा। अब यहां टेंडर भरने के दो तरीके थे। एक RCM यानी रिवर्स चार्ज मैकेनिज्म के जरिये और दूसरा FCM यानी फारवर्ड चार्ज मैकेनिज्म के जरिये। ज्यादातर टेंडर RCM के जरिये भरा गया। निवेशकों का कहना है कि यहीं गड़बड़ हो गई, जिसके बारे में उन्हें बाद में समझ में आया। आरसीएम के जरिये ट्रक खरीदने की वजह से निवेशकों को एक ट्रक की खरीद पर 28 प्रतिशत जीएसटी देना पड़ा। जबकि जीएसटी के दो प्रोविजन थे। एक 5 प्रतिशत जीएसटी वाला और दूसरा 12 प्रतिशत जीएसटी वाला।
डिक्की ने पांच प्रतिशत वाले आरसीएम के जरिये टेंडर भरा। निवेशकों का आरोप है कि उन्हें डिक्की द्वारा जीएसटी को लेकर पूरी जानकारी नहीं दी गई। उनका कहना है कि अगर 12 प्रतिशत वाले FCM के जरिये टेंडर भरा जाता तो Input Tax Credit मिल जाता। यानी प्रति टैंकर 6 लाख रुपये वापस मिल जाते। यानी जिसने 3 गाड़ियां निकलवाईं उसे सीधे 18 लाख का नुकसान इसलिए हो गया क्योंकि डिक्की के जरिये उन्हें सही गाइडेंस नहीं मिल पाया।
काम शुरू होने के बाद उन्हें दूसरा झटका तेल कंपनियों से लगा। निवेशकों को भरोसा दिलाया गया था कि उनकी गाड़ियों को प्रति महीने 5000 किलोमीटर तक चलवाया जाएगा। यानी साल में कम से कम 60 हजार किलोमीटर। टेंडर के अनुसार 2018 के बाद बढ़े टोल टैक्स की क्षतिपूर्ति भी करने की बात कही गई। ये तमाम बातें टेंडर में मेंशन थीं। लेकिन तेल कंपनियों ने निवेशकों से किया वादा नहीं निभाया। अगर निवेशकों को समय से टोल के पैसे मिल जाते तो निवेशकों को तीन से चार लाख रुपये वापस मिल जाते। कंपनियों ने अपने एग्रीमेंट में इसका वादा भी किया था, लेकिन अब उसे पूरा नहीं कर रहे हैं। सवाल है कि अब इसका हल क्या है?
दलित उद्यमियों का कहना है कि हमें सब्सिडी दी जाए, टोल टैक्स के बकाया पैसों का भुगतान करने के लिए तेल कंपनियों को बोला जाए और हर महीने 5000 किलोमीटर काम का जो वादा किया गया था वो वादा पूरा किया जाए।
साफ है कि अगर डिक्की ने मुश्किल वक्त में निवेशकों का हाथ थामा होता और तेल कंपनियां अपने वादे के अनुरूप काम देती तो सैकड़ों दलित निवेशक आज सड़क पर नहीं होते। निवेशक सरकार से लोन माफ करने की अपील कर रहे हैं। देखना होगा कि इस मामले के सामने आने के बाद सरकार, डिक्की और तेल कंपनियां क्या उपाय निकालती हैं।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।