Thursday, February 6, 2025
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राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ का दूसरा महाअधिवेशन का आयोजन दिल्ली में

 

नई दिल्ली। राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ भारत देश में ओबीसी समाज के लिए कार्यरत सभी ओबीसी संघटनाओं का एक महासंघ है. इस महासंघ का पहला अधिवेशन नागपुर में 7 अगस्त 2016 को आयोजित किया गया था. इस सफल अधिवेशन के कारण इस सत्र में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय ओबीसी मागासवर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने की पहल की है.

महाराष्ट्र सरकार को नॉन क्रिमिलेयर की मर्यादा 4.5 लाख से 6 लाख करने का अध्यादेश जारी करने हेतू बाध्य होना पडा. इस महासंघ ने 27 नवंबर को पहली ओबीसी महिला अधिवेशन का आयोजन किया था. 8 दिसंबर 2016 को शीतकालीन नागपुर अधिवेशन में एक लाख से अधिक सर्वसमावेशी ओबीसी समाज के लोगों का मोर्चा निकाला गया था. देश के सारे ओबीसी संवर्ग एकजुट होने के परिणामस्वरूप महाराष्ट्र राज्य में पहली बार सरकार को ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए ओबीसी मंत्रालय का गठन करना पड़ा और इसी के साथ केंद्र सरकार ने पहली बार नागपुर में 500 ओबीसी छात्रों के लिए छात्रावास बनाने की मंजूरी दी.

आजादी के पूर्व भारत में अंग्रेजों के शासनकाल में सन 1871 से 1931 तक प्रत्येक 10 वर्ष के पश्चात ओबीसी संवर्ग की जनगणना की जाती थी. इस आधार पर देश की कुल आबादी का 52 प्रतिशत ओबीसी थे. देश में ओबीसी समाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में काफी पिछड़ा वर्ग था. महाराष्ट्र में कोल्हापुर संस्थान में सन 1902 के कालखंड में छत्रपती शाहु महाराज के शासनकाल में ओबीसी वर्ग को 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया था, जिसका उल्लेख्र महात्मा ज्योतिराव फुले ने भी अपने ग्रंथ ‘‘शेतकऱ्यांचे आसुड‘‘ में किया था.

सामाजिक न्यायिक एवं समता के भाव से दिए जाने वाला आरक्षण देश की आजादी प्राप्त होने तक जारी रहा. देश की स्वतंत्रता के पश्चात संविधान निर्माता डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर एवं देश के प्रथम कृषि मंत्री डॉ. पंजाबराव देशमुख की कड़ी मेहनत से संविधान की धारा 340 के अनुसार ओबीसी के सभी संवर्ग को आरक्षण का प्रावधान किया गया था. संविधान की धारा 341 के अनुसार एस.सी.वर्ग एवं धारा 342 के तहत एस.टी. संवर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था. एस.सी. वर्ग की पूरी जाती की सूची तैयार होने के कारण उनको शेड्युल के साथ जोड़ा गया था शेड्युल-1. उसी तरह ही एस.टी. वर्ग को पूरी जाती की सूची तैयार होने के कारण उनकी सूची साथ में जोड़ी गई शेड्युल-2. लेकिन ओबीसी वर्ग के जाती की सूची न होने से ओबीसी की अनुसूची तैयार नही हो सकी इसी कारण संविधान की धारा 340 के क्रियान्वयन के लिए पहली लोकसभा में आयोग गठित कर ओबीसी के सभी वर्ग के जातियों की सूची बनाकर अनुसूची तैयार करने का सुझाव दिया गया था. अनुसूचित जाति और जनजाति के अनुसूची तैयार होने से इन दोनो प्रवर्गों को आजाद भारत में क्रमशः15 प्रतिशत और 7.5 प्रतिशत आरक्षण शिक्षा व नौकरी में लागू किया गया. लेकीन ओबीसी संवर्गकी सूची तैयार नहीं होने के कारण ओबीसी संवर्ग को आरक्षण लागू नही किया गया.

सन 1929 से मद्रास प्रांत में शुरू पिछडा वर्गीय आरक्षण को 1950 मे संविधान लागू होने के बाद मा. सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार रद्द किया गया था. परंतु ओबीसी नेता पेरियार रामास्वामीजी ने इसके विरूद्ध मद्रास प्रांत में तीव्र आंदोलन छेड़ दिया और इस आंदोलन के परिणाम स्वरूप पहली बार संविधान में ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया. फलतः आज भी तमिलनाड़ु राज्य में ओबीसी का 50 प्रतिशत आरक्षण कायम है.

संविधान की धारा 340 के तहत ओबीसी संवर्ग को सुविधाएं देने के लिए आयोग की सिफारिश को लागू करने के लिए डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर एवं डॉ.पंजाबराव देशमुख सहित अन्य नेताओं के प्रयासों के बावजूद तत्कालीन सरकार ने ओबीसी के हितों को दरकिनार कर देने की वजह से खफा होकर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने 27 सितंबर 1951 को ओबीसी संवर्ग की हितों की रक्षा हेतु अपना मंत्री पद त्याग दिया. डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा उठाए गए इस कदम से घबराई सरकार ने 29 जनवरी 1953 को सांसद काका कालेलकर की अध्यक्षता में ओबीसी आयोग की स्थापना की. इस आयोग की रिपोर्ट 30 मार्च 1955 को लोकसभा में प्रस्तुत की गई. इस आयोग की रिपोर्ट में ओबीसी को शिक्षा तथा नौकरी में आरक्षण की सिफारिस की गई थी. परंतु आयोग के अध्यक्ष ने अपने अधिकार का दुरूपयोग कर आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट से अपनी असहमति होने का पत्र राष्ट्रपतिजी को सौंपा. परिणामस्वरूप 25 वर्षों तक इस रिपोर्ट को लोकसभा के पटल पर चर्चा एवं निर्णय हेतु रखा ही नहीं गया.

