9 अक्टूबर को बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपने संबोधन में एक गंभीर मुद्दा उठाया. उन्होंने राष्ट्र का ध्यान इस बात की ओर आकृष्ट कराया कि उरी में शहीद हुए भारत के 18 जवानों की चिता की आग अभी भी ठंडी नहीं हो पाई है. उनके परिवार वाले अभी भी अपनों को खोने के गम से उबर नहीं पाए हैं, ऐसी परिस्थिति में भारतीय जनता पार्टी के लोग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में लखनऊ में रामलीला मैदान पर दशहरा मनाने की तैयारी कैसे कर सकते हैं?
भाजपा की संवेदन शून्यता पर प्रश्न उठाते हुए बसपा प्रमुख ने 29 सितंबर को पीओके (विवादित क्षेत्र) के अंदर सेना द्वारा सफल सर्जिकल स्ट्राइक के लिए कहा कि इसके लिए सेना को बधाई दी जानी चाहिए न कि किसी दल को. बसपा प्रमुख के दोनों सवाल जायज हैं, क्योंकि उरी में भारतीय सैनिकों पर हमले से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक होने तक राष्ट्रभक्ति और देशभक्ति का सबसे ज्यादा ढिंढ़ोरा पीटने वाली भाजपा और भारत सरकार अब इस मामले का राजनैतिक लाभ लेने को आतुर दिख रही है. साफ नजर आ रहा है कि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष एवं जमीनी कार्यकर्ता दोनों ही सेना के त्याग और पराक्रम को भुनाते हुए जनता की देशभक्ति की भावना को भाजपा के पक्ष में दोहन करने में जुटे हुए हैं, ताकि उनको आने वाले पंजाब और उत्तर प्रदेश चुनाव में फायदा मिल सके. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि अगर चुनाव बिहार में होते तो मोदी रावण जलाने पटना जाते.
वास्तविकता में उपरोक्त संपूर्ण परिस्थिति से सेना के राजनीतिकरण की बू आती है. अतः सभी राजनीतिज्ञों, राजनैतिक दलों एवं राष्ट्रवादियों को इस चुनौती से निपटने के लिए गंभीरता से सोचना होगा. एक तथ्य यह भी है कि तकनीकी रूप से सर्जिकल कार्रवाईयां किसी भी देश के खिलाफ सीधे युद्ध नहीं होती है, न ही उनकी सेना से कोई टकराहट होती है, जैसा कि सरकार प्रचारित कर रही है. सर्जिकल स्ट्राइक को पाकिस्तान के विरोध में युद्ध नहीं समझना चाहिए. कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने भी वर्तमान सरकार के इस रवैये पर सवाल उठाया है. साथ ही कांग्रेस ने अपने शासन काल के दौरान किए सर्जिकल स्ट्राइक का भी सबूत दिया है, जिसको उसने गुप्त रखा.
लेकिन भाजपा जिस तरह से इस सर्जिकल स्ट्राइक को प्रस्तुत कर रही है, वह उसकी मंशा पर सवाल उठा रहे हैं. एक सवाल यह भी है कि जब देश शहीद सैनिकों की शहादत में गम में डूबा हुआ है और उनकी वीरता को सलाम कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है तो ऐसे में प्रधानमंत्री मोदी लखनऊ में जाकर विशेष तैयारियों के बीच रावण को दहन कर क्या संदेश देना चाहते हैं? आखिर लखनऊ में प्रधानमंत्री द्वारा दशहरे का त्यौहार मनाने से पाकिस्तान को कौन सा ‘कड़ा’ संदेश जाएगा? प्रधामंत्री की इस ‘देशभक्ति’ के पीछे की राजनीतिक मंशा साफ दिख रही है.
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