हम बड़े अजीब लोग हैं
हम अधुनातन और पुरातन एक साथ हैं!
हम नयी टेक्नोलॉजी के टीवी को
घर में लाने में
परहेज कभी नहीं करते
लेकिन नयी सोच को
घर में आने से
हमेशा रोकते रहते हैं
विज्ञान के हर नये अविष्कार को
अपनाने की
हमें बड़ी तत्परता रहती है
लेकिन अवैज्ञानिक रिवाजों
हम फिर भी ढोए चले जाते हैं
हम कम्प्यूटर, इन्टरनेट, ईमेल, मोबाईल,
फेसबुक, व्हाटस्ऐप, ट्विटर का
इस्तेमाल करने लगे हैं
लेकिन बात करने वाले के
नाम से ज्यादा उसके उपनाम में
हमारी रुचि हमेशा बनी रहती है
हमें इंसान की,
उसकी इंसानियत की,
उसकी काबिलियत की,
उसकी लायकीयत की
कोई कद्र नहीं है
हम पत्थरों में भगवान देख लेते हैं
लेकिन इंसान में इंसान भी
देख नहीं पाते
हम बड़े अजीब लोग हैं
हम अधुनातन और पुरातन एक साथ हैं!
हम किसी भी नस्ल के कुत्ते को
अपने सोफे पर,
अपनी कार में बैठाने में
अपनी शोभा समझते हैं
लेकिन इंसान से
उसकी जात पूछे बिना,
उसका मजहब जाने बिना
उसे अपनी परिचय परिधि में
शामिल नहीं करते!
उसे अपने घर में
घुसने नहीं देते…
हम महापुरुषों की जयंतियां
बड़ी धूम से मनाते हैं
लेकिन उनकी बातों को मानने से
हमेशा कतराते भी रहते हैं
हमें हीर-रांझा की,
शीरी-फरहत की,
लैला-मजनूँ की,
सस्सी-पुन्नू की,
रोमियो-जूलियट की
सिर्फ कहानियाँ अच्छी लगती हैं
गर हमारे बीच
कोई हीर,
कोई रांझा हो जाए
तो वह हमें
चरित्रहीन नज़र आने लगता है
हम हाथों में बन्दूकें लेकर
प्रेम के गीत गाते हैं
हम बम के परीक्षण स्थलों पर
शान्ति के चबूतर उड़ाते हैं
हम शान्ति वार्ताएं करते हैं
और हथियारों पर
बजट भी बढ़ाए चले जाते हैं
हम बड़े अजीब लोग हैं
हम अधुनातन और पुरातन एक साथ हैं!
हम पचास साल पुराने
संविधान की
समीक्षा की समितियां गठित करते हैं
लेकिन पांच हजार साल पुरानी
किताबों की समीक्षा की गुंजाइश
हमें नज़र नहीं आती
हम पत्थरों को
दूध पिला देते हैं
और बच्चों को कुपोषण से मरने देते हैं
उन्हें पोलियो ड्राप पिलाने से भी
कतराते हैं
हम बड़े अजीब लोग हैं
हम अधुनातन और पुरातन एक साथ हैं!
राजेश चन्द्रा
संकलन- एस सी भाऊरजार
सिवनी (मध्य प्रदेश)