पटना। बिहार और उत्तर प्रदेश हमेशा से देश की राजनीति का रुख तय करते रहे हैं. केंद्र का रास्ता बिहार वाया यूपी होते हुए ही दिल्ली पहुंचता है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले इन दोनों राज्यों ने भारत विजय पर निकली भाजपा के लिए मुश्किल संकेत दे दिए हैं. 14 मार्च को उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटें और बिहार की एक लोकसभा सीट और दो विधानसभा सीटों का चुनाव परिणाम आया. इन पांच सीटों में से भाजपा के जिम्मे सिर्फ एक बिहार की भभुआ विधानसभा सीट आई, बाकी की पांचों सीटों पर भाजपा चुनाव हार गई.
इस दौरान गोरखपुर में योगी आदित्यनाथ की हार इतनी भारी थी कि पूरे दिन चर्चा के केंद्र में गोरखपुर का चुनाव बना रहा. जबकि भाजपा को जो झटका यूपी में लगा था वैसा ही झटका उसे बिहार में लालू यादव की पार्टी तेजस्वी यादव ने दिया था. भाजपा और नीतीश कुमार के साथ आने के बावजूद राजद ने अररिया लोकसभा सीट और जहानाबाद विधानसभा सीट बरकरार रखी.
लालू यादव के जेल जाने के बाद भाजपा-जदयू इस सीट पर राजद को हराने की कोशिश में लगे थे ताकि लालू यादव का मनोबल टूट जाए. लेकिन पिता के जेल में होने के बावजूद उनके बेटे और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव जिस तरह ये दोनों सीटें न सिर्फ बचा ले गए बल्कि उसका अंतर भी काफी रहा. राजद की इस जीत से बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का कद घटा है. बिहार और यूपी के चुनावी नतीजों ने मोदी और अमित शाह की माथे पर पसीना ला दिया है. और भाजपा के सभी बड़बोले नेताओं ने चुप्पी साध ली है.
ऐसी ही एक संभावना को टटोलने के लिए संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने डिनर दिया था, जिसमें 20 विपक्षी दलों के नेता एकत्रित हुए थे. 2019 के पहले विपक्षी खेमें में भाजपा को रोकने की बेचैनी साफ देखी जा रही है. संभव है कि यह उपचुनाव केंद्र से मोदी और बिहार से नीतीश के विदाई की पटकथा बन जाए.
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं। इनकी दिलचस्पी खासकर ग्राउंड रिपोर्ट और वंचित-शोषित समाज से जुड़े मुद्दों में है। दलित दस्तक की शुरुआत से ही इससे जुड़े हैं।