नई दिल्ली। सबका साथ सबका विकास का नारा देने वाले मोदी सरकार के बारे में एक चौंका देने वाली सच्चाई सामने आई है, जो मोदी सरकार के दावे को झुंठला रहे हैं. सरकार के इस दावे की धज्जियां किसी और ने नहीं बल्कि खुद भाजपा के नेताओं ने उड़ाई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चार साल के शासनकाल में दिग्गज नेताओं के घृणित और विभाजनकारी बयानों में करीब 500 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
न्यूज चैनल एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक सासंद, मंत्री और विधायकों के साथ मुख्यमंत्री पद पर बैठे नेता भी इस दौरान नफरत भरे बयान देने से नहीं चूके. रिपोर्ट में सांसद, विधायकों, मुंख्यमंत्रियों के अलावा उन नेताओं के बयानों को भी शामिल किया गया है जो या तो पार्टी के प्रमुख हैं या राज्यों के राज्यपाल हैं. पब्लिक रिकॉर्ड्स और इंटरनेट के जरिए इकट्ठा कर बनाई गई इस रिपोर्ट में करीब 1300 आर्टिकल और अन्य सूत्रों से मिली सामग्रियों को शामिल किया गया है.
अध्ययन में अप्रैल के अंत तक आला नेताओं के करीब एक हजार ट्वीट्स को भी शामिल किया गया है. अगर सिलसिलेवार बात करें तो, मई, 2014 से अबतक 44 राजनेताओं द्वारा 124 बार नफरत भरे बयान दिए गए. इसी तरह पिछली सरकार के मुकाबले मोदी सरकार में नफरत भरे बयानों के मामले में 490 फीसदी की बढ़तरी हुई है.
अगर अलग अलग बात करें तो इस रिपोर्ट के मुताबिक 44 नेताओं द्वारा दिए नफरत भरे बयानों में 77 फीसदी यानी 34 भाजपा से ताल्लुक रखते हैं जबकि 23 फीसदी यानी 10 नेता कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल से ताल्लुक रखते हैं.
हालांकि वहीं यह बात भी चौंकाने वाली है कि इन बयानों के लिए किसी पर भी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है. रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार में जिन 44 नेताओं ने नफरत भरे बयान दिए उनमें सिर्फ पांच मामले में नेताओं को फटकाई लगाई गई या चेतावनी दी गई या इन नेताओं ने सार्वजिनक रूप से माफी मांगी. नफरत भरे बयान देने वाले 44 नेताओं में महज 11 खिलाफ केस दर्ज किया गया.
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