कर्नाटक विधानसभा की 224 सीटों में से 222 सीटों पर हुई वोटिंग के नतीजे तकरीबन आ गए हैं. नतीजों के मुताबिक भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई है. भाजपा को 104 सीटें मिली है, और उसे 65 सीटों का फायदा हुआ है. जबकि कांग्रेस के पाले में 78, जेडीएस के खाते में 38, बसपा के खाते में एक जबकि अन्य के खाते में एक सीट गई है.
हर चुनाव में तमाम फैक्टर महत्वपूर्ण होते हैं. हम आपको बताने जा रहे हैं वो तमाम फैक्टर जो कर्नाटक चुनाव में अहम रहे हैं. इसमें हम लिंगायत फैक्टर से लेकर दलित, पिछड़ा और मुस्लिम फैक्टर की भी बात करेंगे.
सबसे पहले हम वोट परसेंटेज की बात करते हैं. जो कांग्रेस के लिए बड़े राहत की बात हो सकती है. इस चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा 38 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि भाजपा को 36.2 फीसदी. जेडीएस के खाते में 18.3 फीसदी वोट आए हैं.
भाजपा को 38 फीसदी वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस को उससे सिर्फ एक फीसदी कम यानि की 37 फीसदी वोट मिले हैं. वोट शेयर में सिर्फ एक फीसदी की कमी के बावजूद दोनों के बीच सीटों पर जीत का अंतर काफी ज्यादा है. इसके अलावे जेडीएस को 17 फीसदी वोट हासिल हुए हैं जबकि अन्य के हिस्से में 8 फीसदी वोट आए हैं.
इस चुनाव परिणाम के बीच हम सबसे पहले बात करेंगे लिंगायत फैक्टर की. कर्नाटक में लिंगायत समाज का काफी अहम रोल है. वो किसी को भी हराने और जीताने का माद्दा रखते हैं. चुनाव से पहले कांग्रेस ने लिंगायतों की एक बड़ी मांग मान कर उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दे दिया. तो वहीं राहुल गांधी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से पहले ही लिंगायत समाज के सबसे प्रमुख संत से मिलने में सफल रहे थे. इसके बात माना जा रहा था कि लिंगायत समाज का एकमुश्त समर्थन कांग्रेस को मिलेगा. लेकिन चुनाव के नतीजे बताते हैं कि राहुल गांधी लिंगायत संत से मिलने में तो सफल रहें लेकिन आशीर्वाद हासिल करने से चूक गए हैं.
लिंगायत फैक्टर
कर्नाटक चुनाव में लिंगायत समाज 67 सीटों पर हार जीत का फैसला करता है. इसमें भाजपा को 40 सीटें मिली हैं. उसे 27 सीटों का फायदा हुआ है. जबकि कांग्रेस 20 सीटें ही जीत पाई है. उसे 20 सीटों का नुकसान हुआ है. जेडीएस के खाते में 7 सीटें आई है और उसे 2 सीटों का नुकसान हुआ है.
मुस्लिम फैक्टरः की बात करें तो यह समाज प्रदेश की 17 सीटों को प्रभावित करता है. मुस्लिम समाज पिछली बार की तरह इस बार भी कांग्रेस के पक्ष में खड़ा रहा. मुस्लिम प्रभावित इलाकों में कांग्रेस 10 सीटें जीती है, उसे सिर्फ एक सीट का नुकसान हुआ है. हालांकि भाजपा पिछली बार के 3 सीटों की जगह इस बार 6 सीटें जीतने में कामयाब रही है. जेडीएस को एक सीट मिली है, उसे एक सीट का नुकसान हुआ है.
ओबीसी फैक्टरः कर्नाटक की 24 विधानसभा सीटों को प्रभावित करता है. इसने भाजपा का साथ दिया है. भाजपा ने ओबीसी प्रभावित 24 में से 18 सीटें जीती है, उसे 16 सीटों का फायदा हुआ है. कांग्रेस को 5 सीटें मिली है, उसे 11 सीटों का नुकसान हुआ है. जेडीएस के हिस्से में पिछली बार की तरह एक सीट आई है.
अब बात करते हैं आदिवासी फैक्टर की. आदिवासी समाज प्रदेश की 10 सीटों को प्रभावित करता है और उसने कांग्रेस का साथ दिया है. कांग्रेस 7 सीटें जीती है, उसे दो सीटों का फायदा हुआ है. पिछली बार भाजपा इस क्षेत्र की कोई सीट नहीं जीत पाई थी, इस बार उसे भी दो सीटें मिली है. जबकि जेडीएस के हिस्से में पिछली बार की तरह 1 सीट आई है.
अब बात करते हैं उस फैक्टर की जिसका समर्थन देश भर में तमाम दलों की जीत-हार तय करता है. कर्नाटक चुनाव में दलित फैक्टर की बात करें तो यह समाज 38 सीटों पर किसी को हराने या जीताने में सक्षम है. दलित वोटर हालांकि किसी एक दल के पीछे गोलबंद नहीं हुए और उन्होंने सबको वोट दिया है. लेकिन दलित प्रभावित क्षेत्रों में भजापा 12 सीटें जीतने में कामयाब रही है, उसे 7 सीटों का फायदा हुआ है. कांग्रेस के हिस्से में सबसे ज्यादा 17 सीटें तो आई है, लेकिन उसे 4 सीटों का नुकसान हुआ है. जहां तक जेडीएस की बात है तो उसे 8 सीटें मिली है, और उसे पिछले चुनाव के मुताबले 3 सीटों का नुकसान हुआ है. बसपा ने अपना खाता खोला है और एक सीट जीतने में कामयाब रही है.
जाहिर सी बात है कि इन तमाम फैक्टरों ने जीत-हार में काफी अहम भूमिका निभाई है. किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद प्रदेश में सत्ता हासिल करने की जोर आजमाइश शुरू हो चुकी है. देखना है कि सत्ता किसके हाथ में जाती है।
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।
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