नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर घूमती तस्वीरें बहस का हिस्सा बनती जा रही हैं. ये तस्वीरें दुकानों के बाहर लगी हैं, जिसमें लिखा स्लोगन लोगों का ध्यान खिंच रहा है. इन पोस्टरों में यह लिखा गया है कि “हमारा परिवार सामान्य वर्ग का परिवार है। हम SC/ST एक्ट संशोधन बिल का विरोध करते हैं.” दरअसल ये तस्वीरें सरकार द्वारा संसद के भीतर एस-एसटी एक्ट बिल में संशोधन के बाद सामने आई हैं.
एससी-एसटी एक्ट बिल में संशोधन के बाद से ही सामान्य तबका भड़का हुआ है. देश के कई हिस्सों में इसके विरोध में प्रदर्शन निकाला जा चुका है. खासकर ब्राह्मण महासभा और क्षत्रिय महासभा जैसे बैनरों के तहत खूब विरोध प्रदर्शनों का आयोजन हो रहा है. एक सितंबर को राष्ट्रवादी युवा वाहिनी नाम के संगठन ने एक पत्र जारी कर सवर्ण समाज के लोगों से एससी-एसटी समाज के लोगों का बहिष्कार करने की अपील की है. इस पत्र में लिखा गया है कि “जब तब भाजपा सरकार एससी-एसटी एक्ट में संशोधन बिल को वापस नहीं लेती है तब तक सवर्ण समाज के सभी लोग एससी-एसटी समाज का बहिष्कार करें. उन्हें अपनी कंपनियों में नौकरी न दें और इनके साथ सामाजिक व्यवहार न रखें.”
खास बात यह है कि विरोध प्रदर्शन के दौरान ओबीसी समाज के साथ होने का झूठा प्रचार किया जा रहा है. तमाम विरोध प्रदर्शन में ओबीसी द्वारा भी बिल के विरोध किए जाने की विज्ञप्ति समाचार पत्रों को दी जा रही है. लेकिन इसकी कहानी कुछ और है. आप अखबारों में छपी इन खबरों को ध्यान से देखेंगे तो इसमें आपको ओबीसी समाज के संगठनों का नाम कहीं नहीं मिलेगा.
सोशल मीडिया पर 5 सितंबर को सवर्णों द्वारा आरक्षण के विरोध में प्रदर्शन करने की खबर भी चली तो भी ओबीसी समाज ने इसका साफ जवाब दिया. सवर्णों की इस साजिश को समझते हुए ओबीसी समाज अपने नाम का इस्तेमाल किए जाने के खिलाफ अब खुल कर सामने आ गया है. ओबीसी के संगठनों ने पत्र जारी कर ओबीसी समाज से अपील की है कि वो किसी भी आरक्षण विरोधी या एससी-एसटी एक्ट विरोधी रैली में शामिल न हों. पिछड़े समाज का कहना है, “देश में ओबीसी की आबादी 65 प्रतिशत है और उसे 65 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए. और वो अपने छोटे भाई एससी-एसटी के साथ मिलकर आरक्षण की यह लड़ाई लड़ेंगे.”
ओबीसी समाज को अब यह समझ आने लगा है कि हर वक्त में सवर्णों ने उन्हें अपना ढाल बनाकर अपनी लड़ाई लड़ी है. हाल तक ओबीसी समाज सवर्णों के साथ खड़ा दिखता था, लेकिन अब ओबीसी समाज के लोग सवर्णों की चाल को समझने लगे हैं. ओबीसी समाज के एससी-एसटी वर्ग के साथ आने से सवर्ण तबका जहां सकते में है तो वहीं देश के मूलनिवासी वाली धारणा मजबूत हो चली है.
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