भोपाल। शिवराज सरकार किसान आंदोलन से बुरी तरह घबराई हुई है इसका ताजा उदहारण अभी सामने आया है. किसानों के विरोध प्रदर्शन से घबराई भाजपा सरकार ने मध्यप्रदेश के जिलाधिकारियों को किसी भी व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत गिरफ्तार करने का अधिकार दे दिया है. यह सूचना गजट में भी छाप दी गई है.
मध्यप्रदेश सरकार के 19 जून के राजपत्र में गृह विभाग की ओर से अधिसूचना प्रकाशित करते हुए कहा है कि राज्य शासन के पास ऐसी रिपोर्ट है कि कुछ सांप्रदायिक तत्व मेल-मिलाप को संकट में डालने के लिए लोक व्यवस्था और राज्य की सुरक्षा पर विपरित प्रभाव डालने वाला कोई कार्य करने के लिए सक्रिय है. या उनके सक्रिय होने की संभावना है. इस अधिसूचना में आगे कहा गया है कि एक जुलाई से 30 सितंबर के दौरान जिलाधिकारी अपनी स्थानीय सीमाओं के भीतर रासुका की धारा 3 की उपधारा 3 का उपयोग कर सकेंगे.
गौरतलब है कि किसान आंदोलन के दौरान पुलिस की दमनकारी कार्रवाई में छह किसानों की मौत और एक के बाद एक 15 किसानों की आत्महत्या से मध्यप्रदेश एक बार फिर राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में है. किसान अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं, तो वहीं विपक्षी पार्टियां स्वाभाविक रूप से उनके समर्थन में उतर आई हैं.
उधर सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाए जाने के खिलाफ नर्मदा बचाओ आंदोलन भी जोर पकड़ रहा है. आंदोलनों के बीच सरकार के इस दमनकारी फैसले का राजनीतिक और सामाजिक संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया है.
इस मामले में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के राज्य सचिव बादल सरोज ने एक बयान जारी कर कहा है कि देशभर में आपातकाल थोपकर लोकतंत्र पर जघन्य हमले की 42वीं बरसी के एक सप्ताह पहले ही मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने प्रदेश में आपातकाल थोपने जैसी घोषणा की है.
उन्होंने आगे कहा कि शिवराज सरकार ने कलेक्टरों को मनमानी गिरफ्तारियों का अधिकार प्रदेशभर में फैल रहे किसानों में असंतोष, जीएसटी के विरुद्ध व्यापारियों में असंतोष और सरकारी कारगुजारियों के चलते जनता में उपजी बेचैनी से डरकर दिया है. इनकी मंशा राजनीतिक, सामाजिक कार्यकर्ताओं को पकड़कर बिना मुकदमा जेल में डालने की है.
एकता परिषद के अध्यक्ष रणसिंह परमार ने कहा है कि राज्य सरकार की यह अधिसूचना विभिन्न आंदोलनों का दमन करने की नीति है. सरकार ने सभी जिलाधिकारियों को असीमित अधिकार दे दिए हैं, जिसके जरिए वे किसी भी व्यक्ति को जेल भेज सकते हैं. शांतिपूर्वक और अहिंसक तरीके से आंदोलन करना जनता का संवैधानिक अधिकार है, लेकिन यह सरकार संवैधानिक अधिकारों को छीनना चाह रही है जिसका विरोध होना चाहिए.
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