नई दिल्ली। Sorry for the inconvenience. भारत सरकार के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर बाबासाहेब की राइटिंग और स्पीच पढ़ने की कोशिश के दौरान ये शब्द आपको 19 बार लगातार पढ़ने को मिलेगा. और हर एक क्लिक के साथ ये खेद बाबासाहेब की राइटिंग औऱ स्पीच को पढ़ने के लिए मंत्रालय की वेबसाइट पर जाने वालों के लिए खीज पैदा कर सकता है. ऐसा कब से हो रहा है ये तो नहीं पता, लेकिन हाल ही में नागपुर के यश वासनिक (दलित दस्तक के पाठक) के जरिए यह मामला सामने आया है.
सरकार द्वारा डॉ. अम्बेडकर के विचारों पर पहरा लगाने की इस कवायद से डॉ. अम्बेडकर को पढ़ने में रुचि रखने वाले शोधार्थियों एवं अन्य लोगों को तमाम मुश्किलों का सामना करना पर रहा है. इससे सरकार की मंशा पर भी सवाल उठने लगे हैं. माना जा रहा है कि बाबासाहेब के मानवतावादी विचार हिन्दुत्व के पोषकों के खिलाफ जाता है, इसलिए सरकार नहीं चाहती है कि बाबासाहेब के विचार लोगों तक पहुंचे. बाबासाहेब की राइटिंग और स्पीच को सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी खूब पढ़ा जाता है.
बदलते वक्त में वो डॉ. अम्बेडकर ही हैं, जिन्हें आज सबसे ज्यादा खोजा और पढ़ा जा रहा है. लेकिन संघ समर्थित भारतीय जनता पार्टी की सरकार में यह सच्चाई सामने आने के बाद यह साफ माना जा रहा है कि ऐसा जानबूझ कर किया गया है, क्योंकि इस लिंक के अलावा वेबसाइट पर मौजूद तमाम लिंक आसानी से खुल रहे हैं. इसे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का भारत रत्न डॉ. अम्बेडकर को लेकर दोहरा चरित्र भी उजागर हुआ है. क्योंकि बीते अप्रैल माह में इसी सरकार ने अम्बेडकर जयंती को धूमधाम से मनाने का खूब ढोंग रचा. जहां-जहां भाजपा की सरकार थी; वहां अम्बेडकर जयंती को लेकर खूब प्रपंच रचा गया. बाबासाहेब को हिन्दुवादी प्रतीकों से जोड़ने की भी खूब कोशिश की गई. इससे अम्बेडकरवादी संगठनों में केंद्र और भाजपा शासित राज्य सरकारों को लेकर काफी नाराजगी भी रही.
भाजपा सरकार पर इसलिए भी सवाल उठ रहा है क्योंकि वह बाबासाहेब को खुद से जोड़ने की कोशिश तो कर रही है लेकिन उनके विचारों पर प्रतिबंध लगा रही है. यही नहीं कई जगहों पर बाबासाहेब के विचारों को हिन्दुत्ववादी साफे में लपेट कर परोसने की कोशिश हो रही है और उन्हें जबरन हिन्दुत्व से जोड़ा जा रहा है, जबकि हकीकत यह है कि बाबासाहेब ने सालों पहले हिन्दू धर्म में मौजूद जाति व्यवस्था के खिलाफ मानवतावादी बौद्ध धम्म की शरण ले ली थी. बाबासाहेब चाहते थे कि उनके विचारों का ज्यादा से ज्यादा प्रचार हो, लेकिन यह सरकार अपना राजनैतिक हित साधने के लिए सिर्फ बाबासाहेब का नाम तो ले रही है लेकिन उनके विचारों पर पहरा लगा रही है.
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