लोकसभा चुनाव 2019 की सियासी जंग फतह करने के लिए बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष मायावती ने देश के अलग-अलग राज्यों में विभिन्न क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन के फॉर्मूले को आजमाया था, लेकिन उनकी यह कोशिश पूरी तरह से फेल हो गई. उत्तर प्रदेश से बाहर किसी और राज्य में बसपा कुछ खास असर नहीं दिखा सकी है. इसी का नतीजा है कि बसपा ने एक-एक कर सारे दलों के गठबंधन तोड़ दिया है. इसकी शुरुआत यूपी में सपा के साथ हुई और अब छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी से बसपा ने गठबंधन खत्म कर लिया है.
यूपी के बाद बसपा ने हरियाणा में भी अपने गठबंधन साथी लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी (एलएसपी) से नाता तोड़ लिया है. मायावती ने एलएसपी के अध्यक्ष राजकुमार सैनी के साथ चुनावी तालमेल किया था. गठबंधन के तहत हरियाणा की 10 सीटों में से 8 पर बसपा ने अपने प्रत्याशी उतारे थे और एलएसपी ने 2 सीटों पर चुनाव लड़ा था. मोदी लहर में दोनों पार्टियों को बुरी तरह से हार का मुंह देखना पड़ा है.
लोकसभा चुनावों से पहले हुए बसपा-एलएसपी गठबंधन में 55-35 का फार्मूला विधानसभा चुनावों के लिए तय किया गया था. बसपा को 55 और एलएसपी को 35 सीटों पर चुनाव लड़ना था, लेकिन लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद मायावती ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं. हालांकि, मायावती ने पहले हरियाणा में इंडियन नेशनल लोकदल के साथ गठबंधन किया था, लेकिन इनेलो की पारिवारिक टूट का हवाला देकर बसपा ने यह गठबंधन तोड़ा और राजकुमार सैनी की पार्टी एलएसपी के साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और अब उसे खत्म कर दिया.
लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार का असर छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिल रह है. छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ बसपा ने गठबंधन तोड़ दिया है. अब आगामी निकाय और पंचायत चुनावों में दोनों ही पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में पार्टी सुप्रीमो मायावती ने बसपा के अपने कैडर वोट को मजबूत करने के निर्देश दिए हैं.
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2018 से पहले सितंबर में अजीत जोगी की पार्टी ने बसपा के साथ गठबंधन किया था. इस चुनाव में प्रदेश की कुल 90 में से 35 सीटों पर बसपा और 55 सीटों पर गठबंधन में अजीत जोगी की पार्टी ने चुनाव लड़ा था. दोनों के गठबंधन को सात सीटें मिली थीं, जिनमें दो बसपा की थीं. इसके बाद लोकसभा चुनाव में सभी 11 सीटों पर बसपा ने अकेले चुनाव लड़ा, लेकिन सफलता नहीं मिली. इसके बाद अब दोनों की राह जुदा हो गई है.
Read it also-ईद पर बोलीं ममता बनर्जी, ‘सभी धर्मों की करेंगे रक्षा

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।