नई दिल्ली। सोशल मीडिया पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग अक्सर दुर्भावना का शिकार होते हैं. उनकी भावनाओं को आहत किया जाता है, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. फेसबुक और वॉट्सऐप यूजर्स को अब सतर्क होने की जरुरत है क्योंकि सोशल मीडिया पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अपमानजक बातें लिखना उन पर भारी पड़ सकता है. दिल्ली हाई कोर्ट के आदेशानुसार ऐसे व्यक्तियों को जेल की हवा खानी पड़ सकती है.
दिल्ली हाई कोर्ट ने 3जुलाई को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि SC और ST समुदाय के किसी व्यक्ति के खिलाफ सोशल मीडिया यहां तक कि ग्रुप में चैट में की जाने वाली अपमानजनक बातें भी दंडनीय अपराध हैं.
हाई कोर्ट ने कहा कि SC और ST (अत्याचार निषेध) ऐक्ट, 1989 इस समुदाय के लोगों पर सोशल मीडिया पर की गई जातिगत टिप्पणियों पर भी लागू होगा. कोर्ट ने यह बात एक फेसबुक पोस्ट को लेकर दर्ज की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान कही. कोर्ट ने कहा कि इस अधिनियम के दायरे में वॉट्सऐप चैट भी आ सकता है.
जस्टिस विपिन सांघी ने कहा, ‘फेसबुक यूजर अपनी सेटिंग को ‘प्राइवेट’ से ‘पब्लिक’ करता है, इससे जाहिर होता है कि उसके ‘वॉल’पर लिखी गई बातें न सिर्फ उसके फ्रेंड लिस्ट में शामिल लोग, बल्कि फेसबुक यूजर्स भी देख सकते हैं. हालांकि, किसी अपमानजनक टिप्पणी को पोस्ट करने के बाद अगर प्राइवेसी सेटिंग को ‘प्राइवेट’ कर दिया जाता है, तो भी उसे एससी/एसटी ऐक्ट की धारा 3(1)(एक्स) के तहत दंडनीय माना जाएगा.’
कोर्ट में यह सुनवाई एक SC महिला की याचिका पर हो रही थी, जिसने अपनी देवरानी जो कि एक राजपूत समुदाय से है, पर आरोप लगाया था कि वह उसे सोशल नेटवर्क साइट/फेसबुक पर प्रताड़ित कर रही हैं और उसने धोबी के लिए गलत शब्दों का इस्तेमाल किया. अपने बचाव में राजपूत महिला ने कहा कि उसका फेसबुक पोस्ट जिसे अगर सच भी माना जाए तो वह उसका अपना फेसबुक ‘वॉल’ है और इसका मकसद किसी को ठेस पहुंचाना नहीं था. आरोपी ने यह दलील भी दी कि उसके पोस्ट में उसने कभी अपनी देवरानी का जिक्र नहीं किया और कहा कि उसने धोबी समुदाय की महिलाओं को लेकर पोस्ट लिखा था. यह किसी खास व्यक्ति के लिए नहीं था. अंत में उसने अपना बचाव करते हुए कहा कि फेसबुक वॉल प्राइवेट स्पेस है और किसी को हक नहीं है कि वह खुद आहत महसूस कर उसके अधिकारों का हनन करे.
इधर बचाव पक्ष की वकील नंदिता राव ने कोर्ट से कहा कि आरोपी ने एससी/एसटी ऐक्ट के तहत अपराध किया है, क्योंकि राजपूत महिला ने जानबूझ कर अपनी दलित देवरानी का अपमान करने के लिए फेसबुक पर पोस्ट डाला था.
हालांकि, कोर्ट ने राजपूत महिला को राहत देते हुए उसके खिलाफ दायर एफआईआऱ को खारिज कर दिया है. कोर्ट ने माना कि अगर कोई बात सामान्य तौर पर कही गई है और उसे किसी जाति विशेष के व्यक्ति को लक्ष्य बना कर नहीं कहा गया है, तो फिर वह अपराध नहीं माना जाएगा. वहीं, कोर्ट ने उसकी इस दलील को खारिज कर दिया जिसमें उसने कहा था कि फेसबुक उसका प्राइवेट स्पेस है. SC और ST समुदाय के लिए लोगों का रवैया हमेशा नकारात्मक ही रहा है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कोर्ट का यह निर्णय किस हद तक एससी एसटी को राहत दे पाएगा.

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