लेखक स्वतंत्र पत्रकार और बहुजन विचारक हैं। हिन्दी साहित्य में पीएचडी हैं। तात्कालिक मुद्दों पर धारदार और तथ्यपरक लेखनी करते हैं। दास पब्लिकेशन से प्रकाशित महत्वपूर्ण पुस्तक सामाजिक क्रांति की योद्धाः सावित्री बाई फुले के लेखक हैं।
परशुराम के बारे में अम्बेडकर के गुरु जोतीराव फुले के विचार
हिंदू पांचांग के अनुसार (25 अप्रैल) या ( 26 अप्रैल) या दोनों के बीच परशुराम जयंती होती है। हिंदू धर्मग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार एवं ब्राह्मण जाति के कुल गुरु हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार में भूमिहार राय लोग भी उनको अपना कुल गुरु मानते हैं, क्योंकि वे खुद को भी ब्राह्मण मानते हैं।
जोतीराव फुले ( 11 अप्रैल 1827 और 29 नवंबर 1890) ने अपनी किताब गुलामगिरी ( 1873) की प्रस्तावना में विस्तार से परशुराम के बारे में लिखा है। परशुराम और उसके अत्याचारों का उन्होंने विस्तार से इसमें वर्णन किया है। वे लिखते हैं- “आज के शूद्र( पिछड़े) अतिशूद्रों ( दलित) के दिल और दिमाग हमारे पूर्वजों की दास्तान सुनकर पीड़ित होते होंगे, इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि हम जिनके वंश में पैदा हुए हैं, जिनसे हमारा खून का रिश्ता है, उनकी पीड़ा से हमारा पीड़ित होना स्वाभाविक है। किसी समय ब्राह्मणों की राजसत्ता में हमारे पूर्वजों पर जो कुछ भी ज्यादतियां हुईं उनकी याद आते ही हमारा मन घबराकर थरथराने लगता है। मन में इस तरह के विचार आने शुरू हो जाते हैं कि जिन घटनाओं की याद ही इतनी पीड़ादायी है, तो जिन्होंने उन अत्याचारों को सहा होगा उनकी उस समय की स्थिति किस प्रकार की रही होगी, यह तो वे ही बता जा सकते हैं। इसकी अच्छी मिसाल हमारे ब्राह्मण भाईयों के धर्मशास्त्रों में मिलती है।
वह यह कि इस देश के मूल निवासी क्षत्रिय लोगों के साथ ब्राह्मण पुरोहित वर्ग के मुखिया परशुराम जैसे व्यक्ति ने कितनी क्रूरता बरती, यही इस ग्रंथ में बताने का प्रयास किया गया है। फिर भी उसकी क्रूरता के बारे में इतना समझ में आया है कि कई क्षत्रियों को मौत के घाट उतार दिया था और उस ब्राह्मण परशुराम ने क्षत्रियों की अनाथ हुई नारियों से उनके छोटे-छोटे निर्दोष मासूम बच्चों को उनसे जबर्दस्ती छीनकर अपने मन में किसी प्रकार की हिचकिचाहट न रखते हुए बड़ी क्रूरता से मौत के हवाले कर दिया था। यह उस ब्राह्मण परशुराम का कितना जघन्य अपराध था। वह चण्ड इतना ही करके चुप नहीं रहा, उसने अपने पति की मौत से व्यथित कई नारियों को, जो अपने पेट के गर्भ की रक्षा करने के लिए बड़े दुखित मन से जंगलों-पहाड़ों में भागी जा रही थीं, उनका कातिल शिकारी की तरह पीछा करके, उन्हें पकड़कर लाया और प्रसूति के पश्चात जब उसे यह पता चला कि पुत्र की प्राप्ति हुई है, तो वह चण्ड आता और प्रसूत ( बच्चे) का कत्ल कर देता था।……खैर उस जल्लाद ने उन नवजात शिशुओं की जान उनकी माताओं के आंखों के सामने ली होगी।….
इस तरह ब्राह्मण- पुरोहितों के पूर्वज परशुराम ने हजारों को जान से मारकर उनके बीबी-बच्चों को बहुत कष्ट दिए और आज ब्राह्मणों ने उसी परशुराम को सर्वशक्तिमान परमेश्वर आदि कहकर अवतार भी घोषित कर दिया। सृष्टि का निर्माता बताया।”
(स्रोत-गुलामगिरी, प्रस्तावना, पृ.30, 31, 32, 33, गौतम बुक सेंटर, दिल्ली, संस्करण, 2015)
जोतीराव फुले ने जो कुछ भी लिख है, वह सबकुछ विभिन्न पुराणों में लिखा हुआ है।
प्रस्तावना में विस्तार से परशुराम की क्रूरता एवं निर्ममता के बारे में जोतीराव फुले ने वर्णन किया है। जिन क्षत्रियों की बात जोतीराव फुले कर रहे हैं, वे आज के राजपूत क्षत्रिय नहीं थे, बल्कि शूद्रों-अतिशूद्रों के पूर्वज राजा थे। जैसे-शिवाजी।
यह वही परशुराम है, जिसने अपने पिता जमदग्नि के कहने पर अपनी मां रेणुका का अपने फरसे से गला काटकर हत्या कर दिया था। उनका अपराध यह था कि वे पानी भरने गई थीं और उन्हें वहां देर हो गई थी। वह जलक्रीडा देखने में मग्न हो गई थीं।
परशुराम जैसे नृशंस, क्रूर, जालिम, निर्दयी और हत्यारा व्यक्ति जिस समाज, धर्म, जाति एवं व्यक्ति का आदर्श होगा, वह समाज, घर्म, जाति और व्यक्ति कैसे होंगे? इसका अंदाज आसानी से लगाया जा सकता है।
शिवपुराण, मार्कण्डेय पुराण, देवी पुराण, स्कंद पुराण आदि में परशुराम के चरित्र का वर्णन है। स्कंद पुराण के सह्याद्रिखंड में परशुराम और उसके क्षेत्र का वर्णन है। सह्रााद्रिखंड़ को कोंकड़ क्षेत्र के रूप में जाना जाता रहा है। इस क्षेत्र में चितपावन ब्राह्मणों की उत्पत्ति हुई है। सावरकर, तिलक और गोडसे इन्हीं चितपावन ब्राह्मणों के यहां पैदा हुए थे। ये लोग परशुराम को अपना पूर्वज मानते हैं।
ऐसे ही क्रूर, निर्मम, निर्दयी और अमानवीय चरित्र को नायक बनाकर रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने परशुराम की प्रतीक्षा खंड काव्य लिखा।