Friday, March 14, 2025
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गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय में फुले-आंबेडकर सप्ताह का आयोजन।

फोटो: बिरसा आंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन, CUG के पदाधिकारीगण

गुजरात। किसी ने सहीं कहा था कि इक्कीसवीं सदी आंबेडकर युग होगा. और आज यह साबित हो चुका है. कल तक जिस बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को अछूत के नाम से जाना जाता था आज वही भारतीय परिदृश्य में सबका लाडला बन गया है. हर सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्रों में बाबा साहब को भारतीय राजनैतिक पार्टियाँ अपनाने में लगी है. साथ ही साथ बाबा साहेब अब विश्व पटल पर उभर चुके हैं. उनके नाम पर विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थान और विश्वविद्यालय जैसे संस्था खोले जा रहे हैं. अभी हाल ही में साउथर्न यूनिवर्सिटी सिड्नी, ब्रांडीस यूनिवर्सिटी मैसच्यूसेट्स, लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स ब्रिटेन, कोलंबिया यूनिवर्सिटी अमेरिका आदि विश्वविख्यात जगहों पर बाबा साहेब को ज्ञान के प्रतीक के रूप में स्थापित कर उन पर अध्धयन और अध्यापन शुरू किया जा चुका है. लेकिन भारत देश अभी तक अपने भारत भाग्यविधाता को पहचानने में असमर्थ रहा हैं. आये दिन उनके मूर्तियाँ और उनके प्रतीक चिन्हों को नष्ट किया जाना इस बात का द्योतक है कि भारत के लोग अब तक बाबा साहेब को उनके दलित-शोषित समाज के व्यक्ति के ही रूप में जानते और पहचानते हैं. यद्यपि बाबा साहेब को किसी विशेष क्षेत्र में सिमित करना मतलब आसमान में तारे गिनने के बराबर हैं. विश्वरत्न बाबा साहेब सभी क्षेत्रों के ज्ञाता रहे हैं.

भारतीय रिज़र्व बैंक से लेकर भारतीय समाज शास्त्र, मानवशास्त्री, महिलाओं के हितरक्षक, भारतीय संविधान निर्माता, पत्रकार, महान राजनैतिज्ञ, फिलोसोफेर आदि क्षेत्रों के विशेषज्ञ थें. उनके लेखन “एनीहिलेसन ऑफ़ कास्ट” आज भी 82 सालों बाद वर्तमान भारतीय समाज में कितना प्रासंगिक है यह देखा जा सकता है. जिस जात-पात प्रथा को वह तोड़ना चाहते थे और मानव-मानव में समानता लाना चाहते थे जिसे कुछ मनुवादी संस्था और संगठनों ने उनके विचरों को नष्ट करने की कोशिश की है तथा उनके सिद्धांत पर हावी हुए हैं. जिसके कारण जातीय हिंसा वर्तमान समाज का अभिन्न हिस्सा बन चुका. ज्ञात हो बाबा साहेब अनेक महापुरषों के विचारों को अपने में समेटे हुए थे जिसमें प्रमुख रूप से बुद्ध, कबीर, महात्मा ज्योतिबा फुले, शाहू जी महाराज, रैदास, गुरु घासीदास आदि थे, जिनके विचार भारतीय संविधान के प्रस्तावना में भी दिखते हैं, जो सम्पूर्ण मानव समाज के लिए कल्याणकारी है.

“हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा
उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढ़ाने के लिए
दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतदद्वारा
इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.”

ऐसे में बाबा साहेब के मानवतावादी विचारों को जन-जन तक पहुँचाने का काम तमाम विश्वविद्यालय में अध्ययन कर रहे दलित शोषित पिछड़े वंचित समाज के शोधार्थी और विद्यार्थियों ने संभाल रखा है. ऐसे ही एक मशहुर शैक्षिणक संस्थान गुजरात केन्द्रीय विश्वविद्यालय गांधीनगर का मामला सामने आया है जहाँ पर बाबा साहेब के नाम पर काम कर रही संस्था “बिरसा आंबेडकर फुले स्टूडेंट्स एसोसिएशन” बाप्सा ने पुरे एक हफ्ते का कार्यक्रम तैयार किया है जिसे “फुले-आंबेडकर सप्ताह” के नाम से मनाया जा रहा है. ज्ञात हो इस वर्ष राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले का 11 अप्रैल को 191 वे और विश्वरत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर का 14 अप्रैल को 127 वाँ जन्मदिवस है.

कार्यक्रम 9 अप्रैल से वृहत स्तर पर विभिन्न चरणों में मनाया जा रहा है. कार्यक्रम की शुरुआत सामाजिक न्याय के सिद्धांत पर खुली चर्चा से रखी गई है. 10 अप्रैल को प्रख्यात मानवाधिकारी, अधिवक्ता व नवसर्जन ट्रस्ट के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर मंजुला प्रदीप प्रमुख वक्ता होंगी. वहीँ 11 अप्रैल को मुंबई विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. रमेश काम्बले होंगे. कार्यक्रम में 13 अप्रैल को बाबा साहेब और राष्ट्रपिता महात्मा ज्योतिबा फुले के सामाजिक न्याय सिद्धांत पर “नेशनल पीस ग्रुप” का गायन का कार्यक्रम रखा गया है. वहीँ 14 अप्रैल को फोटो प्रदर्शनी और दलित महापुरुषों पर पेंटिंग तथा “व्हिस्टल ब्लोअर थिएटर ग्रुप” के द्वारा “मैं घांस हूँ” नाम का अभिनय भी किया जाएगा. ज्ञात हो यह थिएटर कार्यक्रम दलित छात्र रोहित वेमुला के लेखन पर आधारित है जिनकी सन 2016 में हैदराबाद विश्वविद्यालय में दबावपूर्ण संस्थानिक हत्या हुई थी.

संतोष कुमार बंजारे

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