नई दिल्ली। 30 नवंबर 2016 को मध्य प्रदेश के रहने वाले श्याम नारायण चौकसे की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सिनेमाहॉल में फिल्म से पहले राष्ट्रगान अनिवार्य कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था ‘राष्ट्रगान को लोगों में देशभक्ति जगाने का एक अहम ज़रिया है’. लेकिन कल 09 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बदलाव किया है, जिसके तहत अगर हॉल मालिक चाहें तो राष्ट्रगान बजा सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने रुख में बदलाव करते हुए ये भी कहा, “लोगों में देशभक्ति जगाना कोर्ट का काम नहीं है. सरकार अगर हमारे आदेश को सही मानती है तो खुद नियम बनाए. कोर्ट के कंधे का इस्तेमाल न करे.”
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड की तीन सदस्यीय बेंच ने उस हलफनामे को स्वीकार किया जिसमे केंद्र सरकार ने राष्ट्रगान से जुड़े सभी पहलुओं को देखने के लिए 12 सदस्यों की कमिटी का गठन करने को कहा है. कमिटी में कई मंत्रालयों के आला अधिकारी शामिल हैं. ये कमेटी छह महीने में राष्ट्रगान को लेकर नियमों में बदलाव पर रिपोर्ट देगी.
केंद्र की तरफ से एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने सुझाव दिया कि इस दौरान हॉल में राष्ट्रगान बजाने की अनिवार्यता को खत्म कर दे. इस सुझाव को स्वीकार कोर्ट ने कहा, “थिएटर चलाने वाले चाहें तो फ़िल्म से पहले राष्ट्रगान चला सकते हैं. अगर वो ऐसा करते हैं तो हॉल में मौजूद लोगों को उस दौरान खड़ा होना होगा. दिव्यांग लोगों को इससे छूट हासिल होगी.”
कोर्ट ने ये भी कहा कि वो मामले से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई बंद कर रहा है. इससे साफ है कि अब ये सरकार को ही तय करना है कि भविष्य में सिनेमा हॉल या दूसरी जगहों में राष्ट्रगान अनिवार्य होगा या नहीं.
गंधर्व गुलाटी

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