नए रिसर्च से पता चलता है कि “नमो बुद्धाय” का प्रचलन पुराना है। तेलंगाना के मेदक जिले की मंजीरा नदी की घाटी से पुरातत्ववेत्ता एम. ए. श्रीनिवासन की टीम ने प्राचीन “नमो बुद्धाय” खोज निकाला है। कुल्चाराम से बस एक किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ की एक गुफा (गुहाश्रय) से चट्टानों पर लिखा हुआ “नमो बुद्धाय” मिला है। चूँकि दक्षिण भारत में “ध” नहीं है, इसलिए “हे नमो बुद्धाय” लिखा हुआ है। अभिलेख प्राकृत भाषा और धम्म लिपि में है।
लिपि विशेषज्ञों ने इस लिपि का समय प्रथम सदी या इसके कुछ पहले का बताया है, मतलब कि “नमो बुद्धाय” कम से कम दो हजार साल पुराना अभिवादन है। प्राकृत में “हे” अव्यय है, जो संबोधन के लिए आता है तथा “नमो” भी अव्यय है, जिसका अर्थ “नमस्कार है” होता है।
कुल्चाराम में “आराम” जुड़ा है, जैसे संघाराम में “आराम” जुड़ा है। यहीं कारण है कि कुल्चाराम के आस-पास के गुहाश्रयों में बुद्धिज्म से जुड़े और भी स्लोगन लिखे मिलते हैं।
(नोट: शीलबोधि जी का मत है कि इस अभिलेख का प्रथम लेटर “ओ” है और यह मत गलत नहीं है। “ओ” के आगे बिंदु है, जो इसे “ओम्” बनाता है। तब इसका पाठ होगा- ओम् नमो बुद्धाय। ओम् नमो बुद्दाय का पाठ ग्रहण करने पर यह धारणी का स्वरूप ग्रहण कर लेगा। धारणी विशेषकर महायान और तंत्रयान के मंत्र हैं, जिनमें प्रायः संकर संस्कृत का प्रयोग हुआ है। ऐसा माना जाता है कि धारणी का संग्रह कनिष्क के समय से होना आरंभ हुआ।)
बौद्ध चिंतक और बौद्ध धम्म पर कई पुस्तकें लिखने वाले राजेन्द्र प्रसाद के फेसबुक वॉल से
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