मोदी सरकार अपने को दलितों की सबसे बड़ी हितैषी के रूप में प्रस्तुत कर रही है और हितैषी होने की मार्केंटिंग भी कर रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव और इस दौरान होने वाले तमाम विधानसभाओं के चुनाव में उसे अपनी इस मार्केटिंग का फायदा भी मिला. आगामी सालों में गुजरात सहित अन्य राज्यों के चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए भाजपा ने दलित समुदाय में जन्मे व्यक्ति को राष्ट्रपति बनाकर अपनी इस दावेदारी को पुख्ता करने की एक बड़ी कोशिश है. लेकिन दलित हितैषी होने के खुद की मार्केटिंग से इत्तर सच के धरातल पर मोदी सरकार कहां टिकती है?
इसे बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर के नजरिये से देखना ज्यादा ठीक होगा. डॉ. अम्बेडकर ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि “सामाजिक और आर्थिक पुनर्निमाण के आमूल परिवर्तनकामी कार्यक्रम के बिना अस्पृश्य कभी भी अपनी दशा में सुधार नहीं कर सकते हैं.” भारतीय संविधान अनुसूचित जातियों और जनजातियों के आर्थिक हालात में सुधार के लिए विशेष प्रावधान करने का निर्देश देता है.
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इन निर्देश के तहत समय-समय पर विविध नीतियां बनाई गई, इसमें सबसे निर्णायक महत्व का प्रावधान 1974 और 1979 में बनाई गई आर्थिक योजना, अनुसूचित जनजाति उपयोजना (TSP) और अनुसूचित जाति उपयोजना (SCSP) थी. इसके तहत यह प्रावधान किया गया था कि केंद्रीय बजट का विशेष हिस्सा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए अलग से आवंटित किया जाएगा.
यह हिस्सा कुल जनसंख्या में उनके अनुपात के हिसाब से होगा. यानि यदि 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जातियों की कुल जनसंख्या में अनुपात 16.6 और अनुसूचित जनजातियों का 8.6 प्रतिशत है तो इसका मतलब यह है कि भारत के केंद्रीय बजट का 25.2 प्रतिशत अलग से अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आवंटित किया जाएगा. यही तरीका राज्यों के बजट में भी उस प्रदेश में अनुसूचित जाति एवं जनजाति की जनसंख्या के अनुपात में भी अपनाया जाएगा.
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इस संदर्भ में यह भी ध्यान देना जरूरी है कि इस विशेष आवंटन के इतर सामान्य योजनाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की समान हिस्सेदारी होगी. आइए इस बात की पड़ताल करें कि इस विशिष्ट प्रवधान और अन्य प्रावधानों के संर्दभ में मोदी सरकार ने पिछले तीन सालों में क्या किया है?
अगले खुलासे में पढ़िए- अनुसूचित जातियों पर अरूण जेटली का बजट
डॉ. सिद्धार्थ का खुलासा.

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