भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे समय से अलग थलग पड़े कश्मीरी नेताओं से गुरुवार (24 जून) को दिल्ली में मुलाकात की।मोदी सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता को निरस्त करने का फ़ैसला लिया था जिसके बाद से कश्मीरी नेता खुद को हाशिए पर महसूस कर रहे थे। इस बैठक में शामिल चार पूर्व मुख्यमंत्रियों में से तीन को शांति सुनिश्चित करने के नाम पर आठ महीने तक जेल में रखा गया था। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर की राजनीति के दस अन्य कद्दावर नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ नज़र आए। ऐसे में कश्मीर को लेकर सख़्त रुख़ अपनाने वाली बीजेपी सरकार की ओर से आयोजित बैठक कश्मीरी नेताओं के लिए नई शुरुआत जैसा है।
जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा की आठ पार्टियों के 14 नेताओं के साथ बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत करने के लिए प्रतिबद्ध है। प्रधानमंत्री ने सभी राजनीतिक दलों से परिसीमन की प्रक्रिया में सहयोग करने की अपील की। परिसीमन के बाद वहाँ चुनाव कराने की बात हो रही है। ‘द हिन्दू’ की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे को बहाल करने की प्रतिबद्धता दोहराई है।
इस बैठक में सभी पार्टियों ने जम्मू-कश्मीर के पूर्ण राज्य के दर्जे का मुद्दा उठाया। अनुच्छेद 370 का भी मुद्दा उठा लेकिन ज़्यादातर पार्टियों ने इस मामले में क़ानूनी लड़ाई लड़ने की बात कही। इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी दाखिल की गई हैं. यह मामला कोर्ट में विचाराधीन है।
लेकिन अचानक से मोदी सरकार के इस फैसले से ज्यादातर लोगों को हैरानी हो रही है। मोदी सरकार जिन लोगों के वंशवादी राजनीति का चेहरा बताती रही है उनसे ही बातचीत का रास्ता खोल दिया है। ऐसे में सवाल यही है कि मोदी सरकार ने ऐसा क्यों किया है? बीबीसी की रिपोर्ट में कश्मीर टाइम्स की संपादक अनुराधा भसीन के हवाले से कहा गया है कि लद्दाख में चीन के सैन्य अतिक्रमण और पूर्वी सीमा पर भारत के सैन्य महत्वाकांक्षा को देखते हुए पाकिस्तान की चिंता कम करने की अमेरिकी मज़बूरी के चलते, बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव की वजह से मोदी सरकार ने यह क़दम उठाया है। यह भी कहा जा रहा है कि क़दम पीछे करने से मोदी सरकार को पाकिस्तान और चीन के संदर्भ में कश्मीर मुद्दे को संभालने के लिए पर्याप्त जगह मिल गई है।
अमित शाह ने कुछ ही महीने पहले कश्मीर के राजनीतिक दलों के गठबंधन को गुपकार गैंग क़रार दिया था। दरअसल गुपकार एक पॉश रिहाइशी इलाका है जहां फ़ारूक़ अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ़्ती और अन्य वीआईपी लोगों के आवास हैं। कश्मीर के राजनीतिक दलों के गुपकार गठबंधन चार अगस्त, 2019 को अस्तित्व में आया था। गठबंधन ने संयुक्त तौर पर भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 और 35-ए के तहत मिले विशेषाधिकार के साथ किसी भी तरह के बदलाव का विरोध करने का संकल्प लिया था।
इसके अगले ही दिन इन नेताओं के साथ हज़ारों दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया गया, जम्मू कश्मीर में इंटरनेट और संचार के दूसरे सभी साधनों पर पाबंदी लगा दी गई और पूरे प्रदेश में कर्फ्यू लागू कर दिया गया। अक्टूबर महीने में पाबंदियों में रियायत दी गई और मोदी सरकार ने अब्दुल्लाह और मुफ़्ती परिवारों को दरकिनार करते हुए शांति, समृद्धि और नई लीडरशिप के साथ नए कश्मीर को बनाने के बारे में व्यापक संकेत दिए।
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी समर्थक इस क़दम के समर्थन में नहीं दिखे हैं। इस बैठक को लेकर अप्रसन्न एक कश्मीरी बीजेपी नेता ने गोपनीयता की शर्त पर कहा, “लंबे समय से लाड पाने वाले राजनीतिक और शोषक वर्ग के बंधन से मुक्त कराने के वादे के साथ धारा 370 हटाया गया था। लेकिन ऐसा लग रहा है कि वे फिर से प्रिय बन गए हैं।” जहां तक कश्मीर के नेताओं का सवाल है, उन्हें पता है कि बातचीत के अलावा कोई विकल्प नहीं है। इस बैठक से इन नेताओं को स्पेस मिली है कि वे अपने क्षेत्रों के बारे में बात कर सकें।” बैठक के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस और गुपकार गठबंधन के प्रमुख डॉ फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने कहा कि भरोसे की बहाली सबसे ज़रूरी है और पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करना नई दिल्ली की ओर से इस दिशा में पहला क़दम होगा। तो एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने बैठक के बाद कहा कि चीन और पाकिस्तान से संवाद के लिए वे प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ़ करती हैं। मुफ़्ती ने कहा कि भारत को कश्मीर में शांति के लिए भी पाकिस्तान से बात करनी चाहिए। महबूबा मुफ़्ती ने कहा, ”हमलोग जम्मू-कश्मीर की ज़मीन, नौकरियाँ और खनिज संपदा की भी सुरक्षा चाहते हैं। यहाँ हर तरह के डर का माहौल ख़त्म होना चाहिए। मैं राजनीतिक क़ैदियों को भी रिहा करने की मांग करती हूँ।
पांच अगस्त, 2019 के बाद मान लिया था कि इन लोगों की कश्मीर की राजनीति में कोई भूमिका नहीं है। लेकिन मोदी सरकार की बैठक से इन्हें नया जीवन मिला है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक के बाद एक संभावना यह भी जताई जा रही है कि क्या सरकार और कश्मीरी नेताओं के बीच अंदरखाने कोई समझौता हुआ है।
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