- लेखकः सिद्धार्थ रामू
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं, बुद्ध दिया. ऐसे में यह सवाल उठता है कि प्रधानमंत्री मोदी जी का बुद्ध से नाता क्या है? क्या बुद्ध के जीवन, दर्शन, धम्म और विचारधारा का कोई भी ऐसा तत्व है, जिस वे स्वीकार करते हों?
आइए सबसे पहले करूणा और अहिंसा को लेते हैं, जिसके लिए दुनिया बुद्ध को जानती है. प्रधानमंत्री जी क्या यह याद दिलाने की जरूरत है, आपके नेतृत्व में 2002 में इस देश में गुजरात जैसा नरसंहार हुआ, जिसमें करीब 2000 से अधिक लोग नृशंस और क्रूर तरीके से मारे गए. लोगों को जिंदा जलाया गया, सड़कों पर गर्भवती महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार उनका पेट फाड़ दिया गया. नृशंसता और क्रूरता की सारी हदें आपके नेतृत्व में आपके लोगों ने पार कर दिया.
आज भी आपके लोग आए दिन मांब लिंचिंग कर रहे हैं, जिसके शिकार मुसलमान, ईसाई और दलित बन रहे हैं. अभी हाल हीं में आपके बजरंगी लोगों ने एक विकलांग आदिवासी को पीट-पीटकर मार डाला. यह कहते हुए कि वह गोमांस वितरित कर रहा था.
आपके आदर्श सावरकर मुस्लिम महिलाओं के साथ बलात्कार के लिए हिंदुओं को ललकारते हैं, संघ की पाठशाला के आपके गुरू गोलवरकर मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को हिंदुओं का सबसे बड़ा शत्रु घोषित कर इनके सफाए की बात करते हैं. क्या इस सोच का कोई रिश्ता बुद्ध से है? आपके एक आदर्श अटल बिहारी वाजपेयी ने दुनिया के सबसे भयानक-विध्वंस हथियार परमाणु बम को बुद्ध के साथ जोड़कर बुद्ध की करूणा, अहिंसा और विश्व मानवता के साथ प्रेम का मजाक उड़ाया था.
मोदी जी आप और आपकी पाठशाला संघ के लोगों का सबसे बड़ा आदर्श हिटलर है, जिसने सैंकडों, हजारों, लाखों नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया. जिसमें बच्चे, बूढ़े भी शामिल थे. जिसका एक छोटा रूप आपके नेतृत्व में गुजरात में देखने को मिला. आपके सभी देवी-देवता भयानक तौर पर हिंसक हैं. आपके वेद, पुराण, स्मृतियां और महाकाव्य हिंसा से भरे पड़े हैं. यह हिंसा इसी देश के अनार्यों, द्रविड़ों, शूद्रों, अतिशूद्रों और महिलाओं के खिलाफ की गई है, जो आज भी जारी है.
मोदी जी क्या गुजरात की हिंसा, क्रूरता और अमानवीयता और आपके लोगों द्वारा इस समय की जा रही क्रूर एवं नृशंस मांब लिंचिग का कोई रिश्ता बुद्ध, उनकी करूणा एवं अहिंसा से है? मोदी जी, बुद्ध से आप और आपकी पाठशाला का क्या रिश्ता है. इस संदर्भ में कई सारे अन्य गंभीर एवं जरूरी सवाल पूछने हैं, लेकिन फिलहाल आज नहीं.
आज सिर्फ एक बात और कहना चाहता हूं कि आप, आपकी विचारधारा, आपके नायकों, आपके प्रिय ग्रंथों और आपकी पाठशाला संघ ने इस देश से बुद्ध एवं उनके धम्म को उखाड़ फेंकने के लिए सबकुछ किया है, आज भी कर रहें हैं. जिसमें बड़े पैमाने की हिंसा भी शामिल है. इसके साक्ष्यों से इतिहास भरा पड़ा है. एक बौद्ध भिक्षु के सिर के बदलने एक सौ स्वर्ण मुद्राएं देने की की घोषणा ब्राह्मण राज्य के संस्थापक ब्राह्मण पुष्टमित्र शुंग ने किया था. डॉ. आंबेडकर ने अपनी किताब प्राचीन भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति और अन्य किताबों में विस्तार से इसके बारे में लिखा है.
प्रधानमंत्री जी आप जिस परंपरा का वारिस खुद को मानते हैं, जिस पाठशाला का स्वयं को स्वयंसेवक मानते हैं, उसने दुनिया को बुद्ध को नहीं दिया है, गोड़से दिया है. हां बुद्ध को इस देश की धरती से उखाड़ फेंकने के लिए सबकुछ जरूर किया है .
लेखक फारवर्ड प्रेस से जुड़े हैं।
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