दिल्ली और मुंबई स्थित बीबीसी दफ्तर पर आयकर विभाग के अधिकारियों के घंटों तक जमे रहने के बाद दुनिया भर में मोदी सरकार की जमकर किरकिरी हो रही है। आलम यह है कि इस पर दुनिया के अलग-अलग देशों से निकलने वाले अखबारों ने मोदी सरकार पर हमला बोला है। अखबारों ने भारत में प्रेस स्वतंत्रता पर हो रहे हमले को लेकर पीएम मोदी और उनकी सरकार पर निशाना साधा है। दुनिया के बड़े अखबार न्यूयार्क टाइम्स ने लिखा है-
‘भारत के अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के प्रति भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रुख़ की आलोचना करने वाली डॉक्यूमेंट्री के प्रसार को रोकने की कोशिश किए जाने के हफ़्तों बाद उनकी सरकार के आयकर विभाग के अधिकारियों ने मंगलवार को बीबीसी के दिल्ली और मुंबई दफ़्तरों पर छापा मारा है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की सरकारी एजेंसियों ने अक्सर ही स्वतंत्र मीडिया संस्थानों, मानवाधिकार संगठनों और थिंक टैंकों पर छापे मारे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता सरकार की ओर से उनके फ़ंडिंग स्रोतों को निशाना बनाने को आलोचनात्मक आवाज़ों को दबाने की कोशिशों के रूप में देखते हैं।’
अमेरिका से ही प्रकाशित वॉशिंगटन पोस्ट ने मोदी सरकार की इस कार्रवाई पर एक बड़ी रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसमें भारत में प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर बात की गयी है। वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है-
‘आयकर विभाग अधिकारियों के बीबीसी के मुंबई और दिल्ली स्थित दफ़्तरों पर पहुंचने से दुनिया भर का ध्यान भारत में प्रेस स्वतंत्रता के ख़राब हालातों पर गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इसे ”सर्वे” कहा है जो कि टैक्स रेड को व्यक्त करने का ही एक अलग ढंग है। इसकी टाइमिंग को लेकर भी सवाल हैं क्योंकि ब्रितानी प्रसारक ने तीन हफ़्ते पहले ही एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ की थी जिसमें साल 2002 के गुजरात सांप्रदायिक दंगों में पीएम नरेंद्र मोदी की कथित भूमिका की ओर ध्यान खींचा गया था। इस मामले में मोदी काफ़ी संवेदनशील दिखे हैं। उनकी सरकार ने डॉक्यूमेंट्री ब्लॉक करने के साथ ही सोशल मीडिया से लेकर विश्वविद्यालयों में उसकी क्लिप्स को रोकने की कोशिश की।’
अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भी इस कार्रवाई की टाइमिंग पर सवाल उठाया है। अखबार ने लिखा है- ‘ये कार्रवाई मोदी सरकार की ओर से बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया- द मोदी क्वेश्चन’ को और उसके अंशों को प्रतिबंधित करने के लिए आपातकालीन क़ानूनों को अमल में लाए जाने के एक महीने से भी कम समय में की गयी है। सरकारी एजेंसियों ने इस डॉक्यूमेंट्री को अपने विश्वविद्यालयों में सामूहिक रूप से देखने की कोशिश करने वाले छात्रों को भी हिरासत में लिया है।’
जर्मनी के प्रमुख मीडिया संस्थान डी डब्ल्यू ने इस मामले में ख़बर लिखते हुए बताया है कि ‘जनवरी में बीबीसी ने दो हिस्सों वाली एक डॉक्यूमेंट्री रिलीज़ की थी। इस डॉक्यूमेंट्री में ये आरोप लगाया गया था कि मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए साल 2002 के दंगों में पुलिसकर्मियों को आंखें मूंदने का आदेश दिया था। इस हिंसा में एक हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हुई थी जिसमें ज़्यादातर लोग मुसलमान थे। डी. डब्ल्यू ने यह भी कहा है कि भारत सरकार ने अपने सूचना प्रोद्योगिकी क़ानून में निहित आपातकालीन ताक़तों का इस्तेमाल करते हुए डॉक्यूमेंट्री साझा करने वाले ट्वीट्स और वीडियो लिंक्स को ब्लॉक किया था।’
हालांकि बीबीसी ने इस मामले पर जारी अपने बयान में बस इतना भर कहा है कि ‘हम अपने कर्मचारियों की मदद कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि स्थिति जल्द से जल्द सामान्य हो जाएगी। हमारा आउटपुट और पत्रकारिता से जुड़ा काम सामान्य दिनों की तरह चलता रहेगा। हम अपने ऑडियंस को सेवा देने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’
लेकिन जिस तरह से दुनिया भर के मीडिया संस्थानों में मोदी सरकार की बीबीसी के खिलाफ कार्रवाई को लेकर बातें हो रही है, उससे साफ है कि आने वाले दिनों में भारत में प्रेस स्वतंत्रता को लेकर बहस तेज हो सकती है। कुल मिलाकर दुनिया भर के अखबार मोदी सरकार की आलोचना कर रहे हैं, जिससे मोदी सरकार की साख को बट्टा जरूर लग गया है।
सिद्धार्थ गौतम दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं। पत्रकारिता और लेखन में रुचि रखने वाले सिद्धार्थ स्वतंत्र लेखन करते हैं। दिल्ली में विश्वविद्यायल स्तर के कई लेखन प्रतियोगिताओं के विजेता रहे हैं।