Written By- प्रेमकुमार मणि
जुलाई महीने की 29 तारीख को केंद्रीय सरकार ने नई शिक्षा नीति की घोषणा की है। इसके पूर्व 1986 में राजीव गाँधी सरकार ने इस विभाग में एक बदलाव लाया था, जिसमे दिखने लायक बात यही थी कि शिक्षा विभाग का नाम बदल कर मानव संसाधन विभाग कर दिया गया था। कल की घोषणा में पुनर्मूसिको भव, अर्थात फिर से इस विभाग का नाम शिक्षा मंत्रालय हो गया।
कुछ बड़ी तब्दीलियां की गयी हैं। 10 +2 प्रणाली को ख़त्म कर के 5 +3 +3 +4 प्रणाली अपनायी गयी है। स्कूल से पहले ही बच्चों की शिक्षा आरम्भ हो जाएगी। इसे आंगनबाड़ियाँ अंजाम देंगी और यह फाउंडेशन कोर्स होगा। यह तीन साल को होगा। प्री -स्कूलिंग दो साल का होगा – कक्षा एक और दो। इस तरह फाउंडेशन और प्री मिल कर आरंभिक पांच। फिर कक्षा तीन से पांच तक का तीन वर्षीय मिडिल कोर्स। इसके बाद छह, सात,आठ का सेकंडरी और आखिर में नौ, दस, ग्यारह,बारह का हायर सेकंडरी कोर्स। खास बात यह है कि मिडिल कोर्स से ही कौशल विकास पर जोर दिया जायेगा। उम्मीद की गयी है कि हर छात्र किसी न किसी हुनर के साथ, यानी हुनरमंद होकर ही स्कूल से बाहर निकलेगा। इस लक्ष्य की सराहना कौन नहीं करना चाहेगा। लेकिन, यह इतना आसान नहीं है।
वीडियो देखिए- बाबासाहेब की नई पीढ़ी का धमाल, देश, प्रदेश, जिलों में बने टॉपर
इस पूरे प्रयोग को समझना थोड़ा मुश्किल है। हालांकि इस नीति को अंजाम देने के लिए सुब्रह्मण्यम और कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली अलग-अलग समितियों ने मिहनत की है। निचले स्तरों से भी काफी कुछ अध्ययन किये जाने की बात कही गयी है। फिर भी बहुत से सवाल उठते हैं। मेरी जानकारी के अनुसार आंगनबाड़ी अभी भी बच्चों की देखभाल करती है। इस घोषणा ने उसे बाल कल्याण से उठा कर शिक्षा विभाग के अंतर्गत ला दिया है। बाकी बारह कक्षाओं की व्यवस्था है ही। मेरी समझ से पुरानी व्यवस्था 10 +2 अधिक सही थी। दो सोपानीय की जगह चार सोपानीय का अर्थ कुछ समझ में नहीं आया। क्या सरकार चाहती है कि बच्चे बीच में पढाई का सिलसिला तोड़ें? यानी पहले, दूसरे या तीसरे सोपान पर भी स्कूल छोड़ सकते हैं।अनिवार्य शिक्षा के वातावरण को यह कमजोर करता प्रतीत होता है। ग़रीबों को शिक्षा से दूर रखने की छुपी और शातिर कोशिश के रूप में भी इसे देखा जायेगा।
उच्च शिक्षा में डिग्री कोर्स को चार साल का किया गया है। इसके बाद पोस्ट ग्रेजुएट, यानि मास्टर डिग्री। मास्टर डिग्री के बाद बिना एम् फिल के पीएचडी। डिग्री कोर्स को ऐसा बनाया गया है कि छात्र बीच में भी यदि पढाई छोड़ते हैं, तो उन्हें सर्टिफ़िकेट मिलेगा। पहला साल पूरा करने के बाद सर्टिफिकेट, दूसरे साल के बाद छोड़ने पर डिप्लोमा और तीसरे -चौथे साल के बाद डिग्री दे दिए जाने की व्यवस्था है। इसे मल्टीपल एंट्री और मल्टीपल एग्जिट सिस्टम कहा गया है।
वीडियो- एक दलित कारसेवक से सुनिए अयोध्या आंदोलन की सच्चाई
आरंभिक शिक्षा में पहले भी मादरी-जुबानों पर जोर था। इस व्यवस्था में भी है। उच्च शिक्षा में निजी और सरकारी क्षेत्र के संस्थानों को एक ही शिक्षा नीति के तहत चलने की बात कही गयी है। यह सराहनीय है। लेकिन प्राथमिक और उच्च दोनों स्तरों पर यह नीति छात्रों को ड्रॉप-आउट के लिए उत्साहित करती प्रतीत होती हैं। इस लिए मैं इसकी सराहना करने में स्वयं को रोकना चाहूँगा।
प्रेस को जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावेड़कर उत्साहित थे। मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक और उनसे भी बढ़ कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्साहित थे। लेकिन मैंने इसे उलट -पुलट कर जो देखा उससे उत्साहित होने की जगह भयभीत हो रहा हूँ। यह पूरी तरह एक पाखंड सृजित करता है। उदाहरण देखिए। कहा गया है शिक्षा-बजट 4.43 फीसदी से बढ़ा कर 6 फीसदी किया जा रहा है। यानी 1.57 फीसदी बढ़ाया जा रहा है। किसकी आँख में धूल झोंक रहे हो मोदी जी? आप पहले यह बतलाइये कि बाल कल्याण विभाग द्वारा संचालित आंगनबाड़ी का खर्च कितना है? आप उसे शिक्षा में जोड़ दे रहे हो। यह तो पहले ही खर्च हो रहा था। यदि इसके अलावा शिक्षा का व्यय बढ़ाया गया है, तब मैं आपकी थोड़ी -सी तारीफ़ करूँगा। अधिक नहीं, क्योंकि आज भी इस देश में शिक्षा का व्यय प्रतिरक्षा व्यय (15.5% )से बहुत कम है,और उसे उस से बहुत अधिक होना चाहिए।
वीडियो देखिए- वो दलित साहित्यकार, जिसके बारे में रूस के लोगों ने प्रधानमंत्री नेहरू से पूछा था
यह शिक्षा नीति मेरी समझ से उलझावकारी है। नई सदी की सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना करने का इसके पास कोई विजन नहीं है। हमारा देश संस्कृति -बहुल और भाषा -बहुल है। इस बहुरंगेपन को एक इंद्रधनुषी राष्ट्रीयता में विकसित करना, अपनी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत करते हुए एक वैश्विक चेतना सम्पन्न नागरिक का निर्माण और आर्थिक-सामाजिक तौर पर आत्मनिर्भर और भविष्योन्मुख इंसान बनाना हमारी शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए। यह देखना होगा कि हम समान स्कूल प्रणाली को अपना रहे हैं या नहीं। देश में कई स्तर के स्कूल नहीं होने चाहिए, इसे सुनिश्चित करना होगा। उच्च शिक्षा में निजी क्षेत्रों का प्रवेश भले हो, स्कूल स्तर तक सभी तरह के प्राइवेट स्कूल को बंद करना होगा। यह नहीं होता है तब शिक्षा पर बात करना फिजूल है, बकवास है।
दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।