सन 1978 में प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार बनी. ओबीसी नेताओं ने फिर से कालेलकर आयोग का मुद्दा उठाया. लेकिन इस सरकार ने बिना चर्चा किए कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को रद्द कर, 20 सितंबर 1978 को सांसद श्री बी.पी.मंडल की अध्यक्षता में नये आयोग का गठन किया. इस आयोग ने भी दो वर्षों तक अध्ययन कर संपूर्ण रिपोर्ट महामहिम राष्ट्रपति को सौंपी. उल्लेखनीय है कि इस रिपोर्ट में भी कालेलकर आयोग की ही सिफारिशों पर मुहर लगा दी गई थी. इसके बावजूद भी यह रिपोर्ट भी 10 वर्षों तक लोकसभा के पटल पर पेश नहीं की गई.

परिणाम स्वरूप, ओबीसी को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित रखा गया, दिसंबर 1989 को प्रधानमंत्री वीपी सिंह के सरकार से मंडल आयोग मान्य करने की मांग होने लगी. वीपी सिंह ने इस रिपोर्ट की सिफारिशों का अध्ययन करने के पश्चात इस पर सहमति दर्शायी. अंततः 7 अगस्त 1990 को लोकसभा में मंडल आयोग की सिफारिसों को मंजूरी प्रदान कर लागू करने की घोषणा की गई. प्रधानमंत्री व्ही.पी.सिंग द्वारा इस ऐतिहासिक निर्णय लिया गया. वीपी सिंह यदि चाहते तो मंडल आयोग को नामंजूर कर 5 वर्षों तक प्रधानमंत्री पद पर बने रहते. इसी कारण वीपी सिंह एकमात्र बहुजनवादी प्रधानमंत्री साबित हुए.

वीपी सिंह के बहुजनवादी भूमिका के कारण आरक्षण विरोधियों ने उन्हें रावण करार देते हुए दशहरे के दिन उनका पुतला जलाया. 7 अगस्त 1990 को मंडल आयोग की सिफारिश से भयभीत आरक्षण विरोधी सर्वोच्च न्यायालय में गए. आखिरकार 1992 को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में सकल 50 प्रतिशत आरक्षण सन 1992 को लागू किया गया. सकल 50 प्रतिशत आरक्षण मे एस.सी.15 प्रतिशत तथा एस.टी 7.5 प्रतिशत लागू था. 50 प्रतिशत में से 22.5 प्रतिशत घटाने के बाद 27.5 प्रतिशत बाकी रहा था! इसी कारण सन 1992 से ओबीसी कों 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया गया एवं उसी के साथ नॉन-क्रिमीलेयर की शर्तें भी लगा दी गई. जो सुविधा ओबीसी को 1952 से मिलनी चाहिए थी वह 40 वर्षों तक ओबीसी समाज को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया. कुल आबादी के 52 प्रतिशत वर्ग को नाममात्र 27 प्रतिशत आरक्षण लागू हुआ जिसे महाराष्ट्र जैसे पुरागामी राज्य में सन 2003 तक आरक्षण से वंचित रखा गया.

छत्रपति शाहू, महात्मा जोतिबा फुले एवं डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर इन महान विभूतियों क विचारों से चलने वाले अन्याय किया गया. इतना ही नही शत प्रतिशत दिए जाने वाली छात्रवृत्ति पांच वर्ष के पश्चात घटाकर 50 प्रतिशत कर दी गई. इसके पश्चात कुल पाठ्यक्रम से 250 पाठ्यक्रम निकाल दिए गए. अजतक ओबीसी छात्रों के लिए एक भी छात्रावास नही बनाया गया. ओबीसी को पदोन्नति में आरक्षण नही, ओबीसी का स्वतंत्र मंत्रालय नही ओबीसी पिछड़ावर्गीय होने के पश्चात भी एट्रॉसिटी कानून में समावेश नहीं किया गया, किसानों को पेंशन नही दी जा रही है. देश आजाद होने के बाद आज की कुल आबादी का 60 प्रतिशत से 65 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी समाज का होने पर भी यह अन्याय हो रहा है.

उपरोक्त सभी मांगों की ओर केंद्र एवं सभी राज्य सरकारों का ध्यान आकर्षित करने के लिए तथा अन्य सभी मांगे पूर्ण करने हेतू राष्ट्रीय ओबीसी महासंघद्वारा देशभर में आंदोलन चलाया जा रहा है.

महाअधिवेशन स्थल

राष्ट्रीय ओबीसी महासंघ
द्वितीय राष्ट्रीय महाअधिवेशन
कॉन्स्टीट्युशनल क्लब ऑफ इंडीया,
दिनांक 7 अगस्त 2017

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