नई दिल्ली। 27 मार्च को राजनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण दो तस्वीरें काफी कुछ कह गई. एक तस्वीर कांग्रेस पार्टी के दिल्ली ऑफिस की थी तो दूसरी भाजपा के लखनऊ दफ्तर की. दोनों घटनाएं भी महत्वपूर्ण थी. दिल्ली में हिन्दी फिल्म अभिनेत्री उर्मिला मांतोडकर ने कांग्रेस पार्टी को ज्वाइन किया तो दूसरी ओर लखनऊ में भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ ने भाजपा का दामन थामा. दोनों पार्टी दफ्तरों में दिग्गज नेता मौजूद थे, जिन्होंने इन दोनों फिल्मी कलाकारों को पार्टी की सदस्यता दी. हालांकि इस मौके की जारी की गई तस्वरों ने एक बड़ा सवाल उठा दिया है.
कांग्रेस दफ्तर में पार्टी की सदस्यता लेने के लिए मौजूद उर्मिला मंतोडकर को काफी सम्मान मिला. पार्टी के नेताओं ने उन्हें अपनी बात कहने का मौका दिया और उन्हें नेताओं की कतार के ठीक बीच में बैठाकर उन्हें वेलकम किया. लेकिन लखनऊ से दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ को बैठने को कुर्सी तक नहीं मिली. ब्राह्मण जाति से ताल्लुक रखने वाले प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र नाथ पांडे और ठाकुर जाति के राजनाथ सिंह के बेटे और नोएडा के विधायक पंकज सिंह ठाठ से बैठे हैं. कुछ और अंजाने चेहरों को भी कुर्सियां नसीब हो गई लेकिन पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले निरहुआ को पार्टी ने कुर्सी देने का शिष्टाचार भी नहीं निभाया, जबकि सारा तामझाम भोजपुरी सुपरस्टार को पार्टी ज्वाइन कराने के लिए ही था. ये वही निरहुआ हैं, जिनके जरिए भाजपा आजमगढ़ में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को चुनौती देने की योजना बना रही है.
ऐसे ही व्यवहार से पार्टी ज्वाइन करने पहुंचे उत्तर प्रदेश व्यापार मंडल के नेता संजय गुप्ता वहां से लौट गए. उनका कहना है कि अगर बीजेपी ज्वॉइन करने से पहले ये हालत है तो ज्वॉइन करने के बाद क्या होगा.
निरहुआ की तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद उनके प्रशंसकों ने भाजपा को निशाने पर लिया है.
राहुल यादव ने ट्विटर पर लिखा है- आज़मगढ़ से उठने वाले को यहां बैठने की सीट भी नही मिली. जियो राजा #निरहुआ, पहले ही दिन #निहुरा दिए गए.
रजनीश यादव ने लिखा- आज़मगढ़ से उठने वाले को यहां बैठने की सीट भी नही मिली। जियो राजा #निरहुआ, पहले ही दिन #निहुरा दिए गए।
चंदन यादव ने लिखा है- असली चौकिदार है … खड़ा होइके ही चउकिदारी करे के पड़ी बाऊ #Nirahua उर्फ #DineshLalYadav
तमाम लोग भाजपा के इस कदम को पिछड़ी जाति के निरहुआ का अपमान बता रहे हैं. बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा के इस व्यवहार के पीछे पार्टी नेताओं का जातीय दंभ नहीं है?
Read it also-टिकट ना मिलने से अब जोशी हुए खफा
दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